रविवार, 23 अगस्त 2020

Padam shree mukutdhar Pandey ji

 *पदम श्री मुकुटधर पाण्डेय जी पर शोध पत्र* -----पगडंडियों मे धूप की तपन गांव के जिंदा होने का बोध कवि हृदय में भारत के स्पंदन का प्रमाण देती है। छायावादी काव्य के जनक के समक्ष यदि कलम नतमस्तक है तो छायावादी आलेख/शोध के माध्यम से उन्हें सम्मान देना उनके प्रति सच्चे श्रद्धा सुमन अर्पित करने का उचित दृष्टिकोण निशचित रूप से सर्वमान्य होगा। उनके छायावादी काव्य का उदगम स्थली"कुररी के प्रति" मे विदेशी विहग की पीड़ा को आत्मसात कर बाल्यकाल मे पितृवियोग के दंश को महसूस कर खुद के मन के भटकाव को शायद विदेशी विहंग मे चित्रित करने का एक सफल प्रयास कर अपने मन को सान्तवना देने के प्रयत्न मे.....विहंग को उनकी मंजिल चिन्हित करने को कहते है यानी अपरोक्ष रुप से खुद को ही ताकीद करते है की' मन मरीचिका तू अब ठहर जरा,छाव  मे सुस्ता ले और एक लक्ष्य को चिन्हित कर छायावादी वट वृक्ष के तले पथिल को विश्राम दे।'

पदम श्री पं मुकुटधर पांडेय की उनकी पदम श्री तक की अनपरत यात्रा मे किसान के विशाल आस्तित्व मे उनकी शहर के प्रति वितृष्णा,धान की बालियों मे बसती किसान की आत्मा, विहंग की विह्वलता मे उनके मन का विचलित हो जाना, किसान की मन:स्थिति की सरलता को इतनी सादगी से पाठक के मन मस्तिष्क मे रोपित कर देना एवं "कौन है कवि मे" समाज के धड़कन मे कवि मन की उपस्थिति को स्पष्टत: साबित कर देना साहित्य के प्रति उनकी गहरी आस्था को प्रतिपादित करती है।

आस्था जो विज्ञान की समझ से परे है।इसे हम ऐसे समझ सकते है कि विज्ञान अभी आस्था के अभ्युदय स्थल तक नही पहुची है किंतु दिल को सुकून हे कि विज्ञान सतत इस ओर अग्रसर है।

 आस्था विज्ञान के सामानांतर चलने वाली विकिरण की वह प्रक्रिया है जिससे आप सीधे यानी कवि मन अपनी आराध्य 'माँ सरस्वती' से संवाद स्थापित करने मे खुद को सफल पाते है।                  

आस्था लेशमात्र भी संशय नही माँगती है। क्षप्णिक संशय चाहे वह माइको सेकंड का ही क्यों न हो, आस्था की विकिरण वही बाधित हो जाती है औऱ माँ सरस्वती से प्रत्यक्ष संवाद की अनुभूतिया अवरुद्ध हो जाती हैं।

पं मुकुटधर पांडेय जी की साहित्य के प्रति, छायावाद के प्रति उनकी आस्था दिन प्रतिदिन समयांतराल मे अटूट होती चली गयी, उन्हें अपनी हर रचना मे पिता की वात्सल्यपूर्ण भाव भंगिमाएं स्पष्ट महसूस होती गयी और वे रसास्वादन के अथाह समुद्र की गहराइयो मे आकंठ तक डूबते चले गये पितृ प्रेम मे अनवरत चलती उनकी यह अनन्त यात्रा अनंतत: एक दिन पदम श्री के रुप मे फलित हुई।

 पं मुकुटधर पांडेय जी की रचना एक भगीरथी प्रयास के फलीभूत, प्रवाहित गंगा की पवित्र धारा है जो अपनी विधा रचती है और स्वयं उसे स्थापित करने का माददा भी रखती है और अपनी संस्कृति में बंधे विश्व को भी प्रभावित करने की क्षमता रखती है। वह किसी का अनुकरण नहीं करती है बल्कि अपनी डगर खुद तलाशती है। उनका सब कुछ अपना है वह आहिस्ता--आहिस्ता  विश्व साहित्य की ओर अपना कदम बढ़ाती है पर अपनी जमीन नही छोड़ती है और पॉव--पॉव चल नजर आसमान में केंद्रित कर देती है। वे लोक परंम्परा, विधि, रीति--निति वैचारिक गति में भारतीय जीवन के उत्सर्ग की बुनियाद है इस विश्वास को दृढ़ करती है।

पांडेय जी अपनी रचनाओं के विच्छेदन में पाठकों के भावलोक व विचारलोक का अनुसंधान करते है फिर सप्ततारे सी आकर्षक व्यवस्थित कतार में उनकी शल्य क्रिया करते है।पांडेय जी की स्वतंत्र साहित्यक क्षमता है जिससे आज पूरा साहित्य जगत उनके सामने नतमस्तक है।छायावादी लेखन से सांस्कृतिक पर्यावरण की निष्कलुष उपस्थितिक धरा के प्रति उनकी सशक्त सैद्धातिनक यात्रा में एक नींव के पत्थर का काम करती है। शाब्दिक आनुष्ठान तो जैसे उनकी रंग--रंग  में समाया हुआ है। अभ्योतर शुचिता बाह्य शुचिता से उत्तम है ।इनकी रचनाओं में तीर्थ आध्यात्मिकता का आभास तो बरबस ही मन को आलोकित सा कर कर देता है।प्रत्येक शब्द के शाब्दिक अर्थ उसके परिवेश की अपनी समझ आती है किन्तु मुकुटधर जी के शब्द निष्कलंक दूधिया रंग के साथ उनके अन्त:करण के महानिवास मे विस्तारिक वैचारिक क्रान्ति की मशाल लिए मानो वात्सल्य का पुट देती जनमानस को हिलोरे देती सजग सी करती प्रतीत होती है।यहाँ उनका आग्रह नही बल्कि रचना के प्रति उनकी उदारता सारे दर्शन मतों को एकसूत्र में अक्षुणता बनाए रखने में सफल होकर विरोधी को चकित ही करती है।

छायावादी लेख को यह श्रेय  साहित्य समाज ने ही प्रदत्त किया है कि आज विषाक्त़ता से मुक्त वह शुद्ध हिन्दुस्तानी धरा पर स्थित होकर अपनी अस्मिता की बात करता है।उनकी छायावादी रचनाओं में सृष्टि का स्वरुप जिस प्रमाणिकता के साथ मन को आंदोलित करता है वह साहित्य के नये स्वाद का अनुभव देता है और आश्चर्य की इसमें सभी एकमत है। यही कारण है कि जीवन के संघर्ष के थकान के उपरांत भी इनकी रचना ठंड़ी छाँव का आभास देती अपने छाँव तले साहित्यिक पथिक को थोड़ा सुस्ताने का अवसर देती है और पथिक भी इनके आकर्षण मे थोड़ा सुस्ताने का लोभ संवरण नही कर पाता है।

साहित्य के दायित्य निर्वाह में मुकुटधर जी किंचित मात्र भी उहापोह की स्थिति में नही रहे। अपने लेखन कर्म में वह भीष्म पितामह की तरह अडिग व युधिष्ठिर की तरह अपने अग्निपथ पर अटल रहे। 1918से छायावादी शैली लोकप्रिय हो चुकी थी। इस शैली के सम्बन्ध में जब 1920 में "श्री शारदा"' नामक पत्रिका जो जबलपुर से निकलती थी, में लेखमाला के रुप में प्रकाशन प्रारम्भ हुआ तब इन पर राष्ट्व्यापी  चिंतन, मनन, अध्य्यन और अंत में विचार विमर्श के उपरान्त इस शैली ने अपना सम्मानजनक स्थान पाया।अपने नाम के अनुरुप ये छायावाद के मुकुट के रुप में आज भी साहित्यकारों एवं जनमानक के हृदय में विराजमान है।यह इनकी चिरकालिक अक्षुण्ण  अवस्था है।कैसे यह शैली द्विवेदी युग के बाद अंकुरित हुई।साहित्य के जानकारों के अनुसार 1918 में , *_जयशंकर* जी  द्वारा प्रकाशित काव्य संग्रह "_*झरना*" ही प्रथम छायावादी संग्रह था। इसके पश्चात ही हिन्दि पद्य शैली में बदलाव परिलक्षित होने लगे थे।इस शैली के आधार स्तम्भ  ,जयशंकर प्रसाद,  सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानन्दन पंत और महादेवी वर्मा था। मान्यता है कि इस शैली को परिभाषित करने, इसे निश्चित दिशा देने व इसके नामकरण का श्रेय पं.मुकुटधर पांडेय को जाता है।'श्री शारदा' में प्रकाशित इनकी लेखमाला ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभायी जिसमें इन्होंने अपने लेखमाला का शीर्षक ही'छायावाद रख दिया  था। प्रेम के पर्याय के रुप में स्वच्छतावाद को आश्चरवाद के रुप में स्थापित कर अनुभव को चारमत्कर्ष तक ले जाना और मानवतावाद, सौन्दर्यवाद, रहस्यवाद, प्रेम की अकुलाहट की निराशवादिता, मर्मभेदी करुणावादिता की ध्वनि जो ममत्व, वात्सल्य को समेटती करुणामय होते हुए भी मधुर है। यह जनसाधारण की समझ से बाहर होकर पतली गली से निकल लेती है।

ऐसी बात नही कि छायावादी को विरोध न झेलना पड़ा हो ,जिनके मूल में निराला व उनके अनुयायी थे जो इनका अंग भंग कर " छाया "शब्द का लाभ उठाकर छायावाद की छीछालेदारी कर रहे थे पं. ईश्वरी शरण पाण्डेय जी इनकी लेखमाला के संदर्भ में कहते है कि यह हिन्दि साहित्य की छरोहर है इस संदर्भ में उनकी अन्तरात्मा से बस यही शब्द अनवरत रुप से मुखरित होते रहते थे ------  *"न चाह मूझे मान की, न सम्मान की, न चाह मुझे अभिमान की, अंजलि भर की ही तो मेरी इच्छा है कि बची रहे छायावाद के स्वाभिमान की"*  और अपने प्रयास से इसमें सफल भी रहे जो आज वटवृक्ष बनकर साहित्यकारों को ठंडक का एहसास करवाता हुआ उनके शरण में गये प्रायः हर कवि को यह एक मुकाम देने का प्रयास करता है।

पं. मुकुटधर पाण्डेय जी सृजनशीलता अपने पिता श्री स्व. चिंतामणि पाण्डेय व दादा श्री स्व.सालिगराम पाण्डे जी से धरोहर के रुप में मिली थी जिसे ये अवने अग्रज के सानिध्य में बड़ी तन्मयता से आगे बढ़ा रहे थे। वहीं माता श्रीमती देवहुति के आध्यात्मिक संस्कार इन्हें इनके पथ निरन्तर संबल प्रदान कर रहे थे।

90 वर्ष की आयु में उनका निधन6 नवम्बर को रायपुर में लम्बी बीमारी के बाद हुआ। उन्हीं दिनों के किसी क्षण में अपनी एक कविता में उन्होंने लिखा था कि *'हे महानदी तू अपनी ममतामयी गोद में मुझको अंतिम विश्राम देना, तब मैं मृत्यु पर्व का भरपूर सुख लुटूँगा*।

पं. मुकुटधर पांडेय जी ने 1915 में प्रयाग विश्वविद्यालय से प्रवेशिका परीक्षा उत्तीर्ण कर महाविद्यालय में दाखिला ले तो लिया था पर महामारी फैलने की परिस्थितियों के कारण वे आगे नही पढ़ पाये किन्तु हिन्दि, अरबी, बंगला, उड़िया का चिंतन मनन, अध्ययन घर पर ही रह कर किया और एक सम्मानजनक मुकाम हासिल किया। उनकी पहली कविता संग्रह थी *"पूजा के फूल"*जो आगरा से स्वदेश बांधव में 1919 में प्रकाशित हुई थी। हिंदी गद्य के साथ--साथ हिंदी पद्य में भी इनकी पकड़ मजबूत थी इसी से प्रभावित होकर पं. रवि शंकर विश्वविद्यालय द्वारा इन्हें  डी. लिट की उपाधि भी प्रदान की गयी थी।इनके काव्य में करुणाजनित प्रकृति सौंदर्य के मानवीय प्रेम में गीतात्मकता की प्राधानता रही है जो छायावाद के कल्पना वैभव  की प्रथम भव्य द्वार के रुप में सुशोभित है।

पं. मुकुटधर पांडेय जी का जन्म बिलासपुर जिले के घनी अमराइयों में झाँकते ग्राम बालपुर में सन् 1895 में हुआ था जहाँ सूर्योदय और सूर्यास्त की अनुपम छटा शायद शैशवकाल से ही उन्हें साहित्य की ओर प्रेरित करती रही। द्विवेदी युग में अनुवादक के रुप में उन्होंने अपनी छवि बनाई थी। विशेषकर बंग्ला रचनाएँ। *"कुररी के प्रति'* के बाद *'विश्वबोध'* नाम से उनकी कविता ने उनकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए इससे कोई इंकार नही कर सकता। अवसाद के क्षणो में भी वे ईश्वर के चरण प्रसाद को महसूस करते हुए लिखते है कि *"यह मेरा आत्यमिक अवसाद?* *हुआ मुझे तब चरण प्रसाद। यह प्रभाव कितना अविवाद? आती ठीक नही है याद।"* कविता के सन्दर्भ में उनके सटीक वक़्तव्य तो और कोई दे नही सकता था।उनके शब्दों में कविता नश्वर जीवन का उल्लास।। मृत्यु को कितनी सरलता से उन्होंने उल्लास से अलंकृत कर दिया । यह चमत्कार तो उनकी ही लेखनी कर सकती है । छायावादी लेखन ने हिन्दी में खड़ी बोली कविता को पूर्णरुप से स्थापित कर दिया।इसके बाद से ही ब्रज भाषा हिन्दी काव्य धारा से बाहर हो गई थी।इसने हिन्दी को नये--नये वाक्यों से सुशोभित किया, नये तरीके से साहित्य को प्रतिबिंबित किया, जब इनके छायावाद का कोई साहित्यकार गम्भीरता से  अवलोकन करता है तो उनके दिल से एक ही बात निकलती है कि *भावनाएँ आपकी बेमोल है, स्याही की लकीरें अनमोल है, बसे रहें जनमानस के दिल में, साहित्य के लिए नही आप शेष है।* यह उनके स्वतंत्र सोच का ही प्रतिफल था कि इसे साहित्यिक खड़ी बोली का स्वर्णयुग कहा जाने लगा।

छायावादी कविता द्वेवेदी युग की नीरस, उपदेशात्मक कविता का विद्रोह करते हुए कल्पना प्रधान, भावनात्मक कविताएँ रची गयी। इनकी कविता नोबेल पुरस्कार विजेता रवीन्द्रनाथ टैगोर की 'गीतांजलि' से स्पष्टत: प्रभावित सी लगती थी, साथ ही इनकी भावनायें प्राचीन संस्कृत साहित्य, मध्यकालीन हिन्दी साहित्य जिसमें बौध्द दर्शन व सूफी दर्शन के पुट को साफ--साफ महसूस1किया जा सकता है।

