रविवार, 17 मई 2020

Hadsa banam hatya

हादसा बनाम हत्या मजदूरों के घर वापसी को को ले कर मन में बस तलखियां हैं जेहन में सरकार की अनुभवहीनता व उनकी नाकामियां हैं किसी ने मुझसे कहा__ शासन कर के देख लो, आटा दाल का भाव मालूम पड जायेगा ा मजदूर रुकते नही , सरकार क्या करें ? मुझसे पुछते हैं हैं आप ही बताईये पैदल चल रहे मजदूरों को खाना देना कवारेंटैंन करना सेनेटाईज़ करना क्या छोटी बात है ? यह कह कर शायद सरकार अपनी पीठ थपथपाने में व्यस्त है जबकि भारत संक्रमण में 11वां खतरनाक देश बन चुका है | सरकार स्वीकार नही करती कि मजदूरों की संख्या बल के आधार पर इनके पूर्व कार्य स्थल पर हम इन्हें छत दे नही पाये | दो वक़्त की रोटी तो दूर.....एक वक़्त भी नियम से दे पाने में हम असमर्थ रहे , भ्रष्टाचार ठीक नाक के नीचे ठहाके लगाती रही और मजदूर भूख से बिलबिलाते रहे | सरकार फैक्ट्री मालिको से कह नही सकी कि इन्हें रोको , मैं नियम शिथिल करता हूँ , ई टिकट बनवा कर इनको दे दो , चिंता मत करो पर्याप्त ट्रेन , बस की व्यवस्था हो रही है | किंतु जब कुछ हुआ नही तो मजदूर का क्या , दिव्यांग भी सड़क पर आ गए , मासूम भी तपती डगर पर नंगे पाव चलने लगे | क्या ये सरकार की अयोग्यता का प्रमाण नही | जब किसी के पिता की मौत होती है तो अनाथ बच्चे का आत्म निर्भर होना उसकी मजबूरी होती है ठीक इसी प्रकार जनता की नजर में जब सरकार की मौत हो जाती है तो अनाथ जनता आत्म निरभर्ता का प्रयास करती है और इसी का परिणाम है सडको पर मजदूरों का सैलाब ..... भिनभिनाते , गिरते , मरते , कटते मजदूर | कटने की बात पर याद आया कि सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका में कहा हैं कि ''कोई रात में खुद पटरी पर सो जाये तो कैसे रोक सकते है ?'' सुप्रीम कोर्ट किस दवाब में है , कह नही पायी सरकार से कि यह स्थिति ज़िसने पैदा की वह इसका ज़िम्मेदार है और यह हादसा नही हत्या है हत्या | प्रश्न तो और भी कई ज्वलंत है जो भीड के साथ चल रही है , माँ भारती स्वयं व्यथित , अपने आंसू पोछ रही है |

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