शनिवार, 30 मई 2020

वास्त्विक पप्पू 
       नीति निर्धारक भारत सरकार टूट गए चकले बेलन से भारत के लिये रोटियां बना रही है , परिणाम में यत्र तत्र सर्वत्र भूख से ही सम्बंधित समस्त अराजकता फैल रही है |
        स्टेट ऑफ वर्किंग इन्डिया के अनुसार 80% लोग 10000 से कम कमाते हैं | विश्व बैंक के वर्ल्ड ड़ेवलपमेंट इन्डीकेटर के अनुसार 75% भारतीय असुरक्षित रोजगार में हैं | नेशनल सैंपल  सर्वे के अनुसार देश के एक तिहाई लोग रोजी मजदूरी करते हैं |
           यही कारण  था कि अचानक हुए नोटबंदी की तरह अचानक हुए लौक डाउन से भारत की एक तिहाई जनता सड़क पर आने को मजबूर हो गयी ज़िससे कोरोना संक्रमन बड़ी तेजी से हिंदुस्तान में अपने भयावह रुप में आ गयी | मरकजी के लोगों ने इसमें आग में घी का काम किया और सरकार की अव्यवस्था ने इसमें मिरची छिड़क दी |
           विश्व तो दो आपदायों  से घिरी  थी किंतु भारत अपने हाथों स्वसर्जित तीन आपदायों से घिर  चुकी  थी  1 स्वास्थ्य आपदा . 2 आर्थिक आपदा  3 मानवीय आपदा | इसमें सबसे दुखद पहलू या हास्यास्पद कहें कि भारत सरकार को खुद गुमान नही था कि ऐसा हो जायेगा , जैसे कि वो विदेशी शासक हो और उन्हें भारत की आर्थिक , भोगोलिक स्थिति का ग्यान न हो | यह तो वही बात हुई कि ड्राईविंग आती नही थी और कार थमा दी , दुर्घटना तो होनी ही थी |
          उपरोक्त कथन से शायद यह स्वमेव ही स्पष्ट है  कि हिन्द का वास्तविक पप्पू इनकी ही टीम से ही है , तभी तो आज भारत रक्त रंजित सड़क पर अपनी ही कारवां  की लाशों को लांघता हुआ रक्त रंजित रोटियां खाने को विवश है  और मासूम अंजाने में अपनी माँ की लाश को चुम्मी देने में ....| आप क्या कहेंगें इस संदर्भ में ?
                     Dr. Vasu deo yadav

शुक्रवार, 29 मई 2020

Pratadna ki parakashtha

प्रताड़ना की परकाष्ठा
        सत्ताधारी दल के वोटर हमारे अपने लोग हैं | मेरी हार्दिक  इच्छा हैं कि वे एक बार ट्रेन में गुजरात से बैठे और 8 दिन में भूख प्यास से लथपथ सिवान में उतरे और प्रत्यक्ष रुप से महसूस करें कि उन्हें अप्रत्यक्ष रुप से कितनी ह्रदय विदारक प्रताड़ना दी जा रही है  उसके बाद समझाने की आवश्यकता नही पड़ेगी  कि व्यवस्था के प्रति इनके अनुभव कितने गहरे है |
         प्लेट फार्म पर पड़ी माँ की लाश  और उस ट्रक दुर्घटना में जमीन पर पड़ी माँ की लाश को अनाथ होते ये अबोध अपनी माँ को उठाने का प्रयास करते , रोते - बिलबिलाते उस मासूम को क्या  मालूम कि उसका आशियाना लुट चुका है , अनुभव हीन नेतरत्व की भेंट चढ चुका है | सड़क में , जंगल में , ट्रेन में , ट्रक में एवं रेल की पटरियों में लाशों की ढेर से प्रश्न यहाँ स्वयंमेव अंकुरित है  , वक़्त का तकाजा हैं कि हम फैसला करें कि हिंदुस्तान का वास्तविक pappu कौन है ? शायद वो जो लौक डाउन के 2 माह पूर्व से ही लौक डाउन करने की गुहार कर रहा था य़ा फिर वो जो भूखे प्यासे रख कर मजदूरों को ट्रेन में भारत दर्शन करवा रहा था | यही वो लोग है ज़िन्होने जनता  को गुमराह करने में phd कर  रखी है  और इनके भक्तों ने इनके हर  गलत कार्यों में हाँ जी  , हाँ जी लगा रखी है |
            परिस्थितियां अत्यन्त ही गम्भीर हैं , शायद लौक डाउन के बाद लूट पाट , डकैती की घटनायें आम होने वाली हैं , बेचारी पुलिस , इनकी संख्या सीमित है , पूरी विपदा इन पर ही पड़ने वाली है | 20 लाख करोड रू का पैकेज और मजदूरों के हाथ खाली , इससे भि ज्यादा क्रूर मजाक इनके साथ कुछ और हो सकता है  क्या ? यह मेरे समझ से परे है , आप क्या कहेंगें इस सन्द्रभ में ? 
                             डा . वासु देव यादव

गुरुवार, 28 मई 2020

BAT WOMEN

बैट वुमैन

          शी झेंगली उर्फ बैट वुमैन , डिप्टी डायरेक्टर , वुहान इन्स्टीटयूट ऑफ वायरोलोजी का यह कथन  कि विगयान का राजनीतिकरण दुखद है  , अपने अंदर एक कुटिल रहस्यों का संसार समेटे  हुए है  क्योकि यह बात बुहान लैब से आ रही है  | यदि अब्दुल कलाम यही बात विश्व पटल पर रखते तो इसके मायने एकदम भिन्न होते |
        चमगादड़ के अंदर का वायरस उसकी संरचना के अनुरूप होता है और यह श्रष्टी के प्रारम्भ काल से ही है  जो अन्य प्राणी के लिए घातक है | यही चमगादड़ की प्रकृति है  और प्रकृति  से छेड़छाड़ विध्वंस को ही जन्म देती है ज़िसे आज विश्व भुगत भी रहा है |
      मेरे इसी कथन से चाइना  की कुटिलता स्पष्ट है  कि उसने इस का परीक्षण मनुष्य में वायरस की तीवर्ता नापने के लिए किया | अफवाहों का बाजार गर्म है  कि अब इससे भी  खतरनाक वायरस बहुत जल्द ही विश्व जगत के लिए एक नयी तबाही लेकर अवतरित होने वाला है |
         भसमासुर चाइना की विस्तारवादी सनक उसकी विक्रत मानसिकता से सभी परिचित हैं | यह वक़्त हैं कि विश्व एकजुट हो कर  बुहान लैब  के अस्तित्व को नेस्तनाबूत कर  दे अन्यथा विश्व को नेस्तनाबूत होने में देर नही लगेगी |
                                      डा . वासु देव  यादव

बुधवार, 27 मई 2020

Arunachal ki safalata

अरुणाचल की सफलता 
    भारत सरकार के थिंक टेंक पर शायद यह एक करारा तमाचा हो सकता है  | अरुणाचल प्रदेश के सियांग ज़िले लाइनेंग गांव के गांव बूढा  य़ा बूढी के द्वारा , ज़िन्होने अपनी दूरदर्शिता से कोरोना की भयंकरता को समझते हुए 5 मार्च से अपने क्षेत्र में अंतराष्ट्रिय पर्यटको के आने में रोक लगा दी थी | उस वक़्त सत्ता धारी पार्टी कोरोना से बेपरवाह  मध्य प्रदेश में सत्ता को पलटने मशगूल थी | 
सुनने में ही बड़ा अजीब लगता है  कि प्रारम्भ से ही इन्हे अपने देश की चिंता नही थी | 17 मार्च से अरुणाचल ने आपसी सहमती से भारतीय पर्यटकों  को भी  अपने क्षेत्र में आने से रोक दिया था | उस वक़्त तक सत्ताधारी दल मध्य प्रदेश में सत्ता हड़पने के अपने  फाइनल राउन्ड पर थी और इधर अरुणाचल के गांव बूढा एवं बूढी (बुजूर्ग ) W .H .O . के दिशा निर्देशों को नागालेंड सहित अपने प्रदेशों में लोगो से कडाई से पालन करवा रही थी | इसी का सुखद परिणाम है  कि आज अरुणाचल एवं नागालेंड कोरोना मुक्त प्रदेश हैं | 
       इन प्रदेशों की यह गौरवमयी स्थिति को देखते हुए यदि किसी जन साधारण के मन में यह ख्याल आ जाये कि काश इस क्षेत्र से ही यदि आज मेरा प्रधान मंत्री होता तो शायद भारत की यह दूर्दशा न होती और अंधेर नगरी  चौपट राजा वाली कहावत चरीतार्थ न होती | 
         डा. वासुदेव यादव

