सोमवार, 22 जून 2020

Pratykshm Kim pramanam

नास्तिकों के लिये मध्यप्रदेश में आगर मालवा नाम का जिला के वकील जय  नारायण शर्मा के जीवन  में घटित सत्य घटना ग्यान चक्षु खोलने के लिए काफी है |

       जैसा मैने पढा अक्षरस: उसी स्वरूप  में प्रस्तुत  |

मध्यप्रदेश में आगर मालवा नाम का जिला हैं। वहाँ के न्यायालय में सन 1932 ई. में jay narayan शर्मा नाम के वकील थे। उन्हें लोग आदर से बापजी कहते थे। वकील साहब बड़े ही धार्मिक स्वभाव के थे और रोज प्रातःकाल उठकर स्नान करने के बाद स्थानीय बैजनाथ मन्दिर में जाकर बड़ी देर तक पूजा व ध्यान करते थे। इसके बाद वे वहीं से सीधे कचहरी जाते थे।

घटना के दिन बापजी का मन ध्यान में इतना लीन हो गया कि उन्हें समय का कोई ध्यान ही नहीं रहा। जब उनका ध्यान टूटा तब वे यह देखकर सन्न रह गये कि दिन के तीन बज गये थे। वे परेशान हो गये क्योंकि उस दिन उनका एक जरूरी केस बहस में लगा था और सम्बन्धित जज बहुत ही कठोर स्वभाव का था। इस बात की पूरी सम्भावना थी कि उनके मुवक्किल का नुकसान हो गया हो। ये बातें सोचते हुए बापजी न्यायालय पहुँचे और जज साहब से मिलकर निवेदन किया कि यदि उस केस में निर्णय न हुआ हो तो बहस के लिए अगली तारीख दे दें।

जज साहब ने आश्चर्य से कहा ”यह क्या कह रहे हैं। सुबह आपने इतनी अच्छी बहस की। मैंने आपके पक्ष में निर्णय भी दे दिया और अब आप बहस के लिए समय ले रहे हैं।“

जब बापजी ने कहा कि मैं तो था ही नहीं तब जजसाहब ने फाइल मँगवाकर उन्हें दिखायी। वे देखकर सन्न रह गये कि उनके हस्ताक्षर भी उस फाइल पर बने थे। न्यायालय के कर्मचारियों, साथी वकीलों और स्वयं मुवक्किल ने भी बताया कि आप सुबह सुबह ही न्यायालय आ गये थे और अभी थोड़ी देर पहले ही आप यहाँ से निकले हैं।

बापजी की समझ में आ गया कि उनके रूप में कौन आया था। उन्होंने उसी दिन संन्यास ले लिया और फिर कभी न्यायालय या अपने घर नहीं आये।

इस घटना की चर्चा अभी भी आगर मालवा के निवासियों और विशेष रूप से वकीलों तथा न्यायालय से सम्बन्ध रखनेवाले लोगों में होती है। न्यायालय परिसर में बापजी की मूर्ति स्थापित की गयी है। न्यायालय के उस कक्ष में बापजी का चित्र अभी भी लगा हुआ है जिसमें कभी भगवान बापजी का वेश धरकर आये थे। यही नहीं लोग उस फाइल की प्रतिलिपि कराकर ले जाते हैं जिसमें बापजी के रूप मे आये भगवान ने हस्ताक्षर किये थे और उसकी पूजा करते हैं।