गीत काव्य के बाद छायावाद में भी महाकाव्य का अभ्युदय हुआ। प्रसाद जी की कामायनी व पंत जी की लोकायतन इनका प्रमाण है।यदि हम उनके आलोचको पर दृष्टि डालें तो मैथिली शरण गुप्त जी ने खड़ी बोली काव्य को कल्पना की पराकाष्ठा कहा है तो *नंद दुलारे बाजपेयी जी* ने प्रकृति के सूक्ष्म व्यक्त सौंदर्य में आध्यात्मिक छाया का मान उनके विचार से छायावाद की एक सर्वमान्य व्याख्या होनी चाहिये थी। *नामवर सिंह* लिखते है कि छायावाद उस राष्ट्रीय जागरण की काव्यात्मक अभिव्यक्ति है जो एक ओर पुरानी रुढ़ियों से मुक्ति चाहता था ओर दूसरी ओर विदेशी पराधीनता से किन्तु इसे मेरी व्यक्तिगत राय में आलोचना की श्रेणी में रखना गलत होगा।अपनी सांस्कृतिक परंपरा को समेटे हुए अंतर्राष्ट्रीय होने का यह सुखद1अनुभव काश आज मुकुटधर पांडेय जी साक्षात स्वमेव अपने रोम--रोम में एहसास कर पुलकित हो पाते तो निश्चित रुप से उनका आल्हादित मन मयूर उनकी सांस्कृतिक माँ के चारणों में लोट--पोट हो जाता। अपने अग्रजों के कदम कदम पर उनका स्नेहिल स्वावलंबन की कृतज्ञता प्रकट करने उनके अंग लिपट कर उनकी छाती को अपने खुशी के आँसुओं से सराबोर कर देता, खुशी से विह्वल मन पिताजी की स्नेही छाया महसूस कर छायावाद के रसस्वादन में पुनः नये कीर्तिमान रचने को दृड संकल्पित हो जाता, पर आज उनके गाँव की अमराइयों में निस्तब्धता छायी है, हवा मनो कहीं छुप कर खड़ी है, वातावरण एकदम शांत है मानो एहसास करा रही हो कि *हे कलम तू अपनी लेखनी के आवेग को थोड़ा विराम दे और धरातल पर लौट कर पंडित जी के संदर्भ में कुछ अन्य साथर्क बातें उनके प्रशंसकों से साझा कर।*  अपनी कलम होने की गौरव1गाथा को महिमा मंडित कर ले।जीवन के संघर्स के साथ--साथ सत्य का दामन अपनी मुठ्ठी में जकड़ कर रखना। शाब्दिक अनुष्ठान के  यज्ञ की पूर्णाहुति कर समाज की कलुषित धारा को गंगा की पवित्र धारा मे परिवर्तित करने का साहस दिया और  'छायावादी' का परचम लहरा कर खड़ी बोलि में जन--जन की अँगुलियों में थिरकन पैदा कर दे ताकि वे तुम्हारी संगत में रह कर छायावादी रचना की एक नई अमराईयां अंकुरित करने का जज्बा नूतन साहित्यकारों में पैदा कर सकें।


        

                                                   समाप्त


Copyright

नोट  --- यह मेरा मौलिक शोध पत्र है।                             डॉ. वासुदेव यादव

    (आयुर्वेदज्ञ)

ग्राम -- डोमनारा  , पो. फरकानारा

                                                                     तहसील-- खरसिया, जिला--रायगढ़

                                                                                  पिन -- 496665

                                                                                      छत्तीसगढ़

                                                                             मो. न.   8815041022

मंगलवार, 11 अगस्त 2020

धर्म निरपेक्षता की ईमरती

 धर्म  निरपेक्षता  की  ईमरती 


धर्म  निरपेक्षता   के  शब्द  को पक्ष  विपक्ष  के  द्वारा  न  जाने .कितनी  बार चबाया  गया  और  भविष्य  में  न  जाने  कितनी  बार और  चबाया  जायेगा |


आने  वाले  दिनों  में 'जाकी  रही भावना  जैसी'  के  अंतर्गत  राजनीतिग्य इसे   अपनी सुविधानुसार इसका  आकार  प्रकार  बतायेंगे एवं   परिभाषित  करेंगे , कोई  इमरती  कहेगा  तो .कोई  जलेबी ,राजनीति ज्यादा  काली  हो  गयी  तो  वे  इसे  खोये  की  जलेबी  घोषित  कर   देंगे   पर   इसे चबाना  नहीं  छोडेंगे |


जब 13 दिन  की  बाजपेयी  सरकार  विश्वास  मत  हासिल  करने  में  विफल  हो  गयी  थी   तब  सेकुलर  रहे   राम  विलास  पासवान  जी ने धर्म  निरपेक्ष  राजनीति की  बड़ी  सुन्दर   जलेबी  बनायी  थी , उन्होने  कहा  था  कि  बाबर  केवल  40 मुसलमान  ले  कर  आया  था | उसकी  संख्या अाज   करोडों  में  पहुँच  गयी है  क्यों कि  आप  ऊँची   जाति   वालों  ने  हमे  मंदिरों  मे  जाने  नहीं  दिया  लेकिन  मस्जिदों  के  दरवाजे  के  दरवाजे  खुले  थे  तो  हम  वहीं  चले  गये |


 हिन्दुओं  की  अस्मिता  पर  कितनी  बड़ी   चोट  दे  दी  थी  उन्होने  , ऐसे  में  ईसाई  धर्म  प्रवर्तक  दलित  हिन्दुओं  पर  कैसे  न  लार  टपकाते , देखते  देखते  ही  हिन्दुओं  का  एक  बडा  तबका  खाली  हो  गया  था  जो  अाज  भी  किसी  न  किसी  रुप  में  जारी  है |  


वर्तमान  में स्थिति  ऐसी   हैं  कि  दलित  हिन्दू   ही अब   हिन्दू विचारधारा  और मूर्ति   पूजा का     खुल  कर   विरोध  कर  रहें  हैं  |


ऐसा  नहीं  हैं  कि  ऐसी  स्थिति के  लिए   कोई  एक  दोषी  हैं , ऐसी  स्थिति  के  लिए  पक्ष  विपक्ष  दोनो  को  दोषी  करार  दिया  जा  सकता  हैं,  यानि   राजनीति की  इमरती  का  स्वाद  लेने के  प्रयास  में  दोनो  ने ही   अपने  अपने  हित  में   इसे आकार  देने  की  कोशिश  की जिस से  यह  स्थिति  उत्पन  हुई  हैं  इससे  शायद  ही  इंकार  किया  जा  सकता  हैं |


राम  मंदिर  बन  रहा  हैं ,क्या  मर्यादा पुरूषोत्तम   के  पथ  पर  चलने  की  अनुमति  इन्हें  भी  मिलेगी  , यह  एक  यक्ष  प्रश्न  हैं |


डा . वासु देव यादव , रायगढ

मुंशी प्रेम चंद जी

 प्रेम  चन्द  मुंशी  जी  के  सम्मान में    एक  लघु  समीक्षा ---

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 धान  की  बालियों  में  सांस  लेती  मुंशी प्रेम  चंद  जी  की  कहानियां  पगडन्डियों   पर  ताय  ताय  चलती , एक  मोड  पर  अंगड़ाई  सी  लेती  , खेत  की  मेड़  पर  आ  कर  एक  पल  को  ठहर  सी  ज़ाती  हैं .......मानो  फेफड़ों  में   खेतों  की   सौंधी  महक को  एकदम  से  भर  लेना  चाहती  हो ..  फिर  छपाक  से  खेतों  में  कुद  ज़ाती  हैं |


उनके  अप्रतिम  रुप  को  आत्मसात  करने  के  लिए  किसान  भी  भावविहल  हो  उठता  हैं|


 हलधर के   मन  में  छिपे  दर्द  को उकेरने  में  ब्यस्त   खेतों   में चलते उनके   कलम  को  देख  कर   किसान  भी  अपने  अस्तित्व को  देश  की  धुरी  में  महसुस  करता  हैं |


उनकी  रचनाओं  का  जादू  अाज  भी प्रासंगिक हैं   जैसे  एक  बालक  को   उसकी  मनपसंद  टाफी  मिल  जाए  तो  वह  खिलखिला  उठता  हैं  , वैसे  ही  अाज  भी  उनकी   रचनायें   सरसों  के  खेत  में  पीली  चादर  बिछा  कर   किसानों  का  स्वागत  करते  यत्र  तत्र  सर्वत्र  दिख  जायेंगी |


 by Dr vasu Dev Yadav 

raigarh (c.g)

सोमवार, 22 जून 2020

Pratykshm Kim pramanam

नास्तिकों के लिये मध्यप्रदेश में आगर मालवा नाम का जिला के वकील जय  नारायण शर्मा के जीवन  में घटित सत्य घटना ग्यान चक्षु खोलने के लिए काफी है |

       जैसा मैने पढा अक्षरस: उसी स्वरूप  में प्रस्तुत  |

मध्यप्रदेश में आगर मालवा नाम का जिला हैं। वहाँ के न्यायालय में सन 1932 ई. में jay narayan शर्मा नाम के वकील थे। उन्हें लोग आदर से बापजी कहते थे। वकील साहब बड़े ही धार्मिक स्वभाव के थे और रोज प्रातःकाल उठकर स्नान करने के बाद स्थानीय बैजनाथ मन्दिर में जाकर बड़ी देर तक पूजा व ध्यान करते थे। इसके बाद वे वहीं से सीधे कचहरी जाते थे।

घटना के दिन बापजी का मन ध्यान में इतना लीन हो गया कि उन्हें समय का कोई ध्यान ही नहीं रहा। जब उनका ध्यान टूटा तब वे यह देखकर सन्न रह गये कि दिन के तीन बज गये थे। वे परेशान हो गये क्योंकि उस दिन उनका एक जरूरी केस बहस में लगा था और सम्बन्धित जज बहुत ही कठोर स्वभाव का था। इस बात की पूरी सम्भावना थी कि उनके मुवक्किल का नुकसान हो गया हो। ये बातें सोचते हुए बापजी न्यायालय पहुँचे और जज साहब से मिलकर निवेदन किया कि यदि उस केस में निर्णय न हुआ हो तो बहस के लिए अगली तारीख दे दें।

जज साहब ने आश्चर्य से कहा ”यह क्या कह रहे हैं। सुबह आपने इतनी अच्छी बहस की। मैंने आपके पक्ष में निर्णय भी दे दिया और अब आप बहस के लिए समय ले रहे हैं।“

जब बापजी ने कहा कि मैं तो था ही नहीं तब जजसाहब ने फाइल मँगवाकर उन्हें दिखायी। वे देखकर सन्न रह गये कि उनके हस्ताक्षर भी उस फाइल पर बने थे। न्यायालय के कर्मचारियों, साथी वकीलों और स्वयं मुवक्किल ने भी बताया कि आप सुबह सुबह ही न्यायालय आ गये थे और अभी थोड़ी देर पहले ही आप यहाँ से निकले हैं।

बापजी की समझ में आ गया कि उनके रूप में कौन आया था। उन्होंने उसी दिन संन्यास ले लिया और फिर कभी न्यायालय या अपने घर नहीं आये।

इस घटना की चर्चा अभी भी आगर मालवा के निवासियों और विशेष रूप से वकीलों तथा न्यायालय से सम्बन्ध रखनेवाले लोगों में होती है। न्यायालय परिसर में बापजी की मूर्ति स्थापित की गयी है। न्यायालय के उस कक्ष में बापजी का चित्र अभी भी लगा हुआ है जिसमें कभी भगवान बापजी का वेश धरकर आये थे। यही नहीं लोग उस फाइल की प्रतिलिपि कराकर ले जाते हैं जिसमें बापजी के रूप मे आये भगवान ने हस्ताक्षर किये थे और उसकी पूजा करते हैं।

          डा. वासु देव यादव

Kinnar ki parmarth katha

लघु  कथा 

         किन्नर की परमार्थ कथा 

        लौक डाउन में प्रसव  वेदना से तड़पती वह श्रमिक महिला अपनी ही बनायी सड़क को मापने में असमर्थ  , एक -एक कदम जैसे सौ - सौ मन के भारी  पत्थर ...... अंतत: वह हार गयी और खुद को गिरने से बचाती हुई वह सड़क पर पसरने ही वाली थी कि उसके बगल से उसे अनदेखा कर निकलती महिला को धक्का दे कर एक किन्नर ने दौड़ कर उसे सहारा दे दिया |
      1947 की आजादी के बाद आज भारत पुन: चलचित्र अजायब घर की भांति आदिमानव के नग्न स्वरूप को साकार करती , प्रसव वेदना से तड़पती महिला पर व्यंग्यात्मक द्रष्टिपात करती अपने गंतव्य की ओर बढ़ती चलती जा रही थी | 
      चलते - चलते प्रसव प्रक्रिया के दीदार की उत्सुकता से एक व्यक्ति ठिठका ही था कि किन्नर ने उसे झिड़क दिया - हट छिछोरे , मर खायेगा तू मेरी , हट एक किनारे ....| और उस महिला को बमुशकिल  एक झाडी के किनारे ले जा कर अपनी एक मात्र बची साडी के टुकडे कर उसके प्रसव में सहयोग कर  उस महिला को माँ का सुख देने में सफल रही , इसी बीच कुछ और किन्नर आ गयी थी और उन्होने एक सुरक्षा घेरा बना लिया था | आश्चर्य नवजात चुप था , उसकी आँखें खुली थी , मानो कोरोना से निडर  थी , किन्नर को अपलक निहार रही थी , शायद आभार प्रकट कर  रही थी उसे जीवन गीत देने के लिए | नितांत अकेली माँ अभी भी  बेहोश थी |
                   
                      लघु कथाकार  डा. वासु देव यादव

Aatmleen

जब  भी  कहीं कृष्ण  प्रवचन  चल  रहा  होता  हैं  तो वहां  की  हवायें  पूरे  क्षेत्र  को  कृष्णमय  कर  देती  हैं  मन  न  जाने  क्यों  उल्लासित  रहता  हैं  ज़िसकी  बारिकियों  को  परिभाषित  करना  मनुष्य  मन  की  कल्पनाओं  से  परे  हैं ऐसे  में  किसी  कथा  वाचक  का  एक  ही  शब्द  श्रोता  की  श्रद्धा  को  दिग्भ्रमित करने  के  लिए  प्रयाप्त  हैं 

अभी  विगत  दिनो विश्व  प्रसिद्ध कथा  वाचक मोरारी बापू  जी  ने  
अपने  प्रवचन  में  श्री  कृष्ण  व  बलराम  की के  संदर्भ  में  अपनी  निजी  ब्याख्या श्रोताओं पर थोपनी  चाही किंतु कुछ जागरुक श्रोताओ के कारण उन्हे कानहा विचार मंच की मांग पर द्वारिकाधीश के दर्शन कर  भक्तों से माफी मांगनी पड़ी |

      यह वाकया इस बात को साबित करता है कि कुछ विद्वान अपनी विद्यता की आड़ में भक्तों पर उनके आराध्य  की छवि अपने मतानुसार  गढना  चाहते हैं | 