गुरुवार, 21 मई 2020

RAJ DHARM

राज धर्म
      आज मुझे अटल जी बरबस याद आ गए साथ में मोदी जी का वह वकत्वय भी याद आ गया जो उन्होने प्रथम लौक डाउन के वक़्त दिया था कि यह कोरोना संकट काल है  इसका सामना हमें राजनीतिक स्तर से ऊपर  उठ कर  , मिलजुल कर  करना होगा | सभी घर के अंदर रहे अभी यही सच्ची देश भक्ती होगी |
      प्रियंका जी के द्वारा  भेजी गयी 1000 बसों में से लगभग 900 बसें ठीक पाये जाने के बाद भी  उन्हें मजदूर हित में न लगाना  , परिणामतः बसों का खाली लौट जाना मन को बुरी तरह से कचोट गया है |
       गुजरात गोधरा कांड के वक़्त ठीक ऐसे ही शायद व्यथित हो कर  ही अटल जी ने मोदी जी को कहा  था  कि राज  धर्म का पालन करो पर आज अटल जी नही है |
       मजदूर हित में भेजी गयी बसों के संदर्भ में आज मोदी जी को पूरे हिंदुस्तान में यह कहने वाला कोई नही है  कि मोदी जी यह वक़्त राज धर्म पालन करने का है  , बहुत ही दुखद स्थिति है यह |
        प्रियंका जी ने तो अपना राज धर्म बखूबी  निभाया , उन्होने मोदी जी के दिये वकतव्य का सम्मान करते हुए ही यह निर्णय लिया था |
       बसों के संचालन के अड़चन के बाद उन्होने खुले दिल से कहा  कि आप उन बसों में अपने झंडे , बैनर लगवा लो किंतु बसों को तत्काल रवाना करवा दो , परिणाम में लगभग 50000 मजदूर तत्काल घर पहुँच जायेंगे पर बहरी व्यवस्था के आगे उनकी एक न चली और न ही मोदी जी ने भी  राज धर्म का पालन किया | हिंदुस्तान इसे याद अवश्य रखेगा |

बुधवार, 20 मई 2020

Aatm nirbharta ka blue print?

पिता  बोले ,गांव चलना  हैं | 8साल  की  बेटी  ने  नई  फरौक  पहनी , माथे  पर  झोला  रखा  ओर  चल  पड़ी |
उसकी माँ  भी  गर्भ  में  पल  रहे  दुनिया  में  आने  को  ऊतावला .  .अजन्मे  बच्चे  को  सांत्वना  देती  न  खत्म  होने  वाली  सड़क  पर  सर  पर  गठरी  लिए  पति  के  संग  निकल  पड़ी  .....जो  शने शने  कारवां  में  बदलता  चला  गया |
     पिता की दूरदर्शिता , माता का धैर्य व बेटी की हिम्मत को तोड़ने का कुप्रयास करती , व्यवस्था की  बरसती लाठिय़ां अव्यवस्था के वास्तविक अपराधी  उन्हें प्रदेश के बार्डर पर रोकने लगे हैं  !...... उनकी  सकारात्मक सोच को नकारात्मक भाव में तबदील करने की अप्रत्यक्ष उनकी कोशिश कारवां की संकल्प शक्ति पर कुठाराघात करती , उन्हें हतोत्साहित करती , मन से आत्म निर्भर होने की उनकी द्रढ इच्छा शक्ति में सेंध मारती , उन्हें रोंदती , मसीहा का चोला  ओढे..  ... कुछ लुटे - पिटे को ट्रेन व बस से घर पहुँचा देने का समाधान देती , क्या यही ब्लू प्रिंट था ....एक देश को आत्म निर्भर बनाने का |
     शायद अंग्रेजों से किया गया कोई वायदा निभाया गया है | तभी तो धूप में नंगे पांव तपती सड़क पर उस आठ साल की बच्ची को चलवाया गया है | मैं कलम हूँ , डगर नही फिर भी  चलती हूँ , ग्रामीण परिवेश में जन्म लेती उनकी भावनाओं में पलती हूँ |

सोमवार, 18 मई 2020

Supreme court versus Madras High court

आज पुन: कुल दुर्घटनाओं में 34 मजदूर काल कवलित हो गए | इस ह्रदय विदारक घटना का सबसे दुखद पहलू यह रहा कि 5 मासूम अनाथ हो गए ज़िनके पास सिर्फ माँ थी | प्रवासी मजदूर की दयनीय हालात पर मद्रास हाई कोर्ट की टिप्पणी आयी थी '' मजदूरों की यह हालत देख कर कोई भी अपने आंसू नही रोक सकता '' वहीं एक याचिका पर एक दिन पूर्व सुप्रीम कोर्ट की भी टिप्पणी आयी थी कि '' रात को कोई खुद ही पटरी पर सो जाये तो उसे कैसे रोक सकते हैं | '' (दैनिक भास्कर , 16 मई ) | यह विचार भिन्नता न्याय की असमिता पर प्रश्न चिन्ह दागता तो अवश्य है , चुकि सुप्रीम कोर्ट का फर्ज था कि वह त्रूटी श्रोत को चिन्हित कर मजदूर हित में आवश्यक दिशा निर्देश केन्द्र सरकार को देती | परिणाम में इस कठिन समय में भी मजदूरों के दिल को कुछ ठंडक तो जरूर मिलती | मैने जब कुछ लोगों के पास यह बात स्पष्ट करनी चाही तो न जाने क्यूँ , कैसे हुआ कि यह बात हिन्दुत्व की परिभाषा में उलझती चली गयी और वे सब मेरे खिलाफ हो गए और मुझे घेरने की कोशिश करने लगे | जहां तक मैं खुद को समझता हूँ कि मैं एक सच्चा हिन्दू हूँ | सभी धर्मों का मर्म एक है , समझता हूँ | मेरी तरफ से धिक्कार है उनको , ज़िन्हे श्री राम जी सिर्फ अयोध्या में ही दिखते है | नही दिखता मजदूरों के अंदर , जो आज भी दीन - हीन को सम्बल दे रहे है , मानो कह रहे हैं कि तुम्हे बार - बार गिर कर भी बार - बार उठना है | आसूओं से लिखा जायेगा यह काला इतिहास | आने वाली पीढिओं के मासूमों को यह डरायेगी | बाल मन उस वक़्त भी कुरेदेंगी नानी - दादी को , सुनेगें आज के भयावह किस्से | उल्टेंगे , पुल्टेंगे , खोजने की कोशिश करेंगें उनके पैर के छालों को | इसके झंडा वरदार श्री राम जी को तब भी भूनायेंगें | लोगों को श्री राम के ही नाम पर पुन: भरमायेंगे , कहेंगें - दशरथ नन्दन नही , जय श्री राम कहो , जो नही कहेंगें उन्हे ये देश द्रोही य़ा पाकिस्तान की राह दिखलायेंगें | चलता रहेगा यह खेल यूँ ही | अफसोस हम न रहेंगें और हिन्दू ही हिन्दुत्व की भूल भुलैया में भटकता रहेगा |

रविवार, 17 मई 2020

Hadsa banam hatya

हादसा बनाम हत्या मजदूरों के घर वापसी को को ले कर मन में बस तलखियां हैं जेहन में सरकार की अनुभवहीनता व उनकी नाकामियां हैं किसी ने मुझसे कहा__ शासन कर के देख लो, आटा दाल का भाव मालूम पड जायेगा ा मजदूर रुकते नही , सरकार क्या करें ? मुझसे पुछते हैं हैं आप ही बताईये पैदल चल रहे मजदूरों को खाना देना कवारेंटैंन करना सेनेटाईज़ करना क्या छोटी बात है ? यह कह कर शायद सरकार अपनी पीठ थपथपाने में व्यस्त है जबकि भारत संक्रमण में 11वां खतरनाक देश बन चुका है | सरकार स्वीकार नही करती कि मजदूरों की संख्या बल के आधार पर इनके पूर्व कार्य स्थल पर हम इन्हें छत दे नही पाये | दो वक़्त की रोटी तो दूर.....एक वक़्त भी नियम से दे पाने में हम असमर्थ रहे , भ्रष्टाचार ठीक नाक के नीचे ठहाके लगाती रही और मजदूर भूख से बिलबिलाते रहे | सरकार फैक्ट्री मालिको से कह नही सकी कि इन्हें रोको , मैं नियम शिथिल करता हूँ , ई टिकट बनवा कर इनको दे दो , चिंता मत करो पर्याप्त ट्रेन , बस की व्यवस्था हो रही है | किंतु जब कुछ हुआ नही तो मजदूर का क्या , दिव्यांग भी सड़क पर आ गए , मासूम भी तपती डगर पर नंगे पाव चलने लगे | क्या ये सरकार की अयोग्यता का प्रमाण नही | जब किसी के पिता की मौत होती है तो अनाथ बच्चे का आत्म निर्भर होना उसकी मजबूरी होती है ठीक इसी प्रकार जनता की नजर में जब सरकार की मौत हो जाती है तो अनाथ जनता आत्म निरभर्ता का प्रयास करती है और इसी का परिणाम है सडको पर मजदूरों का सैलाब ..... भिनभिनाते , गिरते , मरते , कटते मजदूर | कटने की बात पर याद आया कि सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका में कहा हैं कि ''कोई रात में खुद पटरी पर सो जाये तो कैसे रोक सकते है ?'' सुप्रीम कोर्ट किस दवाब में है , कह नही पायी सरकार से कि यह स्थिति ज़िसने पैदा की वह इसका ज़िम्मेदार है और यह हादसा नही हत्या है हत्या | प्रश्न तो और भी कई ज्वलंत है जो भीड के साथ चल रही है , माँ भारती स्वयं व्यथित , अपने आंसू पोछ रही है |

