जब भी कहीं कृष्ण प्रवचन चल रहा होता हैं तो वहां की हवायें पूरे क्षेत्र को कृष्णमय कर देती हैं मन न जाने क्यों उल्लासित रहता हैं ज़िसकी बारिकियों को परिभाषित करना मनुष्य मन की कल्पनाओं से परे हैं ऐसे में किसी कथा वाचक का एक ही शब्द श्रोता की श्रद्धा को दिग्भ्रमित करने के लिए प्रयाप्त हैं
अभी विगत दिनो विश्व प्रसिद्ध कथा वाचक मोरारी बापू जी ने
अपने प्रवचन में श्री कृष्ण व बलराम की के संदर्भ में अपनी निजी ब्याख्या श्रोताओं पर थोपनी चाही किंतु कुछ जागरुक श्रोताओ के कारण उन्हे कानहा विचार मंच की मांग पर द्वारिकाधीश के दर्शन कर भक्तों से माफी मांगनी पड़ी |
यह वाकया इस बात को साबित करता है कि कुछ विद्वान अपनी विद्यता की आड़ में भक्तों पर उनके आराध्य की छवि अपने मतानुसार गढना चाहते हैं |
अत: यहां आवश्यक हो जाता है कि जब भी आप कृष्ण कथा य़ा अन्य के प्रवचन का पुण्य ले रहे हों तो पूर्ण भक्तीमय होने के उपरांत ही आप प्रवचनकर्ता की बारीक से बारीक गलतियों को पकड़ पाने में सफल हो कर भागवत गीता य़ा अन्य पौरणिक ग्रंथ का मान बनाये रखने मॅ अपनी अहम भुमिका निभायेँगे और यह कर्तब्य हर हिन्दू का हैं चाहे वह किसी भी जाति का हो किसी भी वर्ण का हो
और इस तरह अंधविश्वास को तोडने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम माना जायेगा
Dr. Vasu deo yadav
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