         अत: यहां आवश्यक हो जाता है कि जब भी  आप कृष्ण  कथा य़ा  अन्य के प्रवचन का पुण्य ले रहे हों तो   पूर्ण भक्तीमय  होने के उपरांत ही आप प्रवचनकर्ता की बारीक से बारीक गलतियों  को पकड़ पाने में सफल हो कर  भागवत गीता य़ा अन्य  पौरणिक ग्रंथ  का मान  बनाये  रखने  मॅ  अपनी  अहम  भुमिका निभायेँगे और  यह  कर्तब्य  हर  हिन्दू  का  हैं  चाहे  वह  किसी  भी  जाति  का  हो  किसी  भी  वर्ण  का  हो 
और  इस  तरह   अंधविश्वास  को  तोडने की  दिशा  में  यह  एक  महत्वपूर्ण  कदम  माना  जायेगा

            Dr. Vasu deo yadav

Yog se anand prapti

अभी  योग  की  चर्चा  हो  रही  हैं , इसमे  किसी  गवाह  की  आवश्यकता  नहीं  हैं  कि  योग  पश्चात  आप  ह्रदय को  , मन  मस्तिष्क  को प्रफुल्लित  पाते  हैं  , आनन्दित  पाते  हैं  , उत्साहित  पाते  हैं |

 यहां  ग्यान ,  विग्यान   व मनोविग्यानं के  अदभुत संयोग 
को  महसुस करने  का  अवसर  प्राप्त  होता  हैं , मन  कृष्णमय  हो  जाता  हैं , दूर  कहीं  उनकी  बांसुरी  की  धुन्  मन  को  मोहने  लगती  हैं , मन  निर्मल  हो  जाता  हैं  | 

ठीक  इसके  विपरित  परिस्थितियों  में भी  हम  कुछ  ऐसा  ही  महसुस  करते  हैं  | जब  हम  किसी  अर्थी  को  कंधा  देते  हैं , वे  भले  ही  किसी  जाति , धर्म  के  हों  पर  उस  क्षण सबके  मन  में  एक  ही  भावना  उद्देलित  रहती  हैं  कि यह   संसार  मिथ्या  हैं  सब  निरर्थक  है |

छल  कपट  बईमानी  का  कोई ओचित्य  नही  है | अर्जित धन सब माटी है , चिंतन ईश्वरीय साधना की ओर मुडने लगता है  | मन  कृष्णमय  हो जाता है  पर यह कुछ क्षण का मेहमान होता है |

 कार्य स्थल पर पुन: लोग , लालसा  की ललक में मन को तृष्णामय कर किसी बेबस से बिना कुछ अर्जित किये फाइल न जाने  क्यूँ  अंगद की पांव की तरह एक टेबिल को जकड लेती है  और मन मृत्यू और योग की सत्यता को  नकारते हुए उसकी  निरर्थक परिभाषा को गढने लगता है , भावनायें अट्टालिकाओ में परीवर्तित होती रहती है | 

मन अध्यात्म को पाखण्ड का अधिष्ठात्री घोषित कर  देता है  कि अचानक ही कोई अपना लाइलाज बीमारी से ग्रसित हो कर खास अर्जित धन लूट कर ले जाता है  य़ा पुत्र मोह में उनके जीवन को नया आयाम  देने में पूरी सम्पदा स्वाहा हो जाती है  और परिस्थितियां व्रधाश्रम  की राह दिखाती  सी प्रतीत होती हैं |

 हताश मन पुन: कृष्णमय हो जाता हैं , अब अध्यात्म की बातें सच्ची  लगने   लगती  हैं ,मृत्यू  शाश्वत  दिखने  लगती  है 

अशांत  मन  में  योग  शांति  के  बीज  बोता   ह्रदय  को  पुन: कृष्णमय  करता  हैं 

क्या  इसे  हम  स्थाईत्व  नहीं  दे  सकते ? सरकार  की  ज़न कल्याणकारी योजनाओ को गति देने में क्या कृष्णमय मनभावना को उसका आधार नही बनाया जा सकता हैं? 

यदि 'हाँ' तो अभी देर कहाँ हुई है , कृष्ण तो हमें पुकार ही रहे हैं, उनकी मीठी बांसुरी की धुन में खो जाने के लिए |

राधा भी  कही आसपास ही है  , रासलीला का अवसर ढूंढ रही है  , कृष्णमय हो जाने के लिए | 
      

                                 लेखक    डा. वासु देव यादव

गुरुवार, 18 जून 2020

Muskuraiye

मुस्कुराहट  ही  ज़िन्दगी  हैं 
मुस्कुराने  की  वजह  न  ढून्ढे  ज़िन्दगी  खोज  में  गुजर  जायेगी 
वेवजह   मुस्करा  कर  देखें  ज़िन्दगी  संवर  जायेगी  |समझने  की  कोशिश  करें ,दीपक  बोलता  नही , उसका  प्रकाश उसकी  उपस्थिती  को  दबंगई  से  साबित  करता  हैं कोई  भी  ब्यक्ती  गलत नही  होता ,बस  उसकी  सोच  आपसे  नही  मिल  रही  हैं  
यदि  आप  सही  हैं  तो  पहले  उसकी  विचारधारा  पर  थोड़ा मुस्कुराईये  ,आनन्द  लीजिये  ,फिर उसे अपनी   विचारधारा  में शामिल  करने  के  लिए ,भले  ही  आपको  मैराथनं दौड  लगानी  पडे  आप  लगाईये ,पर  अपनी  हालत  पर  मुस्कुराना  मत  भूलिये  |
अंधेरे  में  उसे  राह  दिखाने की  कोशिश  के  साथ साथ   अपने  लिए  भी  एक  साथी  तलाश  करने  का  प्रयत्न  जारी  रखिये || यही  कोशिश  एक  दिन  आपको  रौशनी  के  स्त्रोत  तक  अवश्य  पहुँचा  देगी  ऐसा  विश्वास  रखिये |
 मैं  आपको  एक  उदाहरण  से  समझाने  का  प्रयास  करता  हूँ कि  आप  न्यूज  पेपर  पढते  हैं  य़ा  टी  वी  पर  समाचार  देख  रहे  होते  हैं  तो  वर्तमान  स्थिति  देख  कर   अधिकांश  के  मन  में  तूफान  अवश्य  उठते  होंगे |

 उसके  जलजले  की  अस्पष्ट  शब्दों  की  टोकरी  से  कुछ  निशब्द  को  वाक्य  बन  कर  बहार  गिर  जाने  दें  उस  पर  आप  मनन  करें  फिर  धीरे  से  मुस्कुरायें 
फिर  उन  वाक्यों  को  अपनी  कल्पनाओं  के  माला  में  पिरो  कर  इंटरनेट  की  दुनिया  में  डाल  दें  किंतु  आप  आवेश  में कदापी  न  आयें और  मुस्कुराना  जारी  रखे ,परिणाम  का  इंतजार  करें ,आप  पायेंगे  कि  इंटरनेट  में  अचानक  एक  भूचाल  आता  हैं और  समाज के  लिए  अवान्छनिय  दो  पैरों  वाला  वायरस  उसमे  फंस  कर  अपना  अस्तित्व  खो  बैठता  हैं | अब  तो  आप  निश्चित  रुप  से  स्वयं  ही  मुस्कुरायेंगे|   मैं  भी  आपसे  यही  कहना  चाह  रहा  था  कि  आप  यूँ  ही  हमेशा  मुस्कुराते  रहिये

सोमवार, 15 जून 2020

Durdarshita

उन्होंने प्रतिमाये नहीं बनवाई
संस्थानों के प्रतिमान बनाये !
उसकी आँखों के सामने एक ऐसा भारत था जहां आदमी की उम्र 32 साल थी। अन्न का संकट था। बंगाल के अकाल में ही पंद्रह लाख से ज्यादा लोग मौत का निवाला बन गए थे। टी बी ,कुष्ठ रोग , प्लेग और चेचक जैसी बीमारिया महामारी बनी हुई थी। पूरे देश में 15 मेडिकल कॉलेज थे। उसने  विज्ञानं को तरजीह दी।
यह वह घड़ी थी जब देश में  26 लाख टन सीमेंट और नो लाख टन लोहा पैदा हो रहा था। बिजली 2100 मेगावाट तक सीमित थी। यह नेहरू की पहल थी। 1952 में पुणे में  नेशनल वायरोलोजी इन्स्टिटूट खड़ा किया गया। कोरोना में  यही जीवाणु विज्ञानं  संस्थान सबसे अधिक काम आया है। टीबी एक बड़ी समस्या थी। 1948 में मद्रास में प्रयोगशाला स्थापित की गई और 1949 ,में टीका तैयार किया गया। देश की आधी आबादी मलेरिया के चपेट में थी। इसके लिए 1953 में अभियान चलाया गया । एक दशक में  मलेरिया  काफी हद तक काबू में आ गया।
छोटी चेचक बड़ी समस्या थी। 1951 में एक लाख 48 हजार मौते दर्ज हुई। अगले दस साल में ये मौते 12 हजार तक सीमित हो गई। भारत की 3 फीसद जनसंख्या प्लेग से प्रभावित रहती थी। 1950 तक इसे नियंत्रित कर लिया गया। 1947 में पंद्रह मेडिकल कॉलेजों में 1200 डॉक्टर तैयार हो रहे थे। 1965 में मेडिकल कॉलेजों की संख्या 81 और डॉक्टरस  की तादाद दस हजार हो गई। 1956 में भारत को पहला AIMS मिल गया। यही एम्स अभी  कोरोना में मुल्क का निर्देशन कर  रहा है। 1958 में मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज और 1961 में गोविन्द बल्ल्भ पंत मेडिकल संस्थान खड़ा किया गया।
पंडित नेहरू उस दौर के नामवर वैज्ञानिको से मिलते और भारत में ज्ञान विज्ञानं की प्रगति   में मदद मांगते। वे जेम्स जीन्स और आर्थर एडिंग्टन जैसे वैज्ञानिको के सम्पर्क में रहे। नेहरू ने  सर सी वी रमन ,विक्रम साराभाई ,होमी भाभा ,सतीश धवन और अस अस भटनागर सरीखे वैज्ञानिको को साथ लिया। इसरो तभी स्थापित  किया गया/  विक्रम साराभाई इसरो के पहले पहले प्रमुख बने। भारत आणविक शक्ति बने। इसकी बुनियाद नेहरू ने ही रखी। 1954 में भारत ने आणविक ऊर्जा का विभाग और रिसर्च सेंटर स्थापित कर लिया था। फिजिकल रीसर्च लैब ,कौंसिल ऑफ़ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रीसर्च ,नेशनल केमिकल लेबोरटरी ,राष्ट्रिय धातु संस्थान ,फ्यूल रिसर्च सेंटर और गिलास एंड सिरेमिक रिसर्च केंद्र जैसे संस्थान खड़े किये। आज दुनिया की महफ़िल में भारत इन्ही उपलब्धियों के सबब मुस्कराता है।                        अमेरिका की अम आई टी MIT का तब भी संसार में बड़ा नाम था। नेहरू 1949 में अमेरिका में MIT गए ,जानकारी ली और भारत लौटते ही IIT  आइ आइ टी स्थापित करने का काम शुरू कर दिया। प्रयास रंग लाये। 1950  में खड़गपुर में भारत को  पहला IIT मिल गया। आज इसमें दाखिला अच्छे भविष्य की जमानत देता है./ आइ आइ टी प्रवेश इतना अहम पहलु है कि एक शहर की अर्थव्यवस्था इसने नाम हो गई है। 1958 में मुंबई ,1959 में मद्रास और कानपुर और आखिर में 1961 में दिल्ली IIT वाले शहर हो गए।
उसने बांध बनवाये ,इस्पात के कारखाने खड़े किये और इन सबको आधुनिक भारत के तीर्थ स्थल कहा।
नेहरू ने जब  संसार को हमेशा के लिए अलविदा कहा ,बलरामपुर के नौजवान सांसद वाजपेयी  [29 मई 1964] संसद मुखातिब हुए /  नेहरू के अवसान को वाजपेयी ने इन शब्दों में बांधा '' एक  सपना था जो अधूरा रह गया ,एक गीत था जो गूंगा हो गया ,एक लौ अनंत में विलीन हो गई , एक ऐसी लो जो रात भर अँधेरे से लड़ती रही ,हमे रास्ता दिखा कर प्रभात में निर्वाण को प्राप्त हो गई। और भी  बहुत कुछ कहा।
आज़ादी की लड़ाई लड़ते हुए  वो 3259 दिन जेल में रहा। उसने सच में कुछ नहीं किया। लेकिन कोई  पीढ़ियों की सोचता है ,कोई रूढ़ियों की।

Shikshit kaun

आप बताइए शिक्षित कौन ???

टी एन शेषन मुख्य चुनाव आयुक्त थे तब एक बार वे उत्तर प्रदेश की यात्रा पर गए। उनके साथ उनकी पत्नी भी थीं। रास्ते में एक बाग के पास वे लोग रुके। बाग के पेड़ पर बया पक्षियों के घोसले थे। *उनकी पत्नी ने कहा दो घोसले मंगवा दीजिए मैं इन्हें घर की सज्जा के लिए ले चलूंगी। उन्होंने साथ चल रहे पुलिस वालों से घोसला लाने के लिए कहा।* 

पुलिस वाले वहीं पास में गाय चरा रहे एक बालक से पेड़ पर चढ़कर घोसला लाने के बदले दस रुपये देने की बात कहे, लेकिन वह लड़का घोसला तोड़ कर लाने के लिए तैयार नहीं हुआ। टी एन शेषन उसे दस की जगह पचास रुपए देने की बात कही फिर भी वह लड़का तैयार नहीं हुआ। *उसने शेषन से कहा साहब जी! घोसले में चिड़िया के बच्चे हैं शाम को जब वह भोजन लेकर आएगी तब अपने बच्चों को न देख कर बहुत दुखी होगी, इसलिए आप चाहे जितना पैसा दें मैं घोसला नहीं तोड़ सकता।*

इस घटना के बाद टी.एन. शेषन को आजीवन यह ग्लानि रही कि *जो एक चरवाहा बालक सोच सका और उसके अन्दर जैसी संवेदनशीलता थी, इतने पढ़े-लिखे और आईएएस होने के बाद भी वे वह बात क्यों नहीं सोच सके, उनके अन्दर वह संवेदना क्यों नहीं उत्पन्न हुई? शिक्षित कौन हुआ ? मैं या वो बालक ?*

*उन्होंने कहा उस छोटे बालक के सामने मेरा पद और मेरा आईएएस होना गायब हो गया। मैं उसके सामने एक सरसों के बीज के समान हो गया। शिक्षा, पद और सामाजिक स्थिति मानवता के मापदण्ड नहीं हैं।*

प्रकृति को जानना ही ज्ञान है। बहुत सी सूचनाओं के संग्रह को ज्ञान नहीं कहा जा सकता है। जीवन तभी आनंददायक होता है जब आपकी शिक्षा से ज्ञान, संवेदना और बुद्धिमत्ता प्रकट हो।