शनिवार, 16 मई 2020

Meri bhawnayein

यह आलेख सत्य घटनायो पर आधारित उनका प्रतिरूप है | सकारात्मक विचार मन कितना उल्लसित कर देते है , ये शब्द इनके गवाह हैं और भविष्य में भारत सरकार की योग्यता का आकलन उनके उठाये गए कदम स्वयं करेगें | गौर फरमाये -. कोयलिया फिर कुकने लगी | गिलहरियां उछल उछल कर चढने लगी फिर पेडों पर ..... झूमने लगे वन वृक्ष पुनः मस्ती में | स्वच्छ नदियां इठलाने लगी , इतराने लगी हवायें भी , धरा मन भावन सी लगने लगी | निशा भी रात रानी सी महक गयी .... और ....न्नही .. चिडिया ..... बाग बाग - बाग चहक गयी | रेल की पटरियां भी सुस्ताने लगी .... बीच बीच में , रन - वे .... भी मुस्कराने लगा | सड़को ने फैला दी .... अपनी बाहें ..,. वनराज भी खुल कर विचरने लगा | बीमारियों , दूर्घटनायों से मौत में अप्रत्यासित गिरावट , मन प्रसन्नता से हत्प्रभ है | सदमे में हम क्यूँ रहे .... लौक डाउन से , लौक डाउन को सदमे में रहना है | हम अपनी प्रतिरोधक क्षमता आयुर्वेद व योगा से बढा लेगे | कोरोना को हम देंगे मौत , यह दुनिया को बता देंगे | चीन क्या है .... भारत के मनोबल के समक्ष , उसे हम धूल चटा देंगे | स्थापित होंगे विदेशी उद्योग कल - कारखाने अब भारत में , हम उसकी जाल बिछा देंगें | नौकरियां तो यूँ ..... यूँ आयेंगी नवयुवकों के पास | हम आसमान में तिरंगा फहरा देंगें |

Marnassan lakshman

हिन्द का लक्षमन मरणासन्न है चाइनीज आइटम से सोशल डिस्टेन्स ही वह संजीवनी बूटी है जिस से लक्षमन बचेगे | चीन ने कम कीमत का अनिस्थिसिया दे कर भारतीयता से बलात्कार किया है | समझना होगा कि चीन ने युद्ध रणनीति के तहत विश्व के खिलाफ कोरोना को एक जैविक हथियार के रुप में इस्तेमाल कर श्रिष्टी को त्रतीय विश्व युद्ध की कगार पर ला कर खड़ा करे दिया हैं कोरोना को पैदा करने का चीन ही विश्व का अपराधी है | सबूत के तौर पर - 1. बुहान में अचानक लाखों मोबाइल कैसे बंद हो गए | 2. बुहान से लगभग हजार कि . मी . की दूरी पर स्थित बीजींग व शंघाई में कोरोना प्रकोप क्यो नही ? इनके अन्य राज्य भी कोरोना मुक्त हैं ! कैसे ? 3. चीन से लगभग 3000 कि . मी . की दूरी पर स्थित 206 देश कोरोना से त्रस्त ! कैसे ? 4. इन देशों के अनेक सांसद , वी . आई . पी. , उनकी पत्नियां कोरोना की चपेट में किंतु चीन का राष्ट्रपती बिना प्रोटेक्शन के स्वस्थ कैसे ? 5 धरती की सबसे सुरक्षित जगह पेन्टागन में भी कोरोना की पहुँच कैसे ? 6. कोरोना को एक्सपोज करने वाले चीन के डाक्टर ली वेलियांग की मौत एक माह के भीतर क्यों ? 7. 1 जनवरी 2020 को ज़िनोमिक्स कम्पनी में हुए समस्त सैम्पल टेस्ट को नष्ट करने का चीन का अधिकृत आदेश ! क्यों ? 8. चीन की मीडिया प्रतिबंधित क्यों ? 9. भारत की मीडिया को भी खरीदने की कोशिश | पत्रकार हरवीर सिह नैन ने कहा - ' मैं नही बिकुँगा ! ' क्यों ? 10. सी.बी.सी. की रिपोर्ट , कनाडा ने अपनी सुरक्षा का हवाला दे करे चीन के तीन वैग्यानिकों को कनाडा से निकाला | 11. इजराइल बाइलोजीकल वार एक्स्पर्ट डेनीसोम ने idsa के ज़रनल में चीन कोरोना की सत्यता साबित की | चीन ने यह दुशकर्म विश्व की एकोनोमी को धराशायी करने के लिए किया जिसके परिणाम में चीन में स्थापित समस्त विदेशी कम्पनियों के शेयर जमीन पर आ गए हैं ज़िसे चीन ने कौडी के भाव खरीद लिया है | हालत सामान्य होने के बाद चीन इसी के बल पर विश्व से मुजरा करवायेगा | भारत में चीन के बाजार को देखते हुए यह स्पस्ट हैं की भारत भी बुरी तरह फंस जायेगा | यह ऐकाधिकार की लडाई है | यह वक़्त पप्पू और अंध भक्त के खेल खेलने का नही है | चीनी उत्पाद को पूर्ण वहिष्कार का वक़्त हैं | आइये हम हिंदुस्तान को मजबूत बनायें |

Meri salah

दो पारी की सफलता के बाद भारत सरकार लौक डाउन की तीसरी पारी खेलने पर गंभीरता से विचार कर रही हैं किंतु अपनी सभी व्यवस्थाओं के साथ सरकार यदि मेरी तीन बातों पर भी गंभीरता से अपनी चिंतन को सींचे तो इसके निमनलिखित सुखद परिणाम होने की पूरी संभावना हैं - 1. पूरे देश को डोर टू डोर सेनेटाइज किया जाये | हॉट स्पोट से बाहर आने की इजाजत उन्ही को मिले ज़िनका टेस्ट नेगेटिव आ चुका हो | साथ ही कोरोना टेस्टिग किट का निर्माण युद्ध स्त्तर पर किया जाये | 2. प्रत्येक व्यक्ति के लिए कोरोना टेस्ट अनिवार्य हो और नेगेटिव आने के पश्चात उसे एक प्रमाण पत्र जारी की जाये ज़िसे वो हमेशा पास रखे और किसी भी माध्यम से य़ात्रा करने से पूर्व उसका टेस्ट रिपोर्ट देखी जाये जैसे रेलवे बुकिंग खिडकी पर टिकट देने से पहले | 3. पूरे देश में भीलवाडा और chhattisgarh मोडल लागू किया जाये | इसके फायदे निम्नलिखित हैं - 1. देश को विद्रोह व भीडतंत्र से बचाया जा सकेगा | 2. रेल में आरक्षण एवं सोशल डिस्टेन्स की आवश्यकता समाप्त हो जायेगी | 3. अतिरिक्त ट्रेन की व्यवस्था की समस्या से निजात मिलेगी | 4. बस मालिक ज्यादा किराया ले कर भी य़ात्रियों से सोशल डिस्टेन्स का पालन नही करवा पायेंगे इससे उपजी अव्यवस्था से भी निजात मिलेगी | 5. आटो चालक भूख से मरने से बच जायेंगे | इन प्रयासों से भारत सरकार को अपनी एकोनोमिक दर को थामे रखने में काफी मदद मिलेगी और भारत को कोरोना के साथ रहने के लिए मजबूर नही होना पड़ेगा |

