ट्रक में मजदूर लदे थे य़ा पशुओं की खेप थी , समझ नही पा रही थी प्रशासन , सरकार भी झेंप रही थी | ग्रामीण भारत की लाशों पर हिंदुस्तान की आत्म निर्भरता भी भेंट चढ रही हैं | गलत समय पर लाया गया है यह मुद्दा ! उधर पी .ओ .के . के भी समाचार चलवाये जा रहे हैं | बैलगाडी को अपने कंधो से खीचते बेबस से सबका ध्यान भटकाये जा रहे है | कश्मीर भारत का हिस्सा है , कोई शक नही | आज नही तो कल ले कर रहेगे | पर वक़्त का तकाजा है कि अभी पूरा ध्यान वहां केन्द्रित करना है जहां 'सड़क'..... ग्रामीण भारत को निगल रही है |
आत्म निर्भरता की बात 15 वर्ष पूर्व ही करनी थी | भारत व्यवस्थित था उस वक़्त | 70 सालों में पिछली सरकार ने उपलब्ध करवा कर रखे हैं समस्त संसाधन , बस व्यवस्थित ढंग से उनका दोहन कर सरकार खुद के नेत्रत्व को चमका लेती | भारत अब तक एक आध सोने की चिडिया पैदा कर चुका होता जो आने वाले वर्षों में चहचहाने लगती | बाबा रामदेव का , बाबा कर्मवीर का स्वदेशी सपना साकार हो रहा होता |
पापी कौन ? जिसने कभी पाप न किया हो वह पहला पत्थर मारे , इसी की आड़ लेकर सरकार बचती आ रही है | हर सत्य बात को वह 70 सालों से जोड़ देती है | इससे सरकार के गुनाह कम नही होगें | आज नही तो कल या आने वाली पीढियां आपसे पूछेंगी कि 23 फरवरी 2020 से पहले मजदूरों को क्यो नही पहुचायां गया था उनके घर ?
उनके रूदन से गूंजी थी धरती , गूंज गया था आसमान | क्यों नही आंसू पोंछे थे तत्काल , खुद को कहते रहे भगवान | dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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