शुक्रवार, 12 जून 2020

Aarthik sudhar package kiki samajik samiksha

आर्थिक सुधार पैकेज की सामाजिक समीक्षा 

आर्थिक  सुधारो  के  लिये नीति  निर्धारकों  का  जानमानस  का  ईश्वरीय  रुप  की  अनुभूति  का  होना , उनका  प्रगाढ विश्वास  होना  कि  हर  मनुष्य  में  ईश्वर  का , खुदा  का वास  होता  हैं , उन्हें  प्रसन्न  करने  में  कोई  भी  त्रूटी  हो  , धिक्कार  हैं  हमें , मात्र  यही  भावना ही  भारत  को  आर्थिक  रुप  से  मजबूती  प्रदान  कर  सकती  हैं  जो  की  नितांत  असंभव  कार्य  है|
यदि  ऐसा  न  हो  पाये  तो कम  से कम  इंसान  समझ  कर  नरसिम्हा  राव  कार्यकाल  के प्राय: हर  मामलों  के  मुखिया  रहे  श्री ए  एन  वर्मा  व   श्री  नरेश  चन्द्रा  जी की  तरह  जनहित  में  स्पष्ट  मेमो  लिखना  सीख लें , ज़िसका  वर्तमान  सरकार  में  नितांत  अभाव  हैं | कोरोना काल   में  नित्य  नए  बदलते  मेमो  इसके  सशक्त उदाहरण  हैं चुकि यहां  1985-87 के अधिकतर सचिवों के हाथ में वास्त्विक आर्थिक  रुप रेखा को धरातल पर लाने इनमें जज्बात का नितांत अभाव हैं | ये पब्लिक को मात्र बेले डांस दिखा करे फिलहाल लौक डाउन काल में सत्ता का मजा लेना सीख रहे हैं |

शनिवार, 6 जून 2020

Hathini mar gayi

हथिनी मर गयी 

एक हथिनी हैवानियत का शिकार हो गयी , इसका मुझे दुख है  किंतु इससे भी  कई गुना ज्यादा दुख मुझे इस बात का है  कि आज इस संदर्भ में राहुल गांधी तक से सवाल पूछने वाले लोगों की संवेदनायें उस वक़्त कहाँ चली गयी थी जब रेल लाइन में , ट्रेन में , सड़क पर , ट्रक दुर्घटना से , भूख से , प्यास से एक http//multi135.blogspot.com  नही सैकडो मजदूर मात्र शासन की लापरवाही से वक़्त के हाथों कत्ल हो रहे थे | उस वक़्त को थामने में सक्षम , मजदूर पक्ष में बड़ी बड़ी बात करने वाले , उसके पैरों तले  बिछ जाने वाले उस वक़्त चुप क्यों थे | यह कैसी राजनीति हो रही है | हम किधर जा रहे है | 
                   डा. वासु  देव  यादव

China darta hai

चीन डरता है 
 
विदेश नीति के नाम पर लगभग वर्ष भर विदेशी उडान पर रहने वाले प्रधान सेवक , पब्लिक टेक्स का अरबों रू खर्च कर  देने में माहिर , यदि हम मात्र नेपाल दौरे की ही बात करें तो वहां के दौरे का खर्च जो निकल कर  आया है वह है  ' एक करोड इक्सठ लाख दो सौ अंठानवे रू ' और उसका परिणाम क्या निकला ? नेपाल जो हमारे पैर की धूल है  , आज हमें आँखें  दिखा रहा है  और अफवाह फैलती  है  कि चीन प्रधान सेवक से डरता है , इससे भी  कोई फूहड़ मजाक जनता के साथ हो सकता है  क्या ?
यह एक विचारणीय प्रश्न  है |
                    Dr. Vasu Dev Yadav

बुधवार, 3 जून 2020

Sonu Sood ki niswarth kary shaly

सोनू सूद की  निस्वार्थ कार्य शेली 
        सुप्रीम कोर्ट का धन्यवाद कि अन्त्तत: उन्होने भारत सरकार को , स्वयं के खरचे पर मजदूरों को घर पहुचाने का आदेश दिया , साथ ही हादसों  की पूनरावृती न हो एवं उनकी सुविधायें और बढाई जायें ,  इस पर  भी  अपनी ज़िम्मेदारी तय करने की सलाह दी |
        मन कुछ सुकुन का एहसास कर पाता कि झीरम कांड पर N .I .A . की जांच पर पब्लिक का सवालिया निशान लगाना कि जांच गंभीरता से नही हुई है  , मन को पुन: व्यथित  कर  जाता है |
        मैं सर को एक जोर का झटका देता हूँ कि सोनू सूद का चेहरा एक फरिश्ते की मानिन्द मेरी कल्पना में अवतरित हो जाता हैं कि किस तरह वे रात दिन प्रवासी मजदूरों के लिए समर्पण भाव  से लगे हुए है  | करोडो रू न्योछावर कर  दिये और हवाई  चप्पल को हवाई जहाज  में बैठा दिया | उनके इस जज्बे को मैं बारम्बार प्रणाम करता हूँ |
      सोनू सूद जी का प्रसंग आ गया तो मन कुछ हल्का हुआ | चाय आ चुकी  थी | बरामदे में रखी कुर्सी पर बैठ कर मैं चाय की चुस्की का आनन्द लेने लगा कि सामने रखी अखबार  की हैडिंग पर नजर पड़ी , लिखा था कि कोरोना संक्रमन के कठिन समय में उनके साहसिक नेतरत्व ने देश के करोडों लोगो में सुरक्षा का भाव पैदा किया | यहाँ यह कहने की आवश्यकता नही रह जाती है  कि  किस तरह वे देश में फैल रहे कोरोना संकरमन से अंजान बन शिवराज जी की ताजपोशी  कर रहे   थे जब  की  देश  असुरक्षित  था |
देश  के साथ इससे ज्यादा गंदा मजाक कुछ और  हो ही नही सकता था | सर दर्द से फटा  जा रहा था | मैं व्याकुल था | टेबल पर रखी चाय ठंडी  हो चुकी  थी |

                        डा . वासु देव  यादव

Supreme court ka lajabaw faisla

सुप्रीम कोर्ट का लाजवाब फैसला 
      सुप्रीम कोर्ट ने बाहुबली राज्य के खात्मे की दिशा में एक महत्तवपूर्ण फैसले पर अपनी मोहर लगायी  है  कि कोई भी  राजनीतिक पार्टी यदि किसी अपराधी  को टिकट देती है  तो पार्टी को उनका आपराधिक रिकोर्ड मीडिया की समस्त शाखाओ में सार्वजनिक करना होगा , साथ ही पार्टी को यह बताना भी  आवश्यक होगा कि उन्होने उस  अपराधी को टिकट क्यो दिया | ऐसा न करने पर उनका यह क्रत्य कोर्ट का अपमान माना जायेगा |
        कोर्ट का यह फैसला स्वागतेय होते हुए भी  इस फैसले में कुछ अधुरेपन का एहसास ने हमें बाध्य किया कि मैं भी  देश के पटल के सामने अपने विचार रखूँ कि  सुप्रीम कोर्ट इसमें एक कलोज और जोड़ दे कि एक पार्टी से जीत कर  आया विधायक य़ा सांसद  यदि जनता के वोट का अपमान कर  देश हित की आड़ लेकर निज हित में दूसरी पार्टी ज्वाइन करता है  तो  उसे य़ा तो अयोग्य करार  दिया जाये य़ा उसे पुन: जनता का आदेश लेने चुनाव मैदान  में जाने की सलाह दी जाये व विधायक , सांसद चुनाव लड़ने के लिए ग्रेजूऐशन की सीमा तय कर दी जाये तो भारत अकस्मात ही एक पूर्ण शिक्षित विधान सभा व संसद   के रुप में विश्व में अवतरित हो जायेगा | आप का क्या कहना है ?
                   डा .  वासु  देव यादव

शनिवार, 30 मई 2020

वास्त्विक पप्पू 
       नीति निर्धारक भारत सरकार टूट गए चकले बेलन से भारत के लिये रोटियां बना रही है , परिणाम में यत्र तत्र सर्वत्र भूख से ही सम्बंधित समस्त अराजकता फैल रही है |
        स्टेट ऑफ वर्किंग इन्डिया के अनुसार 80% लोग 10000 से कम कमाते हैं | विश्व बैंक के वर्ल्ड ड़ेवलपमेंट इन्डीकेटर के अनुसार 75% भारतीय असुरक्षित रोजगार में हैं | नेशनल सैंपल  सर्वे के अनुसार देश के एक तिहाई लोग रोजी मजदूरी करते हैं |
           यही कारण  था कि अचानक हुए नोटबंदी की तरह अचानक हुए लौक डाउन से भारत की एक तिहाई जनता सड़क पर आने को मजबूर हो गयी ज़िससे कोरोना संक्रमन बड़ी तेजी से हिंदुस्तान में अपने भयावह रुप में आ गयी | मरकजी के लोगों ने इसमें आग में घी का काम किया और सरकार की अव्यवस्था ने इसमें मिरची छिड़क दी |
           विश्व तो दो आपदायों  से घिरी  थी किंतु भारत अपने हाथों स्वसर्जित तीन आपदायों से घिर  चुकी  थी  1 स्वास्थ्य आपदा . 2 आर्थिक आपदा  3 मानवीय आपदा | इसमें सबसे दुखद पहलू या हास्यास्पद कहें कि भारत सरकार को खुद गुमान नही था कि ऐसा हो जायेगा , जैसे कि वो विदेशी शासक हो और उन्हें भारत की आर्थिक , भोगोलिक स्थिति का ग्यान न हो | यह तो वही बात हुई कि ड्राईविंग आती नही थी और कार थमा दी , दुर्घटना तो होनी ही थी |
          उपरोक्त कथन से शायद यह स्वमेव ही स्पष्ट है  कि हिन्द का वास्तविक पप्पू इनकी ही टीम से ही है , तभी तो आज भारत रक्त रंजित सड़क पर अपनी ही कारवां  की लाशों को लांघता हुआ रक्त रंजित रोटियां खाने को विवश है  और मासूम अंजाने में अपनी माँ की लाश को चुम्मी देने में ....| आप क्या कहेंगें इस संदर्भ में ?
                     Dr. Vasu deo yadav

शुक्रवार, 29 मई 2020

Pratadna ki parakashtha

प्रताड़ना की परकाष्ठा
        सत्ताधारी दल के वोटर हमारे अपने लोग हैं | मेरी हार्दिक  इच्छा हैं कि वे एक बार ट्रेन में गुजरात से बैठे और 8 दिन में भूख प्यास से लथपथ सिवान में उतरे और प्रत्यक्ष रुप से महसूस करें कि उन्हें अप्रत्यक्ष रुप से कितनी ह्रदय विदारक प्रताड़ना दी जा रही है  उसके बाद समझाने की आवश्यकता नही पड़ेगी  कि व्यवस्था के प्रति इनके अनुभव कितने गहरे है |
         प्लेट फार्म पर पड़ी माँ की लाश  और उस ट्रक दुर्घटना में जमीन पर पड़ी माँ की लाश को अनाथ होते ये अबोध अपनी माँ को उठाने का प्रयास करते , रोते - बिलबिलाते उस मासूम को क्या  मालूम कि उसका आशियाना लुट चुका है , अनुभव हीन नेतरत्व की भेंट चढ चुका है | सड़क में , जंगल में , ट्रेन में , ट्रक में एवं रेल की पटरियों में लाशों की ढेर से प्रश्न यहाँ स्वयंमेव अंकुरित है  , वक़्त का तकाजा हैं कि हम फैसला करें कि हिंदुस्तान का वास्तविक pappu कौन है ? शायद वो जो लौक डाउन के 2 माह पूर्व से ही लौक डाउन करने की गुहार कर रहा था य़ा फिर वो जो भूखे प्यासे रख कर मजदूरों को ट्रेन में भारत दर्शन करवा रहा था | यही वो लोग है ज़िन्होने जनता  को गुमराह करने में phd कर  रखी है  और इनके भक्तों ने इनके हर  गलत कार्यों में हाँ जी  , हाँ जी लगा रखी है |
            परिस्थितियां अत्यन्त ही गम्भीर हैं , शायद लौक डाउन के बाद लूट पाट , डकैती की घटनायें आम होने वाली हैं , बेचारी पुलिस , इनकी संख्या सीमित है , पूरी विपदा इन पर ही पड़ने वाली है | 20 लाख करोड रू का पैकेज और मजदूरों के हाथ खाली , इससे भि ज्यादा क्रूर मजाक इनके साथ कुछ और हो सकता है  क्या ? यह मेरे समझ से परे है , आप क्या कहेंगें इस सन्द्रभ में ? 
                             डा . वासु देव यादव

गुरुवार, 28 मई 2020

BAT WOMEN

बैट वुमैन

          शी झेंगली उर्फ बैट वुमैन , डिप्टी डायरेक्टर , वुहान इन्स्टीटयूट ऑफ वायरोलोजी का यह कथन  कि विगयान का राजनीतिकरण दुखद है  , अपने अंदर एक कुटिल रहस्यों का संसार समेटे  हुए है  क्योकि यह बात बुहान लैब से आ रही है  | यदि अब्दुल कलाम यही बात विश्व पटल पर रखते तो इसके मायने एकदम भिन्न होते |
        चमगादड़ के अंदर का वायरस उसकी संरचना के अनुरूप होता है और यह श्रष्टी के प्रारम्भ काल से ही है  जो अन्य प्राणी के लिए घातक है | यही चमगादड़ की प्रकृति है  और प्रकृति  से छेड़छाड़ विध्वंस को ही जन्म देती है ज़िसे आज विश्व भुगत भी रहा है |
      मेरे इसी कथन से चाइना  की कुटिलता स्पष्ट है  कि उसने इस का परीक्षण मनुष्य में वायरस की तीवर्ता नापने के लिए किया | अफवाहों का बाजार गर्म है  कि अब इससे भी  खतरनाक वायरस बहुत जल्द ही विश्व जगत के लिए एक नयी तबाही लेकर अवतरित होने वाला है |
         भसमासुर चाइना की विस्तारवादी सनक उसकी विक्रत मानसिकता से सभी परिचित हैं | यह वक़्त हैं कि विश्व एकजुट हो कर  बुहान लैब  के अस्तित्व को नेस्तनाबूत कर  दे अन्यथा विश्व को नेस्तनाबूत होने में देर नही लगेगी |
                                      डा . वासु देव  यादव

बुधवार, 27 मई 2020

Arunachal ki safalata

अरुणाचल की सफलता 
    भारत सरकार के थिंक टेंक पर शायद यह एक करारा तमाचा हो सकता है  | अरुणाचल प्रदेश के सियांग ज़िले लाइनेंग गांव के गांव बूढा  य़ा बूढी के द्वारा , ज़िन्होने अपनी दूरदर्शिता से कोरोना की भयंकरता को समझते हुए 5 मार्च से अपने क्षेत्र में अंतराष्ट्रिय पर्यटको के आने में रोक लगा दी थी | उस वक़्त सत्ता धारी पार्टी कोरोना से बेपरवाह  मध्य प्रदेश में सत्ता को पलटने मशगूल थी | 
सुनने में ही बड़ा अजीब लगता है  कि प्रारम्भ से ही इन्हे अपने देश की चिंता नही थी | 17 मार्च से अरुणाचल ने आपसी सहमती से भारतीय पर्यटकों  को भी  अपने क्षेत्र में आने से रोक दिया था | उस वक़्त तक सत्ताधारी दल मध्य प्रदेश में सत्ता हड़पने के अपने  फाइनल राउन्ड पर थी और इधर अरुणाचल के गांव बूढा एवं बूढी (बुजूर्ग ) W .H .O . के दिशा निर्देशों को नागालेंड सहित अपने प्रदेशों में लोगो से कडाई से पालन करवा रही थी | इसी का सुखद परिणाम है  कि आज अरुणाचल एवं नागालेंड कोरोना मुक्त प्रदेश हैं | 
       इन प्रदेशों की यह गौरवमयी स्थिति को देखते हुए यदि किसी जन साधारण के मन में यह ख्याल आ जाये कि काश इस क्षेत्र से ही यदि आज मेरा प्रधान मंत्री होता तो शायद भारत की यह दूर्दशा न होती और अंधेर नगरी  चौपट राजा वाली कहावत चरीतार्थ न होती | 
         डा. वासुदेव यादव