Nijikaran galat hai

एक आंधी चली थी सभी सरकारी विभागों का निजीकरण कर देने की ........ रेलवे/ऑर्डिनेंस/विद्युत/बैंक/शिक्षा/ एन0टी0पी0सी0/एल0आई0सी0/ जल निगम/ कोल इंडिया /स्वास्थ्य विभाग/ परिवहन/ संचार( बीएसएनएल) और न जाने कितने ही विभागों को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी थी। एक रोज एक हैवान आया। हां सही पहचाना #कोरोना ...... तब संपूर्ण भारतीय सरकार सहित जनता को भी याद आए सरकारी कर्मचारी । वही कर्मचारी जो अब तक निठल्ले कहे जाते थे । वही कर्मचारी जो कामचोर कहे जाते थे । वही कर्मचारी जिन्हें भ्रष्टाचारी बताते हुए निजी करण का गुणगान किया जाता था । वही कर्मचारी जिनसे देश की अर्थव्यवस्था खतरे में जा रही थी। वह कर्मचारी जब उसको परितोष ( सैलरी ) मिलती थी तो लोगों के पेट में दर्द होता था कि यह तो व्यर्थ खर्च किया जा रहा है । सरकार प्रत्येक मौके पर खर्च हो रहे मोटे बजट का हवाला देते हुए इसी सरकारी कर्मचारी की सुविधाओं में कटौती करती रहती थी। आज वह सब कहां है ..... आज वह न्यूज़ चैनल कहां है जो इन्हीं सरकारी विभागों को बेचने की तैयारी में इन्हें बेचने के लाभ गिना रहे थे ? वह न्यूज़ चैनलों के एंकर कहां हैं जो इन विभागों को बचाने के आंदोलन को दिखाने में परहेज कर रहे थे । आज वह मीडिया हाउस कहां है जो इन आंदोलनों को महज कुछ सिरफिरे आंदोलनकारियों की जिद कहा करते थे ? *सवाल तो उठेंगे..... और यह सवाल सभी सरकारी कर्मचारियों के हैं ।* इस मुश्किल वक्त में अपने परिवार को छोड़कर दिन-रात देश की सेवा में समर्पित *इन सभी सरकारी कर्मचारियों को हम दक्षिणा स्वरूप क्या देंगे ?* जब हालात बेहतर होंगे क्या फिर वही निजीकरण का तोहफा। मुझे उम्मीद है सरकार और जनता का नजरिया बदलेगा जरूर । आप सोच रहे होंगे आज अचानक यह सरकारी विभागों के निजी करण का जिक्र क्यों ? तो आइए आपको यह भी बता देते हैं कि पूरे देश में सभी सरकारी डॉक्टर, नर्स, बैंक कर्मचारी एवं स्वास्थ्य कर्मी है जो आपकी सेवा में दिन-रात अपना जीवन दाव पर लगाकर कर्तव्य पूर्ण करने में लगे हैं। यह वही स्वास्थ्य विभाग की टीम है जिनकी कर्तव्यनिष्ठा पर देश और देश के लोग प्रश्नचिन्ह लगाते रहे हैं । यह वही सरकारी पुलिस है जो अपना सर्वत्र आपकी सुरक्षा में लगाए हैं उनके लिए दिन है और ना ही रात। यह वही सरकारी सफाई कर्मी है जिनके कार्य में आप प्रतिदिन कमियां इंगित करते रहे हैं । यह वही सरकारी विद्युत विभाग है जिसकी बुराई का गुणगान करने का कोई अवसर आप नहीं चूकते थे। यह वही कोल कर्मचारी है जो विपरीत परिस्थिति मे कोयला उत्पादन कर बिजली को बंद होने नहीं दिया यह वही बैंक कर्मचारी हैं जिनके बैंकों का विलय किया जा रहा हैं या एक दूसरे बैंकों को आपस में मिलाकर उन बैंक कर्मचारियों की प्रतिष्ठा और उनके कार्य पर प्रशन्नचिन्ह लगाया जा रहा हैं। बैंक कर्मचारियों के वेतन वृद्धि नवंबर, १७ से लांबित पड़ी है, उन्हें बेकार समझा जा रहा हैं। कोल कर्मचारियों का ग्रेज्युटी सन 2017 से देने का मुद्दा लंबित पड़ा हुआ है आज वही आपके सुकून एवं सुविधा हेतु इस इस विषम परिस्थिति में देश की लाइफ लाइन (विद्युत) को अपनी शरीर की धमनियों में दौड़ रहे रक्त के निरंतर प्रवाह के समान निर्बाध रूप से व्यवस्थित कर रहा है, जिससे कि किसी भी आकस्मिक सेवा में व्यवधान न हो। यह वही रेलवे है जिसकी सेवाएं सुविधा का मूल्यांकन एक तुलनात्मक विवरण आप प्रतिदिन अपने व्याख्यान में करते रहे हैं। उसी रेलवे के कुछ डिब्बे में अस्थाई अस्पताल, रेल कोच फैक्ट्री कपूरथला में स्वास्थ्य कर्मियों के लिए PPE ड्रेसेस का निर्माण, सस्ते वेंटिलेटरका निर्माण आदि हो रहा है। सरकारी शिक्षकों की काबिलियत पर आप हमेशा प्रश्न चिन्ह लगाते रहे हैं आज वही शिक्षक अपने उसी समाज की रक्षा के लिए देश के बड़े वॉलिंटियर बनकर अपने प्राणों का दांव लगाए हुए हैं। और भी अनेकों ऐसे सरकारी कर्मचारी (युद्धवीर) हैं जो बिना किसी तरह की परवाह करें सदैव की तरह अपने दायित्व व कर्तव्यों का पूर्ण निष्ठा पूर्वक निर्वहन कर रहे हैं। ऐसे तमाम सरकारी विभाग है, एयर इंडिया, सरकारी तेल कोल इंडिया, कम्पनिया, सरकारी टीचर, सरकारी स्कूल के परिसर, इत्यादि जो आज काम आ रहे। बैंक कर्मचारियों से जन धन खाते खुलवाए, नोट बंदी में दिन रात काम करवाया और आज जन धन के खातों में पैसा देकर इन्हीं बैंक वालों से भुगतान करवा रहे हैं। क्या बैंक कर्मचारियों को वायरस का खतरा नहीं है? जब तक सरकारी सम्पतियाँ, सरकारी तंत्र, सरकारी विभाग हैं, तभी तक आप सरकार हैं, वरना आप का भी कोई बजूद नहीं, जिस पर अधिकार के साथ हुक्म चला सकें। स्थिति सामान्य होने के बाद सोचिएगा जरूर। **सरकार की हर विपदा में यही सरकारी कर्मचारी अपनी उसी वेतन धनराशि से सर्वप्रथम देश हित एवं अपने समाज के प्रति दायित्व का निर्वहन करते हुए अपने और अपने परिवार का 1-2 दिन का सर्वत्र दान करता रहा है ।* यह भी एक तरह से युद्ध ही है जिसमें यह पता नहीं कि कोरोना रूपी दुश्मन किस ओर से प्रहार कर देगा। सरकार से यह अनुरोध है कि कर्मचारियों के देश एवं समाज के प्रति त्याग, बलिदान एवं सर्वथ समर्पण को ध्यान में रखते हुए अपने आगामी निर्णयों के समय यह न भूलें की विपदा के समय सबसे पहले व्यक्तिगत, सामाजिक एवं आर्थिक रूप से सरकारी कर्मचारी ही हर लड़ाई की शुरुआत करता है एवं अंत तक अगर कोई उस लड़ाई को लड़ता है तो सरकारी कर्मचारी ही होता है। *सुन इस धरा के लिए मैं,* *बता और क्या क्या करूं मैं,* *बस यही आरजू शेष है मुझमे,* *कि सौ सौ बार मरूं मैं ।* *सौ सौ बार जियूं में ।* कोरोना#सरकारी कर्मचारी#पुरानी पेंशन#वेतन विसंगति#निजी करण#आंदोलन आप सभी से अनुरोध है कि आप हर माध्यम व्हाट्सएप, फेसबुक, टि्वटर, इंस्टाग्राम आदि के माध्यम से *सरकारी कर्मचारियों,अर्ध शासकीय कर्मचारियों * द्वारा संकट के इस समय में किये गए कार्यों को देश हित में अधिक से अधिक शेयर करें। जिससे यह मैसेज देश एवं हर प्रदेश के नीति निर्माताओं तक पहुंच सके। *जब तक सरकारी सम्पतियाँ, सरकारी तंत्र, सरकारी विभाग और सरकारी बैंक हैं, तभी तक आप सरकार हैं, वरना आप का भी कोई वजूद नहीं, जिस पर आप लोग अधिकार के साथ हुक्म चला सकें। स्थिति सामान्य होने के बाद सोचिएगा जरूर।* जय भारत, जय भारतीय।