          डा. वासु देव यादव

Kinnar ki parmarth katha

लघु  कथा 

         किन्नर की परमार्थ कथा 

        लौक डाउन में प्रसव  वेदना से तड़पती वह श्रमिक महिला अपनी ही बनायी सड़क को मापने में असमर्थ  , एक -एक कदम जैसे सौ - सौ मन के भारी  पत्थर ...... अंतत: वह हार गयी और खुद को गिरने से बचाती हुई वह सड़क पर पसरने ही वाली थी कि उसके बगल से उसे अनदेखा कर निकलती महिला को धक्का दे कर एक किन्नर ने दौड़ कर उसे सहारा दे दिया |
      1947 की आजादी के बाद आज भारत पुन: चलचित्र अजायब घर की भांति आदिमानव के नग्न स्वरूप को साकार करती , प्रसव वेदना से तड़पती महिला पर व्यंग्यात्मक द्रष्टिपात करती अपने गंतव्य की ओर बढ़ती चलती जा रही थी | 
      चलते - चलते प्रसव प्रक्रिया के दीदार की उत्सुकता से एक व्यक्ति ठिठका ही था कि किन्नर ने उसे झिड़क दिया - हट छिछोरे , मर खायेगा तू मेरी , हट एक किनारे ....| और उस महिला को बमुशकिल  एक झाडी के किनारे ले जा कर अपनी एक मात्र बची साडी के टुकडे कर उसके प्रसव में सहयोग कर  उस महिला को माँ का सुख देने में सफल रही , इसी बीच कुछ और किन्नर आ गयी थी और उन्होने एक सुरक्षा घेरा बना लिया था | आश्चर्य नवजात चुप था , उसकी आँखें खुली थी , मानो कोरोना से निडर  थी , किन्नर को अपलक निहार रही थी , शायद आभार प्रकट कर  रही थी उसे जीवन गीत देने के लिए | नितांत अकेली माँ अभी भी  बेहोश थी |
                   
                      लघु कथाकार  डा. वासु देव यादव

Aatmleen

जब  भी  कहीं कृष्ण  प्रवचन  चल  रहा  होता  हैं  तो वहां  की  हवायें  पूरे  क्षेत्र  को  कृष्णमय  कर  देती  हैं  मन  न  जाने  क्यों  उल्लासित  रहता  हैं  ज़िसकी  बारिकियों  को  परिभाषित  करना  मनुष्य  मन  की  कल्पनाओं  से  परे  हैं ऐसे  में  किसी  कथा  वाचक  का  एक  ही  शब्द  श्रोता  की  श्रद्धा  को  दिग्भ्रमित करने  के  लिए  प्रयाप्त  हैं 

अभी  विगत  दिनो विश्व  प्रसिद्ध कथा  वाचक मोरारी बापू  जी  ने  
अपने  प्रवचन  में  श्री  कृष्ण  व  बलराम  की के  संदर्भ  में  अपनी  निजी  ब्याख्या श्रोताओं पर थोपनी  चाही किंतु कुछ जागरुक श्रोताओ के कारण उन्हे कानहा विचार मंच की मांग पर द्वारिकाधीश के दर्शन कर  भक्तों से माफी मांगनी पड़ी |

      यह वाकया इस बात को साबित करता है कि कुछ विद्वान अपनी विद्यता की आड़ में भक्तों पर उनके आराध्य  की छवि अपने मतानुसार  गढना  चाहते हैं | 

         अत: यहां आवश्यक हो जाता है कि जब भी  आप कृष्ण  कथा य़ा  अन्य के प्रवचन का पुण्य ले रहे हों तो   पूर्ण भक्तीमय  होने के उपरांत ही आप प्रवचनकर्ता की बारीक से बारीक गलतियों  को पकड़ पाने में सफल हो कर  भागवत गीता य़ा अन्य  पौरणिक ग्रंथ  का मान  बनाये  रखने  मॅ  अपनी  अहम  भुमिका निभायेँगे और  यह  कर्तब्य  हर  हिन्दू  का  हैं  चाहे  वह  किसी  भी  जाति  का  हो  किसी  भी  वर्ण  का  हो 
और  इस  तरह   अंधविश्वास  को  तोडने की  दिशा  में  यह  एक  महत्वपूर्ण  कदम  माना  जायेगा

            Dr. Vasu deo yadav

Yog se anand prapti

अभी  योग  की  चर्चा  हो  रही  हैं , इसमे  किसी  गवाह  की  आवश्यकता  नहीं  हैं  कि  योग  पश्चात  आप  ह्रदय को  , मन  मस्तिष्क  को प्रफुल्लित  पाते  हैं  , आनन्दित  पाते  हैं  , उत्साहित  पाते  हैं |

