पिता बोले ,गांव चलना हैं | 8साल की बेटी ने नई फरौक पहनी , माथे पर झोला रखा ओर चल पड़ी |
उसकी माँ भी गर्भ में पल रहे दुनिया में आने को ऊतावला . .अजन्मे बच्चे को सांत्वना देती न खत्म होने वाली सड़क पर सर पर गठरी लिए पति के संग निकल पड़ी .....जो शने शने कारवां में बदलता चला गया |
पिता की दूरदर्शिता , माता का धैर्य व बेटी की हिम्मत को तोड़ने का कुप्रयास करती , व्यवस्था की बरसती लाठिय़ां अव्यवस्था के वास्तविक अपराधी उन्हें प्रदेश के बार्डर पर रोकने लगे हैं !...... उनकी सकारात्मक सोच को नकारात्मक भाव में तबदील करने की अप्रत्यक्ष उनकी कोशिश कारवां की संकल्प शक्ति पर कुठाराघात करती , उन्हें हतोत्साहित करती , मन से आत्म निर्भर होने की उनकी द्रढ इच्छा शक्ति में सेंध मारती , उन्हें रोंदती , मसीहा का चोला ओढे.. ... कुछ लुटे - पिटे को ट्रेन व बस से घर पहुँचा देने का समाधान देती , क्या यही ब्लू प्रिंट था ....एक देश को आत्म निर्भर बनाने का |
शायद अंग्रेजों से किया गया कोई वायदा निभाया गया है | तभी तो धूप में नंगे पांव तपती सड़क पर उस आठ साल की बच्ची को चलवाया गया है | मैं कलम हूँ , डगर नही फिर भी चलती हूँ , ग्रामीण परिवेश में जन्म लेती उनकी भावनाओं में पलती हूँ |
उसकी माँ भी गर्भ में पल रहे दुनिया में आने को ऊतावला . .अजन्मे बच्चे को सांत्वना देती न खत्म होने वाली सड़क पर सर पर गठरी लिए पति के संग निकल पड़ी .....जो शने शने कारवां में बदलता चला गया |
पिता की दूरदर्शिता , माता का धैर्य व बेटी की हिम्मत को तोड़ने का कुप्रयास करती , व्यवस्था की बरसती लाठिय़ां अव्यवस्था के वास्तविक अपराधी उन्हें प्रदेश के बार्डर पर रोकने लगे हैं !...... उनकी सकारात्मक सोच को नकारात्मक भाव में तबदील करने की अप्रत्यक्ष उनकी कोशिश कारवां की संकल्प शक्ति पर कुठाराघात करती , उन्हें हतोत्साहित करती , मन से आत्म निर्भर होने की उनकी द्रढ इच्छा शक्ति में सेंध मारती , उन्हें रोंदती , मसीहा का चोला ओढे.. ... कुछ लुटे - पिटे को ट्रेन व बस से घर पहुँचा देने का समाधान देती , क्या यही ब्लू प्रिंट था ....एक देश को आत्म निर्भर बनाने का |
शायद अंग्रेजों से किया गया कोई वायदा निभाया गया है | तभी तो धूप में नंगे पांव तपती सड़क पर उस आठ साल की बच्ची को चलवाया गया है | मैं कलम हूँ , डगर नही फिर भी चलती हूँ , ग्रामीण परिवेश में जन्म लेती उनकी भावनाओं में पलती हूँ |
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