Public ki najar mein sarkar ke faisle

जब शराब बंदी करनी थी, तो नोट बंदी कर दी ! जब टैक्स कम करके व्यापारियों को राहत देनी थी तो GST लगा दी ! जब AIIMS और यूनिवर्सिटी बनानी थी तो 3000 करोड़ की मूर्ति बनवा दी! जब 2 करोड़ नौकरियां हर साल देनी थी तो सबको चौकीदार बना दिया ! जब बेरोज़गारी हटानी थी तो पकौड़ों की रेहड़ी लगाने की सलाह दे दी ! जब भाईचारा बढ़ाना था तो सारे देश में हिंदू मुस्लिम में नफ़रत फैला दी ! बाढ़ रोकने के लिए बांध बनाने थे तो पूरे देश में अपनी पार्टी का मुख्यालय और कार्यालय बनवा दिये ! वायु मार्ग से जवानों को सुरक्षित भेजना था तो सड़क मार्ग से भेज कर 40 जवान शहीद करवा दिए ! जब कोरोना वायरस से बचाव के लिए रणनीति बनानी थी, तब ट्रंप की आरती उतारी जा रही थी ! जब मास्क बनवाने थे तब ग़रीबी छुपाने के लिए दीवार बनवाई जा रही थी । जब वेंटीलेटर ख़रीदने थे तो विधायकों को ख़रीदा जा रहा था। जब विदेशियों को रोकना था तब मध्य प्रदेश में सरकार बनाई जा रही थी ! जब डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए उपकरण मुहैया कराने थे तो ताली थाली पीटवाई जा रही थी। लॉक डाउन करने से पहले तैयारी करनी थी तो अपने भक्तों की संख्या चैक की जा रही थी। जब डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को सुरक्षा मुहैया करानी है लोगों को चेतावनी देनी है तो दिया/ मोमबत्ती जलाने की सलाह दी जा रही थी। अब_प्रवचन_दिये_जा_रहे_हैं ! ❓ 👉लॉक डाउन का सख्ती से पालन करें - आप 👉अपना ध्यान खुद रखें - आप 👉भूखों का भी ध्यान रखें - आप 👉बुजुर्गो का विशेष ध्यान रखें - आप 👉अपने घरों के गहने तक मेरे एकाउंट में दान कर दे - आप तो_बताओ_आपको_प्रधान_मंत्री_किस_लिए_बनाया है? सरकार की नाकामी पर बात करो तो कहते हैं कि सकंट की इस घड़ी में राजनीति ना करो। ❓

C

Virus ki dahsat

एक डॉक्टर जो ज़िन्दगी की जंग जीत चुकी थी !आई डियुटी ......,पर .....होस्पिटल मे लाशों की ढ़ेर देख कर हुआ उसका हार्ट अटेक ........ओर वह ज़िन्दगी की जंग हार गयी एक कमज़ोर वायरस की दहशत ........समझाने का प्रयास कर रही हैं तुमहे .........,तुम कमज़ोर नही .....कमज़ोर तुम्हारा होसला हैं !एक अकेला दुनिया का सबसे छोटू वायरस ....... वह भी निर्जीव .......कर रहा दुनिया को तबाह ........जब की हमला यह उसका पहला हैं | उठो , अब मत देखो उनकी ओर ......धर्म परीवरतनं मत करो | सरकार ने तुम्हे आरक्षण दिया ....तुम्हे शिक्षा में आगे बढाया |यह तुम्हारे प्रति ईश्वर की आशिष नही तो ओर क्या हैं ?अब अन्य भी आरक्षण की मांग करते हैं | ईश्वर भी हत्प्रभ हैं .......तुम्हारी हताशा देख कर ......वह खुद आया धरती पर ....तुम्हे समझाने .......,कष्ट भोगा, जंगल जंगल खाक छानी कांद मूल खाया, पत्थर पर सोया , पर अंततः लक्ष्य को पाया | मैं पुनः कहता हूँ मत देखो उनकी ओर ......जो तुम्हारा धर्म बदलवाते हैं और खुद बंटे हुए है अपनी कौम में , पर तुम्हे ऊँच- नींच का भेद बताते हैं | पर तुम जांबाज हो . हौसला आफजाई करो उनका जो धर्म परीवर्तन करे चुके हैं य़ा करने वाले हैं | भरी पड़ी हैं सत्य घटनायें रामायण . महाभारत और गीता में , गिर कर उठ जाने की | तुम भी ऐसा कर सकते हो , असहाय नही हो तुम | लो बैंक से ब्याज मुक्त कर्ज और खड़ा करो अपना व्यवसाय | मत देखो तुम उन गिद्धों और चमगादडो की ओर जो तुम्हारे मस्तिष्क एक एक हलचल पर नजर गढाये बैठे हैं | आने वाले समय में ये तुम्हे हिंदुस्तान के खिलाफ खड़ा कर देंगें .....अपनी माँ..... अपनी जननी के खिलाफ खड़ा करे देंगें | mt डरो , मत भटको , अम्बेडकर जी के गीत गाओं , उनके संघर्ष को अपने जीवन का संगीत बनाओं , दुहराते रहो उनके संकल्प को ...... यह जीवन हैं एक अग्निपथ . अग्निपथ . अग्निपथ | ,,

Virus se bache

*मैं आपसे निजी तौर पर निवेदन कर रहा हूँ* अगर मार्केट खुलता भी है तो भी घर से बाहर ना जाएं क्योंकि वास्तविक स्थिति बहुत ज्यादा खराब है! 10% भी आंकड़े स्पष्ट नहीं है! मई और जून पूरा घर पर ही रहें और आगे 1 साल तक बहुत ज्यादा आप अपनी और परिवार की सेफ्टी करें! अपना ध्यान खुद रखें गवर्नमेंट के पास भी इसका कोई उपाय नहीं है, हालात बहुत खराब है! अस्पतालों में व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं है जो कर रहे हैं, वह खुद बहुत डरे हुए हैं! अस्पतालों में पहुंचने वाला सामान्य पेशेंट भी कोरोना ग्रस्त हो रहा है! *अपनी जान खुद बचाओ* स्थिति जितनी बताई जा रही है उससे कई गुना ज्यादा गम्भीर हैं, इस बात को बिल्कुल हल्के में ना लें आपका कोई करीबी चाह कर भी आपकी मदद नहीं कर पाएगा, आपकी जमा पूंजी/सारा पैसा धरा का धरा रह जाएगा कोरोना होने पर कुछ भी काम नहीं आएगा! *याद रहे, सच्चाई और दवाई दोनों बहुत कड़वी होती है, लेकिन स्वीकार करने में ही समझदारी है* इस बात से ही अंदाजा लगा लीजिए कि 135 करोड़ की आबादी है अपने देश की अगर रोजाना 1 लाख टेस्ट भी होंगे... तो आखिरी व्यक्ति का नंबर 37 साल बाद आएगा ! यह अब हमारे जीवन का एक हिस्सा है जिसका असर कई वर्षों तक देखने को मिलेगा जैसे एड्स, कैंसर, पोलियो, टीबी और अब कोरोना। इन सभी बीमारियों में कोरोना संभवतः सबसे ज्यादा भीषण और घातक है। 🙏🏻💐🙏🏻

Purana bharat mera mitra

*क्या लगता है आपको, 3 मई के बाद एकाएक कोरोना चला जायेगा, हम पहले की तरह जीवन जीने लगेंगे ?* नही, कदापि नही। ये वायरस अब हमारे देश में जड़ें जमा चुका है, हमे इसके साथ रहना सीखना पड़ेगा। कैसे ? सरकार कब तक लॉक डाउन रखेगी ? कब तक बाहर निकलने में पाबंदी रहेगी ? हमे स्वयं इस वायरस से लड़ना पड़ेगा, अपनी जीवन शैली में बदलाव करके, अपनी इम्युनिटी स्ट्रांग करके। हमे सैकड़ों साल पुरानी जीवन शैली अपनानी पड़ेगी। शुद्ध आहार लें, शुद्ध मसाले खाएं। आंवला, एलोवेरा, गिलोय, काली मीर्च, लौंग आदि पर निर्भर हों, एन्टी बाइटिक्स के चंगुल से खुद को आज़ाद करें। अपने भोजन में पौष्टिक आहार की मात्रा बढ़ानी होगी, फ़ास्ट फ़ूड, पिज़्ज़ा, बर्गर, कोल्ड्रिंक की भूल जाएं। अपने बर्तनों को बदलना होगा, अल्युमिनियम, स्टील आदि से हमे भारी बर्तन जैसे पीतल, कांसा, तांबा को अपनाना होगा जो प्राकर्तिक रूप से वायरस की खत्म करते हैं। अपने आहार में दूध, दही, घी की मात्रा बढ़ानी होगी। भूल जाइए जीभ का स्वाद, तला-भुना मसालेदार, होटल वाला कचरा। कम से कम अगले 2 -3 साल तक तो ये करना ही पड़ेगा। तभी हम सरवाइव कर पाएंगे। जो नही बदले वो तकलीफ पावेंगे। इस बात को मान कर इन पर अमल करना शुरू कर दें।