गुरुवार, 21 मई 2020

RAJ DHARM

राज धर्म
      आज मुझे अटल जी बरबस याद आ गए साथ में मोदी जी का वह वकत्वय भी याद आ गया जो उन्होने प्रथम लौक डाउन के वक़्त दिया था कि यह कोरोना संकट काल है  इसका सामना हमें राजनीतिक स्तर से ऊपर  उठ कर  , मिलजुल कर  करना होगा | सभी घर के अंदर रहे अभी यही सच्ची देश भक्ती होगी |
      प्रियंका जी के द्वारा  भेजी गयी 1000 बसों में से लगभग 900 बसें ठीक पाये जाने के बाद भी  उन्हें मजदूर हित में न लगाना  , परिणामतः बसों का खाली लौट जाना मन को बुरी तरह से कचोट गया है |
       गुजरात गोधरा कांड के वक़्त ठीक ऐसे ही शायद व्यथित हो कर  ही अटल जी ने मोदी जी को कहा  था  कि राज  धर्म का पालन करो पर आज अटल जी नही है |
       मजदूर हित में भेजी गयी बसों के संदर्भ में आज मोदी जी को पूरे हिंदुस्तान में यह कहने वाला कोई नही है  कि मोदी जी यह वक़्त राज धर्म पालन करने का है  , बहुत ही दुखद स्थिति है यह |
        प्रियंका जी ने तो अपना राज धर्म बखूबी  निभाया , उन्होने मोदी जी के दिये वकतव्य का सम्मान करते हुए ही यह निर्णय लिया था |
       बसों के संचालन के अड़चन के बाद उन्होने खुले दिल से कहा  कि आप उन बसों में अपने झंडे , बैनर लगवा लो किंतु बसों को तत्काल रवाना करवा दो , परिणाम में लगभग 50000 मजदूर तत्काल घर पहुँच जायेंगे पर बहरी व्यवस्था के आगे उनकी एक न चली और न ही मोदी जी ने भी  राज धर्म का पालन किया | हिंदुस्तान इसे याद अवश्य रखेगा |

बुधवार, 20 मई 2020

Aatm nirbharta ka blue print?

पिता  बोले ,गांव चलना  हैं | 8साल  की  बेटी  ने  नई  फरौक  पहनी , माथे  पर  झोला  रखा  ओर  चल  पड़ी |
उसकी माँ  भी  गर्भ  में  पल  रहे  दुनिया  में  आने  को  ऊतावला .  .अजन्मे  बच्चे  को  सांत्वना  देती  न  खत्म  होने  वाली  सड़क  पर  सर  पर  गठरी  लिए  पति  के  संग  निकल  पड़ी  .....जो  शने शने  कारवां  में  बदलता  चला  गया |
     पिता की दूरदर्शिता , माता का धैर्य व बेटी की हिम्मत को तोड़ने का कुप्रयास करती , व्यवस्था की  बरसती लाठिय़ां अव्यवस्था के वास्तविक अपराधी  उन्हें प्रदेश के बार्डर पर रोकने लगे हैं  !...... उनकी  सकारात्मक सोच को नकारात्मक भाव में तबदील करने की अप्रत्यक्ष उनकी कोशिश कारवां की संकल्प शक्ति पर कुठाराघात करती , उन्हें हतोत्साहित करती , मन से आत्म निर्भर होने की उनकी द्रढ इच्छा शक्ति में सेंध मारती , उन्हें रोंदती , मसीहा का चोला  ओढे..  ... कुछ लुटे - पिटे को ट्रेन व बस से घर पहुँचा देने का समाधान देती , क्या यही ब्लू प्रिंट था ....एक देश को आत्म निर्भर बनाने का |
     शायद अंग्रेजों से किया गया कोई वायदा निभाया गया है | तभी तो धूप में नंगे पांव तपती सड़क पर उस आठ साल की बच्ची को चलवाया गया है | मैं कलम हूँ , डगर नही फिर भी  चलती हूँ , ग्रामीण परिवेश में जन्म लेती उनकी भावनाओं में पलती हूँ |

सोमवार, 18 मई 2020

Supreme court versus Madras High court

आज पुन: कुल दुर्घटनाओं में 34 मजदूर काल कवलित हो गए | इस ह्रदय विदारक घटना का सबसे दुखद पहलू यह रहा कि 5 मासूम अनाथ हो गए ज़िनके पास सिर्फ माँ थी | प्रवासी मजदूर की दयनीय हालात पर मद्रास हाई कोर्ट की टिप्पणी आयी थी '' मजदूरों की यह हालत देख कर कोई भी अपने आंसू नही रोक सकता '' वहीं एक याचिका पर एक दिन पूर्व सुप्रीम कोर्ट की भी टिप्पणी आयी थी कि '' रात को कोई खुद ही पटरी पर सो जाये तो उसे कैसे रोक सकते हैं | '' (दैनिक भास्कर , 16 मई ) | यह विचार भिन्नता न्याय की असमिता पर प्रश्न चिन्ह दागता तो अवश्य है , चुकि सुप्रीम कोर्ट का फर्ज था कि वह त्रूटी श्रोत को चिन्हित कर मजदूर हित में आवश्यक दिशा निर्देश केन्द्र सरकार को देती | परिणाम में इस कठिन समय में भी मजदूरों के दिल को कुछ ठंडक तो जरूर मिलती | मैने जब कुछ लोगों के पास यह बात स्पष्ट करनी चाही तो न जाने क्यूँ , कैसे हुआ कि यह बात हिन्दुत्व की परिभाषा में उलझती चली गयी और वे सब मेरे खिलाफ हो गए और मुझे घेरने की कोशिश करने लगे | जहां तक मैं खुद को समझता हूँ कि मैं एक सच्चा हिन्दू हूँ | सभी धर्मों का मर्म एक है , समझता हूँ | मेरी तरफ से धिक्कार है उनको , ज़िन्हे श्री राम जी सिर्फ अयोध्या में ही दिखते है | नही दिखता मजदूरों के अंदर , जो आज भी दीन - हीन को सम्बल दे रहे है , मानो कह रहे हैं कि तुम्हे बार - बार गिर कर भी बार - बार उठना है | आसूओं से लिखा जायेगा यह काला इतिहास | आने वाली पीढिओं के मासूमों को यह डरायेगी | बाल मन उस वक़्त भी कुरेदेंगी नानी - दादी को , सुनेगें आज के भयावह किस्से | उल्टेंगे , पुल्टेंगे , खोजने की कोशिश करेंगें उनके पैर के छालों को | इसके झंडा वरदार श्री राम जी को तब भी भूनायेंगें | लोगों को श्री राम के ही नाम पर पुन: भरमायेंगे , कहेंगें - दशरथ नन्दन नही , जय श्री राम कहो , जो नही कहेंगें उन्हे ये देश द्रोही य़ा पाकिस्तान की राह दिखलायेंगें | चलता रहेगा यह खेल यूँ ही | अफसोस हम न रहेंगें और हिन्दू ही हिन्दुत्व की भूल भुलैया में भटकता रहेगा |

रविवार, 17 मई 2020

Hadsa banam hatya

हादसा बनाम हत्या मजदूरों के घर वापसी को को ले कर मन में बस तलखियां हैं जेहन में सरकार की अनुभवहीनता व उनकी नाकामियां हैं किसी ने मुझसे कहा__ शासन कर के देख लो, आटा दाल का भाव मालूम पड जायेगा ा मजदूर रुकते नही , सरकार क्या करें ? मुझसे पुछते हैं हैं आप ही बताईये पैदल चल रहे मजदूरों को खाना देना कवारेंटैंन करना सेनेटाईज़ करना क्या छोटी बात है ? यह कह कर शायद सरकार अपनी पीठ थपथपाने में व्यस्त है जबकि भारत संक्रमण में 11वां खतरनाक देश बन चुका है | सरकार स्वीकार नही करती कि मजदूरों की संख्या बल के आधार पर इनके पूर्व कार्य स्थल पर हम इन्हें छत दे नही पाये | दो वक़्त की रोटी तो दूर.....एक वक़्त भी नियम से दे पाने में हम असमर्थ रहे , भ्रष्टाचार ठीक नाक के नीचे ठहाके लगाती रही और मजदूर भूख से बिलबिलाते रहे | सरकार फैक्ट्री मालिको से कह नही सकी कि इन्हें रोको , मैं नियम शिथिल करता हूँ , ई टिकट बनवा कर इनको दे दो , चिंता मत करो पर्याप्त ट्रेन , बस की व्यवस्था हो रही है | किंतु जब कुछ हुआ नही तो मजदूर का क्या , दिव्यांग भी सड़क पर आ गए , मासूम भी तपती डगर पर नंगे पाव चलने लगे | क्या ये सरकार की अयोग्यता का प्रमाण नही | जब किसी के पिता की मौत होती है तो अनाथ बच्चे का आत्म निर्भर होना उसकी मजबूरी होती है ठीक इसी प्रकार जनता की नजर में जब सरकार की मौत हो जाती है तो अनाथ जनता आत्म निरभर्ता का प्रयास करती है और इसी का परिणाम है सडको पर मजदूरों का सैलाब ..... भिनभिनाते , गिरते , मरते , कटते मजदूर | कटने की बात पर याद आया कि सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका में कहा हैं कि ''कोई रात में खुद पटरी पर सो जाये तो कैसे रोक सकते है ?'' सुप्रीम कोर्ट किस दवाब में है , कह नही पायी सरकार से कि यह स्थिति ज़िसने पैदा की वह इसका ज़िम्मेदार है और यह हादसा नही हत्या है हत्या | प्रश्न तो और भी कई ज्वलंत है जो भीड के साथ चल रही है , माँ भारती स्वयं व्यथित , अपने आंसू पोछ रही है |

शनिवार, 16 मई 2020

Meri bhawnayein

यह आलेख सत्य घटनायो पर आधारित उनका प्रतिरूप है | सकारात्मक विचार मन कितना उल्लसित कर देते है , ये शब्द इनके गवाह हैं और भविष्य में भारत सरकार की योग्यता का आकलन उनके उठाये गए कदम स्वयं करेगें | गौर फरमाये -. कोयलिया फिर कुकने लगी | गिलहरियां उछल उछल कर चढने लगी फिर पेडों पर ..... झूमने लगे वन वृक्ष पुनः मस्ती में | स्वच्छ नदियां इठलाने लगी , इतराने लगी हवायें भी , धरा मन भावन सी लगने लगी | निशा भी रात रानी सी महक गयी .... और ....न्नही .. चिडिया ..... बाग बाग - बाग चहक गयी | रेल की पटरियां भी सुस्ताने लगी .... बीच बीच में , रन - वे .... भी मुस्कराने लगा | सड़को ने फैला दी .... अपनी बाहें ..,. वनराज भी खुल कर विचरने लगा | बीमारियों , दूर्घटनायों से मौत में अप्रत्यासित गिरावट , मन प्रसन्नता से हत्प्रभ है | सदमे में हम क्यूँ रहे .... लौक डाउन से , लौक डाउन को सदमे में रहना है | हम अपनी प्रतिरोधक क्षमता आयुर्वेद व योगा से बढा लेगे | कोरोना को हम देंगे मौत , यह दुनिया को बता देंगे | चीन क्या है .... भारत के मनोबल के समक्ष , उसे हम धूल चटा देंगे | स्थापित होंगे विदेशी उद्योग कल - कारखाने अब भारत में , हम उसकी जाल बिछा देंगें | नौकरियां तो यूँ ..... यूँ आयेंगी नवयुवकों के पास | हम आसमान में तिरंगा फहरा देंगें |

Marnassan lakshman

हिन्द का लक्षमन मरणासन्न है चाइनीज आइटम से सोशल डिस्टेन्स ही वह संजीवनी बूटी है जिस से लक्षमन बचेगे | चीन ने कम कीमत का अनिस्थिसिया दे कर भारतीयता से बलात्कार किया है | समझना होगा कि चीन ने युद्ध रणनीति के तहत विश्व के खिलाफ कोरोना को एक जैविक हथियार के रुप में इस्तेमाल कर श्रिष्टी को त्रतीय विश्व युद्ध की कगार पर ला कर खड़ा करे दिया हैं कोरोना को पैदा करने का चीन ही विश्व का अपराधी है | सबूत के तौर पर - 1. बुहान में अचानक लाखों मोबाइल कैसे बंद हो गए | 2. बुहान से लगभग हजार कि . मी . की दूरी पर स्थित बीजींग व शंघाई में कोरोना प्रकोप क्यो नही ? इनके अन्य राज्य भी कोरोना मुक्त हैं ! कैसे ? 3. चीन से लगभग 3000 कि . मी . की दूरी पर स्थित 206 देश कोरोना से त्रस्त ! कैसे ? 4. इन देशों के अनेक सांसद , वी . आई . पी. , उनकी पत्नियां कोरोना की चपेट में किंतु चीन का राष्ट्रपती बिना प्रोटेक्शन के स्वस्थ कैसे ? 5 धरती की सबसे सुरक्षित जगह पेन्टागन में भी कोरोना की पहुँच कैसे ? 6. कोरोना को एक्सपोज करने वाले चीन के डाक्टर ली वेलियांग की मौत एक माह के भीतर क्यों ? 7. 1 जनवरी 2020 को ज़िनोमिक्स कम्पनी में हुए समस्त सैम्पल टेस्ट को नष्ट करने का चीन का अधिकृत आदेश ! क्यों ? 8. चीन की मीडिया प्रतिबंधित क्यों ? 9. भारत की मीडिया को भी खरीदने की कोशिश | पत्रकार हरवीर सिह नैन ने कहा - ' मैं नही बिकुँगा ! ' क्यों ? 10. सी.बी.सी. की रिपोर्ट , कनाडा ने अपनी सुरक्षा का हवाला दे करे चीन के तीन वैग्यानिकों को कनाडा से निकाला | 11. इजराइल बाइलोजीकल वार एक्स्पर्ट डेनीसोम ने idsa के ज़रनल में चीन कोरोना की सत्यता साबित की | चीन ने यह दुशकर्म विश्व की एकोनोमी को धराशायी करने के लिए किया जिसके परिणाम में चीन में स्थापित समस्त विदेशी कम्पनियों के शेयर जमीन पर आ गए हैं ज़िसे चीन ने कौडी के भाव खरीद लिया है | हालत सामान्य होने के बाद चीन इसी के बल पर विश्व से मुजरा करवायेगा | भारत में चीन के बाजार को देखते हुए यह स्पस्ट हैं की भारत भी बुरी तरह फंस जायेगा | यह ऐकाधिकार की लडाई है | यह वक़्त पप्पू और अंध भक्त के खेल खेलने का नही है | चीनी उत्पाद को पूर्ण वहिष्कार का वक़्त हैं | आइये हम हिंदुस्तान को मजबूत बनायें |

