सोमवार, 22 जून 2020

Kinnar ki parmarth katha

लघु  कथा 

         किन्नर की परमार्थ कथा 

        लौक डाउन में प्रसव  वेदना से तड़पती वह श्रमिक महिला अपनी ही बनायी सड़क को मापने में असमर्थ  , एक -एक कदम जैसे सौ - सौ मन के भारी  पत्थर ...... अंतत: वह हार गयी और खुद को गिरने से बचाती हुई वह सड़क पर पसरने ही वाली थी कि उसके बगल से उसे अनदेखा कर निकलती महिला को धक्का दे कर एक किन्नर ने दौड़ कर उसे सहारा दे दिया |
      1947 की आजादी के बाद आज भारत पुन: चलचित्र अजायब घर की भांति आदिमानव के नग्न स्वरूप को साकार करती , प्रसव वेदना से तड़पती महिला पर व्यंग्यात्मक द्रष्टिपात करती अपने गंतव्य की ओर बढ़ती चलती जा रही थी | 
      चलते - चलते प्रसव प्रक्रिया के दीदार की उत्सुकता से एक व्यक्ति ठिठका ही था कि किन्नर ने उसे झिड़क दिया - हट छिछोरे , मर खायेगा तू मेरी , हट एक किनारे ....| और उस महिला को बमुशकिल  एक झाडी के किनारे ले जा कर अपनी एक मात्र बची साडी के टुकडे कर उसके प्रसव में सहयोग कर  उस महिला को माँ का सुख देने में सफल रही , इसी बीच कुछ और किन्नर आ गयी थी और उन्होने एक सुरक्षा घेरा बना लिया था | आश्चर्य नवजात चुप था , उसकी आँखें खुली थी , मानो कोरोना से निडर  थी , किन्नर को अपलक निहार रही थी , शायद आभार प्रकट कर  रही थी उसे जीवन गीत देने के लिए | नितांत अकेली माँ अभी भी  बेहोश थी |
                   
                      लघु कथाकार  डा. वासु देव यादव

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Padam shree mukutdhar Pandey ji

 *पदम श्री मुकुटधर पाण्डेय जी पर शोध पत्र* -----पगडंडियों मे धूप की तपन गांव के जिंदा होने का बोध कवि हृदय में भारत के स्पंदन का प्रमाण देती...