Rice bran oil

लोक डाउन खुलने के बाद की बेरोजगारी की भयावह तश्विर मुझे चैन नही लेने दे रही थी कि ईरफान खान की केंसर से मौत मुझे बैचेन कर गयी ,मेरी बेतरतीब सांसे अभी ब्यवस्थित भी नही हुई थी कि ऋषिकपूर की भी केंसर से ही मौत मेरी सांसों को ओर उलझा गयी .......ओर मेरे चिंतन ने ...मन की बैचेनी ने अपना रुख किया केंसर की ओर ...मैने तलाशने की कोशिश की उसकी छोर | इन दो महान आत्माओ को मेरी ओर से यह एक श्रधांजली ही होगी .....यदि मैं समझा पाया की रिफाइन्ड तेल भी हैं केंसर की मजबूत डोर | तली चीजे खाने का शौक हैं जो जनमानस में .... पर उनहे मालूम होना ही चाहिये की जन्म दे रहा हैं यह केंसर को उसके तन में | आप भी चिंतन करें | बड़े पेमाने पर बीज से तेल निकालने के लिए पेट्रोलियम का एक पदार्थ 'हैक्जेन (केमिकल )का उपयोग किया जाता है। फिर ड़ीगमिंग की जाती हैं, दूर्गंध निकालने के लिए ,फिर ड़ी ओर्डराईजेसन व ब्लिच के पश्चात 2000 तापमान पर तेल को उबाला जाता है फिर ऐसेंस व प्रीज़रवेटीव डाल कर आपके सामने परोस दिया जाता है | स्मोक पोइन्ट लो होने से तेल मजबूर हैं अपनी संरचनायों से कि एक बार उबला तो उसके सारे गुण खत्म और बच जाता है मात्र कचरा , यह तेल गर्म होने के बाद धुआ टाइप का कुछ देती हैं यानि अणु टूटते हैं और फिर फ्री रेडीकल का जन्म होता है जो आपके स्वस्थ कोशिका में ज़म जाते हैं | प्रथमतः तो यह सुस्ती , कमजोरी , चक्कर , सिर दर्द , पेट दर्द , कबजियत .... फिर समय अंतराल में यह केंसर के रुप में अपना भयावह अवतार लेती है जो अंततः मनुष्य को असहनीय कष्टदायक मौत के जंगल में छोड़ देती है | ऐसी गंभीर परिस्थिती में विग्यापनों में न उलझ कर हमें स्वयं ही निर्णय लेना होगा कि हम मात्र फिल्टर य़ा कच्ची घानी का ही तेल खाये य़ा आयुश मन्त्रालय द्वारा प्रस्तावित राइस bran तेल जो पूर्णतः केमिकल फ्री होते हैं और इसका स्मोक पोइन्ट bhi काफी हाई होता है | भारत इसका एक बड़ा निर्यातक है तो क्यो न हम अपने देश का तेल खाये और स्वस्थ जीवन के अनन्त सुख के भागीदार बने | क्या मैने कुछ गलत लिखा ? आपकी राय मेरे लिए अमुल्य है |

Korona se savdhan

*मैं आपसे निजी तौर पर निवेदन कर रहा हूँ* अगर मार्केट खुलता भी है तो भी घर से बाहर ना जाएं क्योंकि वास्तविक स्थिति बहुत ज्यादा खराब है! 10% भी आंकड़े स्पष्ट नहीं है! मई और जून पूरा घर पर ही रहें और आगे 1 साल तक बहुत ज्यादा आप अपनी और परिवार की सेफ्टी करें! अपना ध्यान खुद रखें गवर्नमेंट के पास भी इसका कोई उपाय नहीं है, हालात बहुत खराब है! अस्पतालों में व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं है जो कर रहे हैं, वह खुद बहुत डरे हुए हैं! अस्पतालों में पहुंचने वाला सामान्य पेशेंट भी कोरोना ग्रस्त हो रहा है! *अपनी जान खुद बचाओ* स्थिति जितनी बताई जा रही है उससे कई गुना ज्यादा गम्भीर हैं, इस बात को बिल्कुल हल्के में ना लें आपका कोई करीबी चाह कर भी आपकी मदद नहीं कर पाएगा, आपकी जमा पूंजी/सारा पैसा धरा का धरा रह जाएगा कोरोना होने पर कुछ भी काम नहीं आएगा! *याद रहे, सच्चाई और दवाई दोनों बहुत कड़वी होती है, लेकिन स्वीकार करने में ही समझदारी है* इस बात से ही अंदाजा लगा लीजिए कि 135 करोड़ की आबादी है अपने देश की अगर रोजाना 1 लाख टेस्ट भी होंगे... तो आखिरी व्यक्ति का नंबर 37 साल बाद आएगा ! यह अब हमारे जीवन का एक हिस्सा है जिसका असर कई वर्षों तक देखने को मिलेगा जैसे एड्स, कैंसर, पोलियो, टीबी और अब कोरोना। इन सभी बीमारियों में कोरोना संभवतः सबसे ज्यादा भीषण और घातक है। 🙏🏻💐🙏🏻

Gobar v gau mutra ki upyogita

पिछली पोस्ट में मैं कोरोनां काल के पश्चात आने वाली संभावित बेरोजगारी को ले कर उनके समाधान के सन्द्रभ में चिंतनशिल था किंतु उसके साथ साथ साये की तरह आने वाली भुख मरी से मेरा ध्यान कैसे हट गया ! मैं इस वक्त काफी क्रोधित हूँ खुद पर | सड़क पार करते समय सड़क के किनारे खडा मैं खुद को कोस .ही रहा था कि एक वाहन तेजी से मेरे सामने से गुजर गयी और एक गाय वाहन से बचते . बचते भागती सी मुझसे टकराते टकराते बची ओर में भी गिरते गिरते बचा ओर इस घटनाकरम से मेरा ध्यान एक बार फिर अपने चिंतनं से हट कर सड़क पर ड़ेरा डाले इन लवारिस पशुओं पर आ कर टिक गया कल ही किसी ने कतलखने की फोटू मुझे सेंड की थी मुझे याद आया ओर आँखो में चलचित्र की भांति कसाई खाने ले जाती पशुओं की हितों की रक्षा के लिए हुए आंदोलन , गिर्फतारियां हत्यायें गुजरने लगी | हमें समझना होगा कि ये गो कतल तभी रुकेंगे जब ये नही बिकेंगे | रोड में दंगा न करें , संसद में बने कानुन का कडाई से पालन शुनिश्चित करवायें | थाने में. इसकी एक स्पेशल टीमं बने पुराने कतलखाने धीरे धीरे बंद हों नए लाइसेंस देना भी बंद हो इस हेतु संसोधन सदन में हो....... बहुत मुश्किल हैं यह ......बहुत ही बुद्धीमत्ता पूर्नं कार्य है इसमे सहनशिलता की आवश्यकता हैं पर सस्ती लोकप्रियता के लिए लोग कुछ भी करते हैं ......गलत हैं यह .... उनहे मतलब नही की गो माता के आंसू आज भी झर झर बह रहे हैं .......ज़रा पास आ कर उसकी आँखों में गौर से देखें तो सही , उसे एक बार गले तो लगाएं ...... , चुम्मी दें मां को | खैर अब भी समय हैं आईये ग्रामिणो में इन पशुओं के प्रति जागरुक्ता पैदा करें , इसकी उपयोगिता साबित करें | उन्हें गौ मूत्र एकत्रित करना सिखा कर इसे आयूर्वेद कम्पनी में सप्लाई करने का मार्ग दिखायें , गोबर से वर्मी कम्पोस्ट बना कर खेतों को जहर मुक्त करवायें , समाज को कैन्सर से बचायें , ग्रामिनों को आय का एक स्थायी श्रोत दें , गोबर गैस सन्यत्र लगवायें , उपले का प्रचलन पुनः बढाये और गौ माता की म्रत्यू के बाद उन्हे हम सम्मान पूर्वक दफना दें | आप देखेंगे इसके परिणाम में सड़क खुदबखुद खाली हो जायेगी .... उसकी जान भी बच जायेगी वह अंतारात्मा से आशिर्वाद देगी...... ज़रा बात तो कर के देखें उससे | एक सर्वे के अनुसार दुनिया में 50 करोड लोग आने वाले समय में गरीबी रेखा से नीचे आने वाले हैं , अब क्या कहेंगें आप ? अपनी राय अवश्य दें |