Meri salah

दो पारी की सफलता के बाद भारत सरकार लौक डाउन की तीसरी पारी खेलने पर गंभीरता से विचार कर रही हैं किंतु अपनी सभी व्यवस्थाओं के साथ सरकार यदि मेरी तीन बातों पर भी गंभीरता से अपनी चिंतन को सींचे तो इसके निमनलिखित सुखद परिणाम होने की पूरी संभावना हैं - 1. पूरे देश को डोर टू डोर सेनेटाइज किया जाये | हॉट स्पोट से बाहर आने की इजाजत उन्ही को मिले ज़िनका टेस्ट नेगेटिव आ चुका हो | साथ ही कोरोना टेस्टिग किट का निर्माण युद्ध स्त्तर पर किया जाये | 2. प्रत्येक व्यक्ति के लिए कोरोना टेस्ट अनिवार्य हो और नेगेटिव आने के पश्चात उसे एक प्रमाण पत्र जारी की जाये ज़िसे वो हमेशा पास रखे और किसी भी माध्यम से य़ात्रा करने से पूर्व उसका टेस्ट रिपोर्ट देखी जाये जैसे रेलवे बुकिंग खिडकी पर टिकट देने से पहले | 3. पूरे देश में भीलवाडा और chhattisgarh मोडल लागू किया जाये | इसके फायदे निम्नलिखित हैं - 1. देश को विद्रोह व भीडतंत्र से बचाया जा सकेगा | 2. रेल में आरक्षण एवं सोशल डिस्टेन्स की आवश्यकता समाप्त हो जायेगी | 3. अतिरिक्त ट्रेन की व्यवस्था की समस्या से निजात मिलेगी | 4. बस मालिक ज्यादा किराया ले कर भी य़ात्रियों से सोशल डिस्टेन्स का पालन नही करवा पायेंगे इससे उपजी अव्यवस्था से भी निजात मिलेगी | 5. आटो चालक भूख से मरने से बच जायेंगे | इन प्रयासों से भारत सरकार को अपनी एकोनोमिक दर को थामे रखने में काफी मदद मिलेगी और भारत को कोरोना के साथ रहने के लिए मजबूर नही होना पड़ेगा |

Nijikaran galat hai

एक आंधी चली थी सभी सरकारी विभागों का निजीकरण कर देने की ........ रेलवे/ऑर्डिनेंस/विद्युत/बैंक/शिक्षा/ एन0टी0पी0सी0/एल0आई0सी0/ जल निगम/ कोल इंडिया /स्वास्थ्य विभाग/ परिवहन/ संचार( बीएसएनएल) और न जाने कितने ही विभागों को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी थी। एक रोज एक हैवान आया। हां सही पहचाना #कोरोना ...... तब संपूर्ण भारतीय सरकार सहित जनता को भी याद आए सरकारी कर्मचारी । वही कर्मचारी जो अब तक निठल्ले कहे जाते थे । वही कर्मचारी जो कामचोर कहे जाते थे । वही कर्मचारी जिन्हें भ्रष्टाचारी बताते हुए निजी करण का गुणगान किया जाता था । वही कर्मचारी जिनसे देश की अर्थव्यवस्था खतरे में जा रही थी। वह कर्मचारी जब उसको परितोष ( सैलरी ) मिलती थी तो लोगों के पेट में दर्द होता था कि यह तो व्यर्थ खर्च किया जा रहा है । सरकार प्रत्येक मौके पर खर्च हो रहे मोटे बजट का हवाला देते हुए इसी सरकारी कर्मचारी की सुविधाओं में कटौती करती रहती थी। आज वह सब कहां है ..... आज वह न्यूज़ चैनल कहां है जो इन्हीं सरकारी विभागों को बेचने की तैयारी में इन्हें बेचने के लाभ गिना रहे थे ? वह न्यूज़ चैनलों के एंकर कहां हैं जो इन विभागों को बचाने के आंदोलन को दिखाने में परहेज कर रहे थे । आज वह मीडिया हाउस कहां है जो इन आंदोलनों को महज कुछ सिरफिरे आंदोलनकारियों की जिद कहा करते थे ? *सवाल तो उठेंगे..... और यह सवाल सभी सरकारी कर्मचारियों के हैं ।* इस मुश्किल वक्त में अपने परिवार को छोड़कर दिन-रात देश की सेवा में समर्पित *इन सभी सरकारी कर्मचारियों को हम दक्षिणा स्वरूप क्या देंगे ?* जब हालात बेहतर होंगे क्या फिर वही निजीकरण का तोहफा। मुझे उम्मीद है सरकार और जनता का नजरिया बदलेगा जरूर । आप सोच रहे होंगे आज अचानक यह सरकारी विभागों के निजी करण का जिक्र क्यों ? तो आइए आपको यह भी बता देते हैं कि पूरे देश में सभी सरकारी डॉक्टर, नर्स, बैंक कर्मचारी एवं स्वास्थ्य कर्मी है जो आपकी सेवा में दिन-रात अपना जीवन दाव पर लगाकर कर्तव्य पूर्ण करने में लगे हैं। यह वही स्वास्थ्य विभाग की टीम है जिनकी कर्तव्यनिष्ठा पर देश और देश के लोग प्रश्नचिन्ह लगाते रहे हैं । यह वही सरकारी पुलिस है जो अपना सर्वत्र आपकी सुरक्षा में लगाए हैं उनके लिए दिन है और ना ही रात। यह वही सरकारी सफाई कर्मी है जिनके कार्य में आप प्रतिदिन कमियां इंगित करते रहे हैं । यह वही सरकारी विद्युत विभाग है जिसकी बुराई का गुणगान करने का कोई अवसर आप नहीं चूकते थे। यह वही कोल कर्मचारी है जो विपरीत परिस्थिति मे कोयला उत्पादन कर बिजली को बंद होने नहीं दिया यह वही बैंक कर्मचारी हैं जिनके बैंकों का विलय किया जा रहा हैं या एक दूसरे बैंकों को आपस में मिलाकर उन बैंक कर्मचारियों की प्रतिष्ठा और उनके कार्य पर प्रशन्नचिन्ह लगाया जा रहा हैं। बैंक कर्मचारियों के वेतन वृद्धि नवंबर, १७ से लांबित पड़ी है, उन्हें बेकार समझा जा रहा हैं। कोल कर्मचारियों का ग्रेज्युटी सन 2017 से देने का मुद्दा लंबित पड़ा हुआ है आज वही आपके सुकून एवं सुविधा हेतु इस इस विषम परिस्थिति में देश की लाइफ लाइन (विद्युत) को अपनी शरीर की धमनियों में दौड़ रहे रक्त के निरंतर प्रवाह के समान निर्बाध रूप से व्यवस्थित कर रहा है, जिससे कि किसी भी आकस्मिक सेवा में व्यवधान न हो। यह वही रेलवे है जिसकी सेवाएं सुविधा का मूल्यांकन एक तुलनात्मक विवरण आप प्रतिदिन अपने व्याख्यान में करते रहे हैं। उसी रेलवे के कुछ डिब्बे में अस्थाई अस्पताल, रेल कोच फैक्ट्री कपूरथला में स्वास्थ्य कर्मियों के लिए PPE ड्रेसेस का निर्माण, सस्ते वेंटिलेटरका निर्माण आदि हो रहा है। सरकारी शिक्षकों की काबिलियत पर आप हमेशा प्रश्न चिन्ह लगाते रहे हैं आज वही शिक्षक अपने उसी समाज की रक्षा के लिए देश के बड़े वॉलिंटियर बनकर अपने प्राणों का दांव लगाए हुए हैं। और भी अनेकों ऐसे सरकारी कर्मचारी (युद्धवीर) हैं जो बिना किसी तरह की परवाह करें सदैव की तरह अपने दायित्व व कर्तव्यों का पूर्ण निष्ठा पूर्वक निर्वहन कर रहे हैं। ऐसे तमाम सरकारी विभाग है, एयर इंडिया, सरकारी तेल कोल इंडिया, कम्पनिया, सरकारी टीचर, सरकारी स्कूल के परिसर, इत्यादि जो आज काम आ रहे। बैंक कर्मचारियों से जन धन खाते खुलवाए, नोट बंदी में दिन रात काम करवाया और आज जन धन के खातों में पैसा देकर इन्हीं बैंक वालों से भुगतान करवा रहे हैं। क्या बैंक कर्मचारियों को वायरस का खतरा नहीं है? जब तक सरकारी सम्पतियाँ, सरकारी तंत्र, सरकारी विभाग हैं, तभी तक आप सरकार हैं, वरना आप का भी कोई बजूद नहीं, जिस पर अधिकार के साथ हुक्म चला सकें। स्थिति सामान्य होने के बाद सोचिएगा जरूर। **सरकार की हर विपदा में यही सरकारी कर्मचारी अपनी उसी वेतन धनराशि से सर्वप्रथम देश हित एवं अपने समाज के प्रति दायित्व का निर्वहन करते हुए अपने और अपने परिवार का 1-2 दिन का सर्वत्र दान करता रहा है ।* यह भी एक तरह से युद्ध ही है जिसमें यह पता नहीं कि कोरोना रूपी दुश्मन किस ओर से प्रहार कर देगा। सरकार से यह अनुरोध है कि कर्मचारियों के देश एवं समाज के प्रति त्याग, बलिदान एवं सर्वथ समर्पण को ध्यान में रखते हुए अपने आगामी निर्णयों के समय यह न भूलें की विपदा के समय सबसे पहले व्यक्तिगत, सामाजिक एवं आर्थिक रूप से सरकारी कर्मचारी ही हर लड़ाई की शुरुआत करता है एवं अंत तक अगर कोई उस लड़ाई को लड़ता है तो सरकारी कर्मचारी ही होता है। *सुन इस धरा के लिए मैं,* *बता और क्या क्या करूं मैं,* *बस यही आरजू शेष है मुझमे,* *कि सौ सौ बार मरूं मैं ।* *सौ सौ बार जियूं में ।* कोरोना#सरकारी कर्मचारी#पुरानी पेंशन#वेतन विसंगति#निजी करण#आंदोलन आप सभी से अनुरोध है कि आप हर माध्यम व्हाट्सएप, फेसबुक, टि्वटर, इंस्टाग्राम आदि के माध्यम से *सरकारी कर्मचारियों,अर्ध शासकीय कर्मचारियों * द्वारा संकट के इस समय में किये गए कार्यों को देश हित में अधिक से अधिक शेयर करें। जिससे यह मैसेज देश एवं हर प्रदेश के नीति निर्माताओं तक पहुंच सके। *जब तक सरकारी सम्पतियाँ, सरकारी तंत्र, सरकारी विभाग और सरकारी बैंक हैं, तभी तक आप सरकार हैं, वरना आप का भी कोई वजूद नहीं, जिस पर आप लोग अधिकार के साथ हुक्म चला सकें। स्थिति सामान्य होने के बाद सोचिएगा जरूर।* जय भारत, जय भारतीय।

Public ki najar mein sarkar ke faisle

जब शराब बंदी करनी थी, तो नोट बंदी कर दी ! जब टैक्स कम करके व्यापारियों को राहत देनी थी तो GST लगा दी ! जब AIIMS और यूनिवर्सिटी बनानी थी तो 3000 करोड़ की मूर्ति बनवा दी! जब 2 करोड़ नौकरियां हर साल देनी थी तो सबको चौकीदार बना दिया ! जब बेरोज़गारी हटानी थी तो पकौड़ों की रेहड़ी लगाने की सलाह दे दी ! जब भाईचारा बढ़ाना था तो सारे देश में हिंदू मुस्लिम में नफ़रत फैला दी ! बाढ़ रोकने के लिए बांध बनाने थे तो पूरे देश में अपनी पार्टी का मुख्यालय और कार्यालय बनवा दिये ! वायु मार्ग से जवानों को सुरक्षित भेजना था तो सड़क मार्ग से भेज कर 40 जवान शहीद करवा दिए ! जब कोरोना वायरस से बचाव के लिए रणनीति बनानी थी, तब ट्रंप की आरती उतारी जा रही थी ! जब मास्क बनवाने थे तब ग़रीबी छुपाने के लिए दीवार बनवाई जा रही थी । जब वेंटीलेटर ख़रीदने थे तो विधायकों को ख़रीदा जा रहा था। जब विदेशियों को रोकना था तब मध्य प्रदेश में सरकार बनाई जा रही थी ! जब डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए उपकरण मुहैया कराने थे तो ताली थाली पीटवाई जा रही थी। लॉक डाउन करने से पहले तैयारी करनी थी तो अपने भक्तों की संख्या चैक की जा रही थी। जब डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को सुरक्षा मुहैया करानी है लोगों को चेतावनी देनी है तो दिया/ मोमबत्ती जलाने की सलाह दी जा रही थी। अब_प्रवचन_दिये_जा_रहे_हैं ! ❓ 👉लॉक डाउन का सख्ती से पालन करें - आप 👉अपना ध्यान खुद रखें - आप 👉भूखों का भी ध्यान रखें - आप 👉बुजुर्गो का विशेष ध्यान रखें - आप 👉अपने घरों के गहने तक मेरे एकाउंट में दान कर दे - आप तो_बताओ_आपको_प्रधान_मंत्री_किस_लिए_बनाया है? सरकार की नाकामी पर बात करो तो कहते हैं कि सकंट की इस घड़ी में राजनीति ना करो। ❓

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Virus ki dahsat

एक डॉक्टर जो ज़िन्दगी की जंग जीत चुकी थी !आई डियुटी ......,पर .....होस्पिटल मे लाशों की ढ़ेर देख कर हुआ उसका हार्ट अटेक ........ओर वह ज़िन्दगी की जंग हार गयी एक कमज़ोर वायरस की दहशत ........समझाने का प्रयास कर रही हैं तुमहे .........,तुम कमज़ोर नही .....कमज़ोर तुम्हारा होसला हैं !एक अकेला दुनिया का सबसे छोटू वायरस ....... वह भी निर्जीव .......कर रहा दुनिया को तबाह ........जब की हमला यह उसका पहला हैं | उठो , अब मत देखो उनकी ओर ......धर्म परीवरतनं मत करो | सरकार ने तुम्हे आरक्षण दिया ....तुम्हे शिक्षा में आगे बढाया |यह तुम्हारे प्रति ईश्वर की आशिष नही तो ओर क्या हैं ?अब अन्य भी आरक्षण की मांग करते हैं | ईश्वर भी हत्प्रभ हैं .......तुम्हारी हताशा देख कर ......वह खुद आया धरती पर ....तुम्हे समझाने .......,कष्ट भोगा, जंगल जंगल खाक छानी कांद मूल खाया, पत्थर पर सोया , पर अंततः लक्ष्य को पाया | मैं पुनः कहता हूँ मत देखो उनकी ओर ......जो तुम्हारा धर्म बदलवाते हैं और खुद बंटे हुए है अपनी कौम में , पर तुम्हे ऊँच- नींच का भेद बताते हैं | पर तुम जांबाज हो . हौसला आफजाई करो उनका जो धर्म परीवर्तन करे चुके हैं य़ा करने वाले हैं | भरी पड़ी हैं सत्य घटनायें रामायण . महाभारत और गीता में , गिर कर उठ जाने की | तुम भी ऐसा कर सकते हो , असहाय नही हो तुम | लो बैंक से ब्याज मुक्त कर्ज और खड़ा करो अपना व्यवसाय | मत देखो तुम उन गिद्धों और चमगादडो की ओर जो तुम्हारे मस्तिष्क एक एक हलचल पर नजर गढाये बैठे हैं | आने वाले समय में ये तुम्हे हिंदुस्तान के खिलाफ खड़ा कर देंगें .....अपनी माँ..... अपनी जननी के खिलाफ खड़ा करे देंगें | mt डरो , मत भटको , अम्बेडकर जी के गीत गाओं , उनके संघर्ष को अपने जीवन का संगीत बनाओं , दुहराते रहो उनके संकल्प को ...... यह जीवन हैं एक अग्निपथ . अग्निपथ . अग्निपथ | ,,