 यहां  ग्यान ,  विग्यान   व मनोविग्यानं के  अदभुत संयोग 
को  महसुस करने  का  अवसर  प्राप्त  होता  हैं , मन  कृष्णमय  हो  जाता  हैं , दूर  कहीं  उनकी  बांसुरी  की  धुन्  मन  को  मोहने  लगती  हैं , मन  निर्मल  हो  जाता  हैं  | 

ठीक  इसके  विपरित  परिस्थितियों  में भी  हम  कुछ  ऐसा  ही  महसुस  करते  हैं  | जब  हम  किसी  अर्थी  को  कंधा  देते  हैं , वे  भले  ही  किसी  जाति , धर्म  के  हों  पर  उस  क्षण सबके  मन  में  एक  ही  भावना  उद्देलित  रहती  हैं  कि यह   संसार  मिथ्या  हैं  सब  निरर्थक  है |

छल  कपट  बईमानी  का  कोई ओचित्य  नही  है | अर्जित धन सब माटी है , चिंतन ईश्वरीय साधना की ओर मुडने लगता है  | मन  कृष्णमय  हो जाता है  पर यह कुछ क्षण का मेहमान होता है |

 कार्य स्थल पर पुन: लोग , लालसा  की ललक में मन को तृष्णामय कर किसी बेबस से बिना कुछ अर्जित किये फाइल न जाने  क्यूँ  अंगद की पांव की तरह एक टेबिल को जकड लेती है  और मन मृत्यू और योग की सत्यता को  नकारते हुए उसकी  निरर्थक परिभाषा को गढने लगता है , भावनायें अट्टालिकाओ में परीवर्तित होती रहती है | 

मन अध्यात्म को पाखण्ड का अधिष्ठात्री घोषित कर  देता है  कि अचानक ही कोई अपना लाइलाज बीमारी से ग्रसित हो कर खास अर्जित धन लूट कर ले जाता है  य़ा पुत्र मोह में उनके जीवन को नया आयाम  देने में पूरी सम्पदा स्वाहा हो जाती है  और परिस्थितियां व्रधाश्रम  की राह दिखाती  सी प्रतीत होती हैं |

 हताश मन पुन: कृष्णमय हो जाता हैं , अब अध्यात्म की बातें सच्ची  लगने   लगती  हैं ,मृत्यू  शाश्वत  दिखने  लगती  है 

अशांत  मन  में  योग  शांति  के  बीज  बोता   ह्रदय  को  पुन: कृष्णमय  करता  हैं 

क्या  इसे  हम  स्थाईत्व  नहीं  दे  सकते ? सरकार  की  ज़न कल्याणकारी योजनाओ को गति देने में क्या कृष्णमय मनभावना को उसका आधार नही बनाया जा सकता हैं? 

यदि 'हाँ' तो अभी देर कहाँ हुई है , कृष्ण तो हमें पुकार ही रहे हैं, उनकी मीठी बांसुरी की धुन में खो जाने के लिए |

राधा भी  कही आसपास ही है  , रासलीला का अवसर ढूंढ रही है  , कृष्णमय हो जाने के लिए | 
      

                                 लेखक    डा. वासु देव यादव

गुरुवार, 18 जून 2020

Muskuraiye

मुस्कुराहट  ही  ज़िन्दगी  हैं 
मुस्कुराने  की  वजह  न  ढून्ढे  ज़िन्दगी  खोज  में  गुजर  जायेगी 
वेवजह   मुस्करा  कर  देखें  ज़िन्दगी  संवर  जायेगी  |समझने  की  कोशिश  करें ,दीपक  बोलता  नही , उसका  प्रकाश उसकी  उपस्थिती  को  दबंगई  से  साबित  करता  हैं कोई  भी  ब्यक्ती  गलत नही  होता ,बस  उसकी  सोच  आपसे  नही  मिल  रही  हैं  
यदि  आप  सही  हैं  तो  पहले  उसकी  विचारधारा  पर  थोड़ा मुस्कुराईये  ,आनन्द  लीजिये  ,फिर उसे अपनी   विचारधारा  में शामिल  करने  के  लिए ,भले  ही  आपको  मैराथनं दौड  लगानी  पडे  आप  लगाईये ,पर  अपनी  हालत  पर  मुस्कुराना  मत  भूलिये  |
अंधेरे  में  उसे  राह  दिखाने की  कोशिश  के  साथ साथ   अपने  लिए  भी  एक  साथी  तलाश  करने  का  प्रयत्न  जारी  रखिये || यही  कोशिश  एक  दिन  आपको  रौशनी  के  स्त्रोत  तक  अवश्य  पहुँचा  देगी  ऐसा  विश्वास  रखिये |
 मैं  आपको  एक  उदाहरण  से  समझाने  का  प्रयास  करता  हूँ कि  आप  न्यूज  पेपर  पढते  हैं  य़ा  टी  वी  पर  समाचार  देख  रहे  होते  हैं  तो  वर्तमान  स्थिति  देख  कर   अधिकांश  के  मन  में  तूफान  अवश्य  उठते  होंगे |

