शुक्रवार, 29 मई 2020

Pratadna ki parakashtha

प्रताड़ना की परकाष्ठा
        सत्ताधारी दल के वोटर हमारे अपने लोग हैं | मेरी हार्दिक  इच्छा हैं कि वे एक बार ट्रेन में गुजरात से बैठे और 8 दिन में भूख प्यास से लथपथ सिवान में उतरे और प्रत्यक्ष रुप से महसूस करें कि उन्हें अप्रत्यक्ष रुप से कितनी ह्रदय विदारक प्रताड़ना दी जा रही है  उसके बाद समझाने की आवश्यकता नही पड़ेगी  कि व्यवस्था के प्रति इनके अनुभव कितने गहरे है |
         प्लेट फार्म पर पड़ी माँ की लाश  और उस ट्रक दुर्घटना में जमीन पर पड़ी माँ की लाश को अनाथ होते ये अबोध अपनी माँ को उठाने का प्रयास करते , रोते - बिलबिलाते उस मासूम को क्या  मालूम कि उसका आशियाना लुट चुका है , अनुभव हीन नेतरत्व की भेंट चढ चुका है | सड़क में , जंगल में , ट्रेन में , ट्रक में एवं रेल की पटरियों में लाशों की ढेर से प्रश्न यहाँ स्वयंमेव अंकुरित है  , वक़्त का तकाजा हैं कि हम फैसला करें कि हिंदुस्तान का वास्तविक pappu कौन है ? शायद वो जो लौक डाउन के 2 माह पूर्व से ही लौक डाउन करने की गुहार कर रहा था य़ा फिर वो जो भूखे प्यासे रख कर मजदूरों को ट्रेन में भारत दर्शन करवा रहा था | यही वो लोग है ज़िन्होने जनता  को गुमराह करने में phd कर  रखी है  और इनके भक्तों ने इनके हर  गलत कार्यों में हाँ जी  , हाँ जी लगा रखी है |
            परिस्थितियां अत्यन्त ही गम्भीर हैं , शायद लौक डाउन के बाद लूट पाट , डकैती की घटनायें आम होने वाली हैं , बेचारी पुलिस , इनकी संख्या सीमित है , पूरी विपदा इन पर ही पड़ने वाली है | 20 लाख करोड रू का पैकेज और मजदूरों के हाथ खाली , इससे भि ज्यादा क्रूर मजाक इनके साथ कुछ और हो सकता है  क्या ? यह मेरे समझ से परे है , आप क्या कहेंगें इस सन्द्रभ में ? 
                             डा . वासु देव यादव

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