Sharab badi umda chij hai

शराब बड़ी उमदा चीज है | लाइन में लगे हैं तो कोरोना का भय नही , कोई टच भी कर गया तो मौत का डर नही | नशे में हो तो क्या बात है ..... कुछ करने की चाह उमड़ ही आती है , ज़िसे वे बडे मनोयोग से , पूरी फ्लानिंग से .....हाँ जी .......पूरी फ्लानिंग से करने की कोशिश करते हैं जैसे डयूटी में हो तो अपने मैनेजर को गाली देंगें , अपनी पूरी भडास निकाल लेंगें , सुबह कार्यालय में आ कर माफी भी मांग लेंगें - कि सर ! गलती हो गयी कल थोडी सी ज्यादा हो गयी थी , माफ करे दो न ! सर मैने तो कुछ नही कहा था ..... जिसने कहा था , वह तो चली गयी | भीड में अवान्छनीय हरकते , निकल लिए तो ठीक ....नहीं तो हाथ जोड़ दिये , बहन जी ...., साइड फ्लीज | अभी तो यह अर्थ व्यवस्था मजबूत कर रहे हैं , चुनाव में तो फ्री की मिलती हैं , नेताओं की काली कमाई इसी में तो निकलती है | उस वक़्त ये शराबी सत्ता चाहे ज़िधर.... उधर पलट देते हैं , बुधिजीवी खडे रह जाते हैं | शराब बड़ी उमदा चीज है | कार्य स्थल पर सभी इससे कुछ कहने से कतराते हैं | दुकान में सामान लेते वक़्त , विषेशकर पैसे देते वक़्त स्टाइल से इतराते हैं | दुकानदार नाक मुंह सिकोड रहा होता है , पर वे नही दरशाते हैं | घर में पड़ते ही इनके कदम , पत्नी कुछ डरी - डरी सी .... बच्चे भी अलग थलग , कुछ कोने में छिप जाते हैं | व्रध माता पिता होठों को सिल लेते हैं | आँखों से उनके झर झर आंसू बहते हैं | भई शराब बड़ी उमदा चीज है , ये किसी से नही डरते...... सब इनसे डरते हैं |

शुक्रवार, 15 मई 2020

Irfan khan ko shradhanjali

इरफ़ान ख़ान नहीं रहे। मुझे व्यक्तिगत रूप से सचमुच बहुत दुख है, इसलिए नहीं कि हमने एक महान अभिनेता खोया, वो तो और भी हैं...लेकिन इरफ़ान के जैसा इंसान खोया... इरफ़ान... कठमुल्लों से खुलकर लोहा लेने वाला मुसलमान, धर्म का असली मतलब समझने, और समझाने वाला मुसलमान, शाकाहार की वकालत करने वाला मुसलमान, आतंकवाद पर मुल्लों की चुप्पी पर सवाल उठाने वाला मुसलमान, बकरीद जैसे घृणास्पद रिवाज़ों पर सवाल उठाने वाला मुसलमान, रोज़े का असली मतलब (अपने भीतर झांकना) समझने वाला मुसलमान, भारतीय मुसलमानों का सच्चा प्रतिनिधि मुसलमान... सबसे बड़े शाकाहारी प्रदेश और सबसे ज़्यादा देशी गाय रखने वाले महान राज्य राजस्थान की पैदाइश.. यार एक ढंग का मुसलमान.. खो दिया हमने। ये एलोपैथी किसी काम की नहीं, नहीं बचा पाई इस हीरे को.. मुश्किल है कि हर काम का आसाँ होना... आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसां होना -ग़ालिब लेकिन ये तो एक सच्चा मुसलमान था, सच्चा इंसान था..ईश्वर इसे मेरे पुण्य भी दे🙏🙏🙏🙏🙏😔

Aarthik chunotiyan

हम आर्थिक चुनौतियों के दौर में हैं। बहुत से लोगों की नौकरी चली गई होगी या जा सकती है। सैलरी कम हो गई होगी या हो सकती है। याद रखना है कि ये हालात आपकी वजह से नहीं आए हैं। आप ख़ुद को दोष न दें। न हार, अपमानित महसूस करें। रास्ता नज़र नहीं आएगा लेकिन हिम्मत न हारें। कम से कम खर्च करें। अपनी मानसिक परेशानियों को लेकर अकेले न रहें। दोस्तों और रिश्तेदारों से बात करें। किसी तरह का बुरा ख़्याल आए तो न आने दें। इस स्थिति से कोई नहीं बच सकता। *धीरे धीरे खुद को पहाड़ काट कर नया रास्ता बनाने के लिए तैयार करें।* अपनी भाषा या सोच ख़राब न करें। कुछ भी हो जाए, जीना है, कल के लिए। धीरज रखें। कम में जीना है। यह वक्त आपका इम्तहान लेने आया है। *भरोसा रखिए जब आपने एक बार शून्य से शुरू कर यहाँ तक लाया है तो एक और बार शून्य से शुरू कर आप कहीं पहुँच जाएँगे। बस यूँ समझिए कि आप सांप सीढ़ी खेल रहे थे। 99 पर साँप ने काट लिया है लेकिन आप गेम से बाहर नहीं हुए हैं। क्या पता कब सीढ़ी मिल जाए। जल्दी ही मिल जाएगी...* हंसा कीजिए। थोड़े दिन झटके लगेंगे। उदासी महसूस हो सकती है, लेकिन अब ये आ गया है तो देख लिया जाएगा, निपट लेंगें... यह सोच कर रोज़ जागा कीजिए। सकारात्मक रहिये।

Namaste trump

नमस्ते ,! ट्रम्प के पहले एक भी न था, जो करता .. कोरोनां का प्रसार ,पर दुत्र गति से बढ रहा था वायरस ,भारत की ओर .. करने को व्यापार ,लापरवाही की हद तब हुई , जब शिवराज की गंदी ताजपोशी हुई थी .. तब थी .......मौत भारत के द्वार , जीत का जशन मना था और भारत में मचा हा हा कार , क्या यही हैं अनुभवी सरकार |

Aatm nirbharta

ट्रक में मजदूर लदे थे य़ा पशुओं की खेप थी , समझ नही पा रही थी प्रशासन , सरकार भी झेंप रही थी | ग्रामीण भारत की लाशों पर हिंदुस्तान की आत्म निर्भरता भी भेंट चढ रही हैं | गलत समय पर लाया गया है यह मुद्दा ! उधर पी .ओ .के . के भी समाचार चलवाये जा रहे हैं | बैलगाडी को अपने कंधो से खीचते बेबस से सबका ध्यान भटकाये जा रहे है | कश्मीर भारत का हिस्सा है , कोई शक नही | आज नही तो कल ले कर रहेगे | पर वक़्त का तकाजा है कि अभी पूरा ध्यान वहां केन्द्रित करना है जहां 'सड़क'..... ग्रामीण भारत को निगल रही है | आत्म निर्भरता की बात 15 वर्ष पूर्व ही करनी थी | भारत व्यवस्थित था उस वक़्त | 70 सालों में पिछली सरकार ने उपलब्ध करवा कर रखे हैं समस्त संसाधन , बस व्यवस्थित ढंग से उनका दोहन कर सरकार खुद के नेत्रत्व को चमका लेती | भारत अब तक एक आध सोने की चिडिया पैदा कर चुका होता जो आने वाले वर्षों में चहचहाने लगती | बाबा रामदेव का , बाबा कर्मवीर का स्वदेशी सपना साकार हो रहा होता | पापी कौन ? जिसने कभी पाप न किया हो वह पहला पत्थर मारे , इसी की आड़ लेकर सरकार बचती आ रही है | हर सत्य बात को वह 70 सालों से जोड़ देती है | इससे सरकार के गुनाह कम नही होगें | आज नही तो कल या आने वाली पीढियां आपसे पूछेंगी कि 23 फरवरी 2020 से पहले मजदूरों को क्यो नही पहुचायां गया था उनके घर ? उनके रूदन से गूंजी थी धरती , गूंज गया था आसमान | क्यों नही आंसू पोंछे थे तत्काल , खुद को कहते रहे भगवान | dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">

बुधवार, 13 मई 2020

Majdooron ki dagar

मैं विनम्रता के साथ अपनी भावनायें व्यक्त करना चाहता हूँ कि एक दिन हिंदुस्तान भी लौक डाउन की भयावह अव्यवस्था से अवश्य निकलेगा , मुझे पूर्ण विश्वास है | टाइम पास के लिये शराब बन्दी की बात यदि की जाये तो यहाँ राजनीति हो गयी | शराब बिक्री की इच्छा राज्यों पर छोडा , विरोधियों ने उन्हे ......शराब बंद करो कह कर घेरा | ज़रा इधर तो देखो , ये बाबू ने क्या कह दिया ! बिना पंजियन व रिकार्ड के मजदूरों को ट्रेन व बस में सफर का हक नही | ये विदेशी हो गए , आइडेन्टिटी कार्ड का मोल नही | कांकरीले पत्थर की डगर उनके नसीब में ....अरे यह क्या लिख गया उनकी तकदीर में | डगर की रेल पांतों पर तुम फिर कहीं सो न जाना , वोट लेंगें ये तुम्हारा , वोट से पहले कही तुम खो न जाना | छुपा कर अपनी उलझने , कह न दे ये कि गैरत अभी बाकी है , दे देना फिर वोट हमें ही , आपकेh मनोरंजन के लिए हमारी अनाडीपन की कई कारगुजारियां अभी बाकी हैं | dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">

