मंगलवार, 11 अगस्त 2020

धर्म निरपेक्षता की ईमरती

 धर्म  निरपेक्षता  की  ईमरती 


धर्म  निरपेक्षता   के  शब्द  को पक्ष  विपक्ष  के  द्वारा  न  जाने .कितनी  बार चबाया  गया  और  भविष्य  में  न  जाने  कितनी  बार और  चबाया  जायेगा |


आने  वाले  दिनों  में 'जाकी  रही भावना  जैसी'  के  अंतर्गत  राजनीतिग्य इसे   अपनी सुविधानुसार इसका  आकार  प्रकार  बतायेंगे एवं   परिभाषित  करेंगे , कोई  इमरती  कहेगा  तो .कोई  जलेबी ,राजनीति ज्यादा  काली  हो  गयी  तो  वे  इसे  खोये  की  जलेबी  घोषित  कर   देंगे   पर   इसे चबाना  नहीं  छोडेंगे |


जब 13 दिन  की  बाजपेयी  सरकार  विश्वास  मत  हासिल  करने  में  विफल  हो  गयी  थी   तब  सेकुलर  रहे   राम  विलास  पासवान  जी ने धर्म  निरपेक्ष  राजनीति की  बड़ी  सुन्दर   जलेबी  बनायी  थी , उन्होने  कहा  था  कि  बाबर  केवल  40 मुसलमान  ले  कर  आया  था | उसकी  संख्या अाज   करोडों  में  पहुँच  गयी है  क्यों कि  आप  ऊँची   जाति   वालों  ने  हमे  मंदिरों  मे  जाने  नहीं  दिया  लेकिन  मस्जिदों  के  दरवाजे  के  दरवाजे  खुले  थे  तो  हम  वहीं  चले  गये |


 हिन्दुओं  की  अस्मिता  पर  कितनी  बड़ी   चोट  दे  दी  थी  उन्होने  , ऐसे  में  ईसाई  धर्म  प्रवर्तक  दलित  हिन्दुओं  पर  कैसे  न  लार  टपकाते , देखते  देखते  ही  हिन्दुओं  का  एक  बडा  तबका  खाली  हो  गया  था  जो  अाज  भी  किसी  न  किसी  रुप  में  जारी  है |  


वर्तमान  में स्थिति  ऐसी   हैं  कि  दलित  हिन्दू   ही अब   हिन्दू विचारधारा  और मूर्ति   पूजा का     खुल  कर   विरोध  कर  रहें  हैं  |


ऐसा  नहीं  हैं  कि  ऐसी  स्थिति के  लिए   कोई  एक  दोषी  हैं , ऐसी  स्थिति  के  लिए  पक्ष  विपक्ष  दोनो  को  दोषी  करार  दिया  जा  सकता  हैं,  यानि   राजनीति की  इमरती  का  स्वाद  लेने के  प्रयास  में  दोनो  ने ही   अपने  अपने  हित  में   इसे आकार  देने  की  कोशिश  की जिस से  यह  स्थिति  उत्पन  हुई  हैं  इससे  शायद  ही  इंकार  किया  जा  सकता  हैं |


राम  मंदिर  बन  रहा  हैं ,क्या  मर्यादा पुरूषोत्तम   के  पथ  पर  चलने  की  अनुमति  इन्हें  भी  मिलेगी  , यह  एक  यक्ष  प्रश्न  हैं |


डा . वासु देव यादव , रायगढ

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