Virus se bache

*मैं आपसे निजी तौर पर निवेदन कर रहा हूँ* अगर मार्केट खुलता भी है तो भी घर से बाहर ना जाएं क्योंकि वास्तविक स्थिति बहुत ज्यादा खराब है! 10% भी आंकड़े स्पष्ट नहीं है! मई और जून पूरा घर पर ही रहें और आगे 1 साल तक बहुत ज्यादा आप अपनी और परिवार की सेफ्टी करें! अपना ध्यान खुद रखें गवर्नमेंट के पास भी इसका कोई उपाय नहीं है, हालात बहुत खराब है! अस्पतालों में व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं है जो कर रहे हैं, वह खुद बहुत डरे हुए हैं! अस्पतालों में पहुंचने वाला सामान्य पेशेंट भी कोरोना ग्रस्त हो रहा है! *अपनी जान खुद बचाओ* स्थिति जितनी बताई जा रही है उससे कई गुना ज्यादा गम्भीर हैं, इस बात को बिल्कुल हल्के में ना लें आपका कोई करीबी चाह कर भी आपकी मदद नहीं कर पाएगा, आपकी जमा पूंजी/सारा पैसा धरा का धरा रह जाएगा कोरोना होने पर कुछ भी काम नहीं आएगा! *याद रहे, सच्चाई और दवाई दोनों बहुत कड़वी होती है, लेकिन स्वीकार करने में ही समझदारी है* इस बात से ही अंदाजा लगा लीजिए कि 135 करोड़ की आबादी है अपने देश की अगर रोजाना 1 लाख टेस्ट भी होंगे... तो आखिरी व्यक्ति का नंबर 37 साल बाद आएगा ! यह अब हमारे जीवन का एक हिस्सा है जिसका असर कई वर्षों तक देखने को मिलेगा जैसे एड्स, कैंसर, पोलियो, टीबी और अब कोरोना। इन सभी बीमारियों में कोरोना संभवतः सबसे ज्यादा भीषण और घातक है। 🙏🏻💐🙏🏻

Purana bharat mera mitra

*क्या लगता है आपको, 3 मई के बाद एकाएक कोरोना चला जायेगा, हम पहले की तरह जीवन जीने लगेंगे ?* नही, कदापि नही। ये वायरस अब हमारे देश में जड़ें जमा चुका है, हमे इसके साथ रहना सीखना पड़ेगा। कैसे ? सरकार कब तक लॉक डाउन रखेगी ? कब तक बाहर निकलने में पाबंदी रहेगी ? हमे स्वयं इस वायरस से लड़ना पड़ेगा, अपनी जीवन शैली में बदलाव करके, अपनी इम्युनिटी स्ट्रांग करके। हमे सैकड़ों साल पुरानी जीवन शैली अपनानी पड़ेगी। शुद्ध आहार लें, शुद्ध मसाले खाएं। आंवला, एलोवेरा, गिलोय, काली मीर्च, लौंग आदि पर निर्भर हों, एन्टी बाइटिक्स के चंगुल से खुद को आज़ाद करें। अपने भोजन में पौष्टिक आहार की मात्रा बढ़ानी होगी, फ़ास्ट फ़ूड, पिज़्ज़ा, बर्गर, कोल्ड्रिंक की भूल जाएं। अपने बर्तनों को बदलना होगा, अल्युमिनियम, स्टील आदि से हमे भारी बर्तन जैसे पीतल, कांसा, तांबा को अपनाना होगा जो प्राकर्तिक रूप से वायरस की खत्म करते हैं। अपने आहार में दूध, दही, घी की मात्रा बढ़ानी होगी। भूल जाइए जीभ का स्वाद, तला-भुना मसालेदार, होटल वाला कचरा। कम से कम अगले 2 -3 साल तक तो ये करना ही पड़ेगा। तभी हम सरवाइव कर पाएंगे। जो नही बदले वो तकलीफ पावेंगे। इस बात को मान कर इन पर अमल करना शुरू कर दें।

Rice bran oil

लोक डाउन खुलने के बाद की बेरोजगारी की भयावह तश्विर मुझे चैन नही लेने दे रही थी कि ईरफान खान की केंसर से मौत मुझे बैचेन कर गयी ,मेरी बेतरतीब सांसे अभी ब्यवस्थित भी नही हुई थी कि ऋषिकपूर की भी केंसर से ही मौत मेरी सांसों को ओर उलझा गयी .......ओर मेरे चिंतन ने ...मन की बैचेनी ने अपना रुख किया केंसर की ओर ...मैने तलाशने की कोशिश की उसकी छोर | इन दो महान आत्माओ को मेरी ओर से यह एक श्रधांजली ही होगी .....यदि मैं समझा पाया की रिफाइन्ड तेल भी हैं केंसर की मजबूत डोर | तली चीजे खाने का शौक हैं जो जनमानस में .... पर उनहे मालूम होना ही चाहिये की जन्म दे रहा हैं यह केंसर को उसके तन में | आप भी चिंतन करें | बड़े पेमाने पर बीज से तेल निकालने के लिए पेट्रोलियम का एक पदार्थ 'हैक्जेन (केमिकल )का उपयोग किया जाता है। फिर ड़ीगमिंग की जाती हैं, दूर्गंध निकालने के लिए ,फिर ड़ी ओर्डराईजेसन व ब्लिच के पश्चात 2000 तापमान पर तेल को उबाला जाता है फिर ऐसेंस व प्रीज़रवेटीव डाल कर आपके सामने परोस दिया जाता है | स्मोक पोइन्ट लो होने से तेल मजबूर हैं अपनी संरचनायों से कि एक बार उबला तो उसके सारे गुण खत्म और बच जाता है मात्र कचरा , यह तेल गर्म होने के बाद धुआ टाइप का कुछ देती हैं यानि अणु टूटते हैं और फिर फ्री रेडीकल का जन्म होता है जो आपके स्वस्थ कोशिका में ज़म जाते हैं | प्रथमतः तो यह सुस्ती , कमजोरी , चक्कर , सिर दर्द , पेट दर्द , कबजियत .... फिर समय अंतराल में यह केंसर के रुप में अपना भयावह अवतार लेती है जो अंततः मनुष्य को असहनीय कष्टदायक मौत के जंगल में छोड़ देती है | ऐसी गंभीर परिस्थिती में विग्यापनों में न उलझ कर हमें स्वयं ही निर्णय लेना होगा कि हम मात्र फिल्टर य़ा कच्ची घानी का ही तेल खाये य़ा आयुश मन्त्रालय द्वारा प्रस्तावित राइस bran तेल जो पूर्णतः केमिकल फ्री होते हैं और इसका स्मोक पोइन्ट bhi काफी हाई होता है | भारत इसका एक बड़ा निर्यातक है तो क्यो न हम अपने देश का तेल खाये और स्वस्थ जीवन के अनन्त सुख के भागीदार बने | क्या मैने कुछ गलत लिखा ? आपकी राय मेरे लिए अमुल्य है |

Korona se savdhan

*मैं आपसे निजी तौर पर निवेदन कर रहा हूँ* अगर मार्केट खुलता भी है तो भी घर से बाहर ना जाएं क्योंकि वास्तविक स्थिति बहुत ज्यादा खराब है! 10% भी आंकड़े स्पष्ट नहीं है! मई और जून पूरा घर पर ही रहें और आगे 1 साल तक बहुत ज्यादा आप अपनी और परिवार की सेफ्टी करें! अपना ध्यान खुद रखें गवर्नमेंट के पास भी इसका कोई उपाय नहीं है, हालात बहुत खराब है! अस्पतालों में व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं है जो कर रहे हैं, वह खुद बहुत डरे हुए हैं! अस्पतालों में पहुंचने वाला सामान्य पेशेंट भी कोरोना ग्रस्त हो रहा है! *अपनी जान खुद बचाओ* स्थिति जितनी बताई जा रही है उससे कई गुना ज्यादा गम्भीर हैं, इस बात को बिल्कुल हल्के में ना लें आपका कोई करीबी चाह कर भी आपकी मदद नहीं कर पाएगा, आपकी जमा पूंजी/सारा पैसा धरा का धरा रह जाएगा कोरोना होने पर कुछ भी काम नहीं आएगा! *याद रहे, सच्चाई और दवाई दोनों बहुत कड़वी होती है, लेकिन स्वीकार करने में ही समझदारी है* इस बात से ही अंदाजा लगा लीजिए कि 135 करोड़ की आबादी है अपने देश की अगर रोजाना 1 लाख टेस्ट भी होंगे... तो आखिरी व्यक्ति का नंबर 37 साल बाद आएगा ! यह अब हमारे जीवन का एक हिस्सा है जिसका असर कई वर्षों तक देखने को मिलेगा जैसे एड्स, कैंसर, पोलियो, टीबी और अब कोरोना। इन सभी बीमारियों में कोरोना संभवतः सबसे ज्यादा भीषण और घातक है। 🙏🏻💐🙏🏻

Gobar v gau mutra ki upyogita

पिछली पोस्ट में मैं कोरोनां काल के पश्चात आने वाली संभावित बेरोजगारी को ले कर उनके समाधान के सन्द्रभ में चिंतनशिल था किंतु उसके साथ साथ साये की तरह आने वाली भुख मरी से मेरा ध्यान कैसे हट गया ! मैं इस वक्त काफी क्रोधित हूँ खुद पर | सड़क पार करते समय सड़क के किनारे खडा मैं खुद को कोस .ही रहा था कि एक वाहन तेजी से मेरे सामने से गुजर गयी और एक गाय वाहन से बचते . बचते भागती सी मुझसे टकराते टकराते बची ओर में भी गिरते गिरते बचा ओर इस घटनाकरम से मेरा ध्यान एक बार फिर अपने चिंतनं से हट कर सड़क पर ड़ेरा डाले इन लवारिस पशुओं पर आ कर टिक गया कल ही किसी ने कतलखने की फोटू मुझे सेंड की थी मुझे याद आया ओर आँखो में चलचित्र की भांति कसाई खाने ले जाती पशुओं की हितों की रक्षा के लिए हुए आंदोलन , गिर्फतारियां हत्यायें गुजरने लगी | हमें समझना होगा कि ये गो कतल तभी रुकेंगे जब ये नही बिकेंगे | रोड में दंगा न करें , संसद में बने कानुन का कडाई से पालन शुनिश्चित करवायें | थाने में. इसकी एक स्पेशल टीमं बने पुराने कतलखाने धीरे धीरे बंद हों नए लाइसेंस देना भी बंद हो इस हेतु संसोधन सदन में हो....... बहुत मुश्किल हैं यह ......बहुत ही बुद्धीमत्ता पूर्नं कार्य है इसमे सहनशिलता की आवश्यकता हैं पर सस्ती लोकप्रियता के लिए लोग कुछ भी करते हैं ......गलत हैं यह .... उनहे मतलब नही की गो माता के आंसू आज भी झर झर बह रहे हैं .......ज़रा पास आ कर उसकी आँखों में गौर से देखें तो सही , उसे एक बार गले तो लगाएं ...... , चुम्मी दें मां को | खैर अब भी समय हैं आईये ग्रामिणो में इन पशुओं के प्रति जागरुक्ता पैदा करें , इसकी उपयोगिता साबित करें | उन्हें गौ मूत्र एकत्रित करना सिखा कर इसे आयूर्वेद कम्पनी में सप्लाई करने का मार्ग दिखायें , गोबर से वर्मी कम्पोस्ट बना कर खेतों को जहर मुक्त करवायें , समाज को कैन्सर से बचायें , ग्रामिनों को आय का एक स्थायी श्रोत दें , गोबर गैस सन्यत्र लगवायें , उपले का प्रचलन पुनः बढाये और गौ माता की म्रत्यू के बाद उन्हे हम सम्मान पूर्वक दफना दें | आप देखेंगे इसके परिणाम में सड़क खुदबखुद खाली हो जायेगी .... उसकी जान भी बच जायेगी वह अंतारात्मा से आशिर्वाद देगी...... ज़रा बात तो कर के देखें उससे | एक सर्वे के अनुसार दुनिया में 50 करोड लोग आने वाले समय में गरीबी रेखा से नीचे आने वाले हैं , अब क्या कहेंगें आप ? अपनी राय अवश्य दें |

Sharab badi umda chij hai

शराब बड़ी उमदा चीज है | लाइन में लगे हैं तो कोरोना का भय नही , कोई टच भी कर गया तो मौत का डर नही | नशे में हो तो क्या बात है ..... कुछ करने की चाह उमड़ ही आती है , ज़िसे वे बडे मनोयोग से , पूरी फ्लानिंग से .....हाँ जी .......पूरी फ्लानिंग से करने की कोशिश करते हैं जैसे डयूटी में हो तो अपने मैनेजर को गाली देंगें , अपनी पूरी भडास निकाल लेंगें , सुबह कार्यालय में आ कर माफी भी मांग लेंगें - कि सर ! गलती हो गयी कल थोडी सी ज्यादा हो गयी थी , माफ करे दो न ! सर मैने तो कुछ नही कहा था ..... जिसने कहा था , वह तो चली गयी | भीड में अवान्छनीय हरकते , निकल लिए तो ठीक ....नहीं तो हाथ जोड़ दिये , बहन जी ...., साइड फ्लीज | अभी तो यह अर्थ व्यवस्था मजबूत कर रहे हैं , चुनाव में तो फ्री की मिलती हैं , नेताओं की काली कमाई इसी में तो निकलती है | उस वक़्त ये शराबी सत्ता चाहे ज़िधर.... उधर पलट देते हैं , बुधिजीवी खडे रह जाते हैं | शराब बड़ी उमदा चीज है | कार्य स्थल पर सभी इससे कुछ कहने से कतराते हैं | दुकान में सामान लेते वक़्त , विषेशकर पैसे देते वक़्त स्टाइल से इतराते हैं | दुकानदार नाक मुंह सिकोड रहा होता है , पर वे नही दरशाते हैं | घर में पड़ते ही इनके कदम , पत्नी कुछ डरी - डरी सी .... बच्चे भी अलग थलग , कुछ कोने में छिप जाते हैं | व्रध माता पिता होठों को सिल लेते हैं | आँखों से उनके झर झर आंसू बहते हैं | भई शराब बड़ी उमदा चीज है , ये किसी से नही डरते...... सब इनसे डरते हैं |