सोमवार, 11 मई 2020

1947 ka deta ehsas

सन 1947 के ह्रदय विदारक द्रश्य की कुछ कुछ पूनरावृती ...मिलती जुलती सी तस्वीर शरीर के रोंगटे खडे कर देने के लिये पर्याप्त है | ह्रदय को कम्पकम्पा देने के लिए काफी है | महसूस करने के लिए यह काफी हैं कि हजारों की संख्या में सड़क पर , रेल की पटरियों पर निकल पडे , मजदूरों की किस कदर मजबूरियां रही होगी कि पाव के छाले भी बेबस थे .... उनके आगे बढते कदम को रोकने के लिये | कुछ कुछ शब्द का प्रयोग हमने इसलिये किया कि इस द्रश्य में मार काट , चीख पुकार बिल्कुल भी नही थी , बस चल रहे थे ....शांत थे पर ह्रदय में असीमित हलचल तो थी | .... उपरोक्त कथन में कुछ समानतायें तो है ही जो शासक की अयोग्यता को चीख चीख कर चौराहे की सलीब पर लटकाने के लिये बेताब है | दो साल की मासूम .....सड़क पर घिसटने के लिये मजबूर है .... माँ मुहं में पल्लू ठूँस कर ....सिसकने के लिये मजबूर है | पूरा हिंदुस्तान उनके रूदन से हिल रहा है | विदेशियों के कोरोना के दंश को वह निरपराध झेल रहा है | जिस तरह अंग्रेजों की लाठिय़ां खायी थी , उसी तरह आज भी अव्यवस्था की अद्रश्य लाठिय़ां खा खा कर रो रहा है | अमीरों के लिए प्लेन की व्यवस्था करने के बाद अब जा कर सरकार मजदूरों के लिए भी ट्रेन उपलब्ध करवा रही है , बस की भी व्यवस्था की जा रही है पर ऊट के मुहं में जीरा वाली कहावत ! कोई भी साधन उन तक समय पर नही पहुच पा रहा है और वे चल रहे है निर्विकार ....सड़क पर .... रेल की पटरियों पर | ईश्वर की आँखें भी नम | कही भूख से , कही थकान से तो कही रेल की पांतों पर सांसें थम रही हैं | यदि सरकार नमस्ते ट्रम्प के रास्ते गुजरात में कोरोना के शंखनाद से पहले इन व्यथित आत्माओं को उनके गांव भेज दिये जाने की व्यवस्था कर उन्हे राहत दे देती तो आज इस दुखद प्रसव के लिए सर्जरी न करनी पड़ती | गंभीर चूक तो हुई है इससे इंकार नही किया जा सकता है | आसान था यह उस वक़्त | मजदूरों के नियोक्ताओं को उनके लिए ई - टिकट बनवाने की बात कहनी थी | घर जाने का उनका नम्बर आने तक उन्हे वही फैक्टरी में ही क्वारेन्टाइन रहना था एवं 10-15 दिनों में क्रमवार उनके लिए ट्रेन व बस की व्यवस्था कर देनी थी साथ ही नितोक्ताओं से एक एक माह का वेतन बोनस के रुप में सफर खर्च के लिए दिलवा कर उनके चेहरे पर खुशियां ला कर लौक डाउन की घोषणा व्यवस्थित ढंग से कर देनी थी | इससे सरकार पर कोई आर्थिक बोझ भी नही पड़ता | लौक डाउन में भी शराब दुकानें खुलवाने का अविवेक पूर्ण निर्णय भी नही लेने पड़ते | सोशल डिस्टेन्श की धज्जिया भी नही उड़ती ओर नशे मे हिंदुस्तान भी न झुम रहा होता | समझ रहे है न !मैं क्या कहना चाह रहा हूँ ? dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">

रविवार, 10 मई 2020

Gaon ki pagdandiyan

ट्रैन एक लम्बी सांस छोडती थकी . थकी सी लखनऊ स्टेशन पर आ कर रुक चुकी थी | मैं प्रतिक्षारत था कई दिनों से इसी अवस्मरनिय क्षण का उतरते मजबूत भारत निर्माता मजदूर का | उनकी वेदना उनकी आँखों में झलक रही थी झूर्रीयों से भरी हड्डिया भी उत्साहित सी अपना समान समेट रही थी यह भी एक न भुला देने वाला पल था . .पुलिस वाले भी उन पर फूल बरसा रहे थे कही कहीं थोड़ा रौब भी झाड रहे थे मैने महसूस किया ऐसे लोगों की हथेली में हसी ठिठोली की रेखायें क्षीण होती हैं | मात्रभूमि तक जल्द पहुच जाने की तड़प इनकी आँखो में साफ देखी जा सकती थी | दर असल मन एक विहंग है और पैत्रक घर मन को ठंडक dene वाला एक छांव | उडान चाहे कितनी भी ऊँची क्यों न हो , अंचिनहे आकाश में तो ठहरा नही जा सकता , एक घोसले की आवश्यकता तो पड़ती ही है | उसकी मजबूती के लिए तिनका - तिनका भी बुनना ही पड़ता है , यही तिनका उसे बुलाती है सिद्दत से , जब वह मुशकिल में होता हैं | इतिहास साक्षी है कि 1918 में भी ऐसी ही त्रासदी आयी थी | देश के लगभग 1करोड़ 80 लाख लोग काल कवलित हुए थे | उसे स्पेनिश फलू के नाम से जाना गया और यह वायरस पूरे दो वर्ष तक दुनिया में उत्पात मचाता रहा , तो क्या यह सरकार के संग्यान में नही था? कोई भी सरकार किसी को भी दो वर्ष तक बैठा कर नही खिला सकती तो समय रहते नमस्ते ट्रुम्प की जगह नमस्ते इन्डिया क्यों नही हुआ | क्या देश की व्यवस्था से पहले मध्य प्रदेश की सत्ता आवश्यक थी ? समय रहते मजदूरों के गांव गुलजार क्यो नही हुए ? प्रश्न तो सुलगते ही रहेंगें ,औरअब शराब भी गली गली बिकते ही रहेंगे पर इन सबसे अनजान एक न्नही सी गुडिया अपने गांव की पगडनडियों पर उछल उछल कर चल रही थी , पक्षियों की चहचहाहट मन को आनन्दित ही कर रही थी , अब साँझ हो चली थी| dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">

Jeevan Shelly badle

वक़्त आ चुका है कि जीवन संगिनी की चूडियौ की खनक से हम जीवन जीने की ऊर्जा लें , उनकी आँखों में खुद को शाम को जल्द घर लौट आने की प्रतीक्षा का विश्लेशण करे , उनके प्रेम की गहराई को अपने दिल की गहराई में उतर जाने दें, बच्चों के संग गिल्ली - डंडा , लूडो , कैरम व पिठ्ठुल खेलें | अपना बचपन लौटा के लाये , अपनी जीवन शैली बदले | घर के पास ही जीवन यापन का श्रोत ढूंढे | पैसे कम मिलते है , परवाह नही य़ा अपना व्यवसाय ही प्रारम्भ करें | ऑन लाइन जॉब को भी प्राथमिकता दें पर किसी भी परिस्थिती में घर से दूर न जायें | विधायक , सांसद , मंत्री , प्रतिनिधि गण , पंच , सरपंच , मेयर , पार्षद सब अपने अपने क्षेत्र में प्रत्येक घर से एक व्यक्ति को रोजगार दिलवाना सुनिश्चित करे , न कर पाये तो सरकार उसे निलम्बित करे | यदि सरकार सही मार्ग प्रशस्त न कर पाये तो जनता सरकार को निलम्बित कर दे | बस इसी एक लक्ष्य को ले कर सभी राज नितिग्य अपना काम करें | चीन से हजारों कम्पनियां भारत आने को बेताब खडी हैं , उसे हर हाल में सरकार भारत में स्थापित करे अन्यथा आये दिन बदहवास ज़िन्दगी पटरी पर कटती रहेगी | अभी मिड डे मील से लंगर चलवाये | आरोप प्रत्यारोप की संस्कृती को दफन करना होगा , अब राज नेताओं को भारत को नयी गति देने नयी शैली अपनानी होगी | शिक्षा में भी प्रथम कक्षा से ही रोजगार परक शिक्षा देनी होगी | क से काम , ल से लगन , स से सफलता पढाना होगा | dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">

Padam shree mukutdhar Pandey ji

 *पदम श्री मुकुटधर पाण्डेय जी पर शोध पत्र* -----पगडंडियों मे धूप की तपन गांव के जिंदा होने का बोध कवि हृदय में भारत के स्पंदन का प्रमाण देती...