शुक्रवार, 15 मई 2020

Irfan khan ko shradhanjali

इरफ़ान ख़ान नहीं रहे। मुझे व्यक्तिगत रूप से सचमुच बहुत दुख है, इसलिए नहीं कि हमने एक महान अभिनेता खोया, वो तो और भी हैं...लेकिन इरफ़ान के जैसा इंसान खोया... इरफ़ान... कठमुल्लों से खुलकर लोहा लेने वाला मुसलमान, धर्म का असली मतलब समझने, और समझाने वाला मुसलमान, शाकाहार की वकालत करने वाला मुसलमान, आतंकवाद पर मुल्लों की चुप्पी पर सवाल उठाने वाला मुसलमान, बकरीद जैसे घृणास्पद रिवाज़ों पर सवाल उठाने वाला मुसलमान, रोज़े का असली मतलब (अपने भीतर झांकना) समझने वाला मुसलमान, भारतीय मुसलमानों का सच्चा प्रतिनिधि मुसलमान... सबसे बड़े शाकाहारी प्रदेश और सबसे ज़्यादा देशी गाय रखने वाले महान राज्य राजस्थान की पैदाइश.. यार एक ढंग का मुसलमान.. खो दिया हमने। ये एलोपैथी किसी काम की नहीं, नहीं बचा पाई इस हीरे को.. मुश्किल है कि हर काम का आसाँ होना... आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसां होना -ग़ालिब लेकिन ये तो एक सच्चा मुसलमान था, सच्चा इंसान था..ईश्वर इसे मेरे पुण्य भी दे🙏🙏🙏🙏🙏😔

Aarthik chunotiyan

हम आर्थिक चुनौतियों के दौर में हैं। बहुत से लोगों की नौकरी चली गई होगी या जा सकती है। सैलरी कम हो गई होगी या हो सकती है। याद रखना है कि ये हालात आपकी वजह से नहीं आए हैं। आप ख़ुद को दोष न दें। न हार, अपमानित महसूस करें। रास्ता नज़र नहीं आएगा लेकिन हिम्मत न हारें। कम से कम खर्च करें। अपनी मानसिक परेशानियों को लेकर अकेले न रहें। दोस्तों और रिश्तेदारों से बात करें। किसी तरह का बुरा ख़्याल आए तो न आने दें। इस स्थिति से कोई नहीं बच सकता। *धीरे धीरे खुद को पहाड़ काट कर नया रास्ता बनाने के लिए तैयार करें।* अपनी भाषा या सोच ख़राब न करें। कुछ भी हो जाए, जीना है, कल के लिए। धीरज रखें। कम में जीना है। यह वक्त आपका इम्तहान लेने आया है। *भरोसा रखिए जब आपने एक बार शून्य से शुरू कर यहाँ तक लाया है तो एक और बार शून्य से शुरू कर आप कहीं पहुँच जाएँगे। बस यूँ समझिए कि आप सांप सीढ़ी खेल रहे थे। 99 पर साँप ने काट लिया है लेकिन आप गेम से बाहर नहीं हुए हैं। क्या पता कब सीढ़ी मिल जाए। जल्दी ही मिल जाएगी...* हंसा कीजिए। थोड़े दिन झटके लगेंगे। उदासी महसूस हो सकती है, लेकिन अब ये आ गया है तो देख लिया जाएगा, निपट लेंगें... यह सोच कर रोज़ जागा कीजिए। सकारात्मक रहिये।

Namaste trump

नमस्ते ,! ट्रम्प के पहले एक भी न था, जो करता .. कोरोनां का प्रसार ,पर दुत्र गति से बढ रहा था वायरस ,भारत की ओर .. करने को व्यापार ,लापरवाही की हद तब हुई , जब शिवराज की गंदी ताजपोशी हुई थी .. तब थी .......मौत भारत के द्वार , जीत का जशन मना था और भारत में मचा हा हा कार , क्या यही हैं अनुभवी सरकार |

Aatm nirbharta

ट्रक में मजदूर लदे थे य़ा पशुओं की खेप थी , समझ नही पा रही थी प्रशासन , सरकार भी झेंप रही थी | ग्रामीण भारत की लाशों पर हिंदुस्तान की आत्म निर्भरता भी भेंट चढ रही हैं | गलत समय पर लाया गया है यह मुद्दा ! उधर पी .ओ .के . के भी समाचार चलवाये जा रहे हैं | बैलगाडी को अपने कंधो से खीचते बेबस से सबका ध्यान भटकाये जा रहे है | कश्मीर भारत का हिस्सा है , कोई शक नही | आज नही तो कल ले कर रहेगे | पर वक़्त का तकाजा है कि अभी पूरा ध्यान वहां केन्द्रित करना है जहां 'सड़क'..... ग्रामीण भारत को निगल रही है | आत्म निर्भरता की बात 15 वर्ष पूर्व ही करनी थी | भारत व्यवस्थित था उस वक़्त | 70 सालों में पिछली सरकार ने उपलब्ध करवा कर रखे हैं समस्त संसाधन , बस व्यवस्थित ढंग से उनका दोहन कर सरकार खुद के नेत्रत्व को चमका लेती | भारत अब तक एक आध सोने की चिडिया पैदा कर चुका होता जो आने वाले वर्षों में चहचहाने लगती | बाबा रामदेव का , बाबा कर्मवीर का स्वदेशी सपना साकार हो रहा होता | पापी कौन ? जिसने कभी पाप न किया हो वह पहला पत्थर मारे , इसी की आड़ लेकर सरकार बचती आ रही है | हर सत्य बात को वह 70 सालों से जोड़ देती है | इससे सरकार के गुनाह कम नही होगें | आज नही तो कल या आने वाली पीढियां आपसे पूछेंगी कि 23 फरवरी 2020 से पहले मजदूरों को क्यो नही पहुचायां गया था उनके घर ? उनके रूदन से गूंजी थी धरती , गूंज गया था आसमान | क्यों नही आंसू पोंछे थे तत्काल , खुद को कहते रहे भगवान | dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">

बुधवार, 13 मई 2020

Majdooron ki dagar

मैं विनम्रता के साथ अपनी भावनायें व्यक्त करना चाहता हूँ कि एक दिन हिंदुस्तान भी लौक डाउन की भयावह अव्यवस्था से अवश्य निकलेगा , मुझे पूर्ण विश्वास है | टाइम पास के लिये शराब बन्दी की बात यदि की जाये तो यहाँ राजनीति हो गयी | शराब बिक्री की इच्छा राज्यों पर छोडा , विरोधियों ने उन्हे ......शराब बंद करो कह कर घेरा | ज़रा इधर तो देखो , ये बाबू ने क्या कह दिया ! बिना पंजियन व रिकार्ड के मजदूरों को ट्रेन व बस में सफर का हक नही | ये विदेशी हो गए , आइडेन्टिटी कार्ड का मोल नही | कांकरीले पत्थर की डगर उनके नसीब में ....अरे यह क्या लिख गया उनकी तकदीर में | डगर की रेल पांतों पर तुम फिर कहीं सो न जाना , वोट लेंगें ये तुम्हारा , वोट से पहले कही तुम खो न जाना | छुपा कर अपनी उलझने , कह न दे ये कि गैरत अभी बाकी है , दे देना फिर वोट हमें ही , आपकेh मनोरंजन के लिए हमारी अनाडीपन की कई कारगुजारियां अभी बाकी हैं | dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">

सोमवार, 11 मई 2020

1947 ka deta ehsas

सन 1947 के ह्रदय विदारक द्रश्य की कुछ कुछ पूनरावृती ...मिलती जुलती सी तस्वीर शरीर के रोंगटे खडे कर देने के लिये पर्याप्त है | ह्रदय को कम्पकम्पा देने के लिए काफी है | महसूस करने के लिए यह काफी हैं कि हजारों की संख्या में सड़क पर , रेल की पटरियों पर निकल पडे , मजदूरों की किस कदर मजबूरियां रही होगी कि पाव के छाले भी बेबस थे .... उनके आगे बढते कदम को रोकने के लिये | कुछ कुछ शब्द का प्रयोग हमने इसलिये किया कि इस द्रश्य में मार काट , चीख पुकार बिल्कुल भी नही थी , बस चल रहे थे ....शांत थे पर ह्रदय में असीमित हलचल तो थी | .... उपरोक्त कथन में कुछ समानतायें तो है ही जो शासक की अयोग्यता को चीख चीख कर चौराहे की सलीब पर लटकाने के लिये बेताब है | दो साल की मासूम .....सड़क पर घिसटने के लिये मजबूर है .... माँ मुहं में पल्लू ठूँस कर ....सिसकने के लिये मजबूर है | पूरा हिंदुस्तान उनके रूदन से हिल रहा है | विदेशियों के कोरोना के दंश को वह निरपराध झेल रहा है | जिस तरह अंग्रेजों की लाठिय़ां खायी थी , उसी तरह आज भी अव्यवस्था की अद्रश्य लाठिय़ां खा खा कर रो रहा है | अमीरों के लिए प्लेन की व्यवस्था करने के बाद अब जा कर सरकार मजदूरों के लिए भी ट्रेन उपलब्ध करवा रही है , बस की भी व्यवस्था की जा रही है पर ऊट के मुहं में जीरा वाली कहावत ! कोई भी साधन उन तक समय पर नही पहुच पा रहा है और वे चल रहे है निर्विकार ....सड़क पर .... रेल की पटरियों पर | ईश्वर की आँखें भी नम | कही भूख से , कही थकान से तो कही रेल की पांतों पर सांसें थम रही हैं | यदि सरकार नमस्ते ट्रम्प के रास्ते गुजरात में कोरोना के शंखनाद से पहले इन व्यथित आत्माओं को उनके गांव भेज दिये जाने की व्यवस्था कर उन्हे राहत दे देती तो आज इस दुखद प्रसव के लिए सर्जरी न करनी पड़ती | गंभीर चूक तो हुई है इससे इंकार नही किया जा सकता है | आसान था यह उस वक़्त | मजदूरों के नियोक्ताओं को उनके लिए ई - टिकट बनवाने की बात कहनी थी | घर जाने का उनका नम्बर आने तक उन्हे वही फैक्टरी में ही क्वारेन्टाइन रहना था एवं 10-15 दिनों में क्रमवार उनके लिए ट्रेन व बस की व्यवस्था कर देनी थी साथ ही नितोक्ताओं से एक एक माह का वेतन बोनस के रुप में सफर खर्च के लिए दिलवा कर उनके चेहरे पर खुशियां ला कर लौक डाउन की घोषणा व्यवस्थित ढंग से कर देनी थी | इससे सरकार पर कोई आर्थिक बोझ भी नही पड़ता | लौक डाउन में भी शराब दुकानें खुलवाने का अविवेक पूर्ण निर्णय भी नही लेने पड़ते | सोशल डिस्टेन्श की धज्जिया भी नही उड़ती ओर नशे मे हिंदुस्तान भी न झुम रहा होता | समझ रहे है न !मैं क्या कहना चाह रहा हूँ ? dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">

रविवार, 10 मई 2020

Gaon ki pagdandiyan

ट्रैन एक लम्बी सांस छोडती थकी . थकी सी लखनऊ स्टेशन पर आ कर रुक चुकी थी | मैं प्रतिक्षारत था कई दिनों से इसी अवस्मरनिय क्षण का उतरते मजबूत भारत निर्माता मजदूर का | उनकी वेदना उनकी आँखों में झलक रही थी झूर्रीयों से भरी हड्डिया भी उत्साहित सी अपना समान समेट रही थी यह भी एक न भुला देने वाला पल था . .पुलिस वाले भी उन पर फूल बरसा रहे थे कही कहीं थोड़ा रौब भी झाड रहे थे मैने महसूस किया ऐसे लोगों की हथेली में हसी ठिठोली की रेखायें क्षीण होती हैं | मात्रभूमि तक जल्द पहुच जाने की तड़प इनकी आँखो में साफ देखी जा सकती थी | दर असल मन एक विहंग है और पैत्रक घर मन को ठंडक dene वाला एक छांव | उडान चाहे कितनी भी ऊँची क्यों न हो , अंचिनहे आकाश में तो ठहरा नही जा सकता , एक घोसले की आवश्यकता तो पड़ती ही है | उसकी मजबूती के लिए तिनका - तिनका भी बुनना ही पड़ता है , यही तिनका उसे बुलाती है सिद्दत से , जब वह मुशकिल में होता हैं | इतिहास साक्षी है कि 1918 में भी ऐसी ही त्रासदी आयी थी | देश के लगभग 1करोड़ 80 लाख लोग काल कवलित हुए थे | उसे स्पेनिश फलू के नाम से जाना गया और यह वायरस पूरे दो वर्ष तक दुनिया में उत्पात मचाता रहा , तो क्या यह सरकार के संग्यान में नही था? कोई भी सरकार किसी को भी दो वर्ष तक बैठा कर नही खिला सकती तो समय रहते नमस्ते ट्रुम्प की जगह नमस्ते इन्डिया क्यों नही हुआ | क्या देश की व्यवस्था से पहले मध्य प्रदेश की सत्ता आवश्यक थी ? समय रहते मजदूरों के गांव गुलजार क्यो नही हुए ? प्रश्न तो सुलगते ही रहेंगें ,औरअब शराब भी गली गली बिकते ही रहेंगे पर इन सबसे अनजान एक न्नही सी गुडिया अपने गांव की पगडनडियों पर उछल उछल कर चल रही थी , पक्षियों की चहचहाहट मन को आनन्दित ही कर रही थी , अब साँझ हो चली थी| dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">

Jeevan Shelly badle

वक़्त आ चुका है कि जीवन संगिनी की चूडियौ की खनक से हम जीवन जीने की ऊर्जा लें , उनकी आँखों में खुद को शाम को जल्द घर लौट आने की प्रतीक्षा का विश्लेशण करे , उनके प्रेम की गहराई को अपने दिल की गहराई में उतर जाने दें, बच्चों के संग गिल्ली - डंडा , लूडो , कैरम व पिठ्ठुल खेलें | अपना बचपन लौटा के लाये , अपनी जीवन शैली बदले | घर के पास ही जीवन यापन का श्रोत ढूंढे | पैसे कम मिलते है , परवाह नही य़ा अपना व्यवसाय ही प्रारम्भ करें | ऑन लाइन जॉब को भी प्राथमिकता दें पर किसी भी परिस्थिती में घर से दूर न जायें | विधायक , सांसद , मंत्री , प्रतिनिधि गण , पंच , सरपंच , मेयर , पार्षद सब अपने अपने क्षेत्र में प्रत्येक घर से एक व्यक्ति को रोजगार दिलवाना सुनिश्चित करे , न कर पाये तो सरकार उसे निलम्बित करे | यदि सरकार सही मार्ग प्रशस्त न कर पाये तो जनता सरकार को निलम्बित कर दे | बस इसी एक लक्ष्य को ले कर सभी राज नितिग्य अपना काम करें | चीन से हजारों कम्पनियां भारत आने को बेताब खडी हैं , उसे हर हाल में सरकार भारत में स्थापित करे अन्यथा आये दिन बदहवास ज़िन्दगी पटरी पर कटती रहेगी | अभी मिड डे मील से लंगर चलवाये | आरोप प्रत्यारोप की संस्कृती को दफन करना होगा , अब राज नेताओं को भारत को नयी गति देने नयी शैली अपनानी होगी | शिक्षा में भी प्रथम कक्षा से ही रोजगार परक शिक्षा देनी होगी | क से काम , ल से लगन , स से सफलता पढाना होगा | dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">

Padam shree mukutdhar Pandey ji

 *पदम श्री मुकुटधर पाण्डेय जी पर शोध पत्र* -----पगडंडियों मे धूप की तपन गांव के जिंदा होने का बोध कवि हृदय में भारत के स्पंदन का प्रमाण देती...