 उसके  जलजले  की  अस्पष्ट  शब्दों  की  टोकरी  से  कुछ  निशब्द  को  वाक्य  बन  कर  बहार  गिर  जाने  दें  उस  पर  आप  मनन  करें  फिर  धीरे  से  मुस्कुरायें 
फिर  उन  वाक्यों  को  अपनी  कल्पनाओं  के  माला  में  पिरो  कर  इंटरनेट  की  दुनिया  में  डाल  दें  किंतु  आप  आवेश  में कदापी  न  आयें और  मुस्कुराना  जारी  रखे ,परिणाम  का  इंतजार  करें ,आप  पायेंगे  कि  इंटरनेट  में  अचानक  एक  भूचाल  आता  हैं और  समाज के  लिए  अवान्छनिय  दो  पैरों  वाला  वायरस  उसमे  फंस  कर  अपना  अस्तित्व  खो  बैठता  हैं | अब  तो  आप  निश्चित  रुप  से  स्वयं  ही  मुस्कुरायेंगे|   मैं  भी  आपसे  यही  कहना  चाह  रहा  था  कि  आप  यूँ  ही  हमेशा  मुस्कुराते  रहिये

सोमवार, 15 जून 2020

Durdarshita

उन्होंने प्रतिमाये नहीं बनवाई
संस्थानों के प्रतिमान बनाये !
उसकी आँखों के सामने एक ऐसा भारत था जहां आदमी की उम्र 32 साल थी। अन्न का संकट था। बंगाल के अकाल में ही पंद्रह लाख से ज्यादा लोग मौत का निवाला बन गए थे। टी बी ,कुष्ठ रोग , प्लेग और चेचक जैसी बीमारिया महामारी बनी हुई थी। पूरे देश में 15 मेडिकल कॉलेज थे। उसने  विज्ञानं को तरजीह दी।
यह वह घड़ी थी जब देश में  26 लाख टन सीमेंट और नो लाख टन लोहा पैदा हो रहा था। बिजली 2100 मेगावाट तक सीमित थी। यह नेहरू की पहल थी। 1952 में पुणे में  नेशनल वायरोलोजी इन्स्टिटूट खड़ा किया गया। कोरोना में  यही जीवाणु विज्ञानं  संस्थान सबसे अधिक काम आया है। टीबी एक बड़ी समस्या थी। 1948 में मद्रास में प्रयोगशाला स्थापित की गई और 1949 ,में टीका तैयार किया गया। देश की आधी आबादी मलेरिया के चपेट में थी। इसके लिए 1953 में अभियान चलाया गया । एक दशक में  मलेरिया  काफी हद तक काबू में आ गया।
छोटी चेचक बड़ी समस्या थी। 1951 में एक लाख 48 हजार मौते दर्ज हुई। अगले दस साल में ये मौते 12 हजार तक सीमित हो गई। भारत की 3 फीसद जनसंख्या प्लेग से प्रभावित रहती थी। 1950 तक इसे नियंत्रित कर लिया गया। 1947 में पंद्रह मेडिकल कॉलेजों में 1200 डॉक्टर तैयार हो रहे थे। 1965 में मेडिकल कॉलेजों की संख्या 81 और डॉक्टरस  की तादाद दस हजार हो गई। 1956 में भारत को पहला AIMS मिल गया। यही एम्स अभी  कोरोना में मुल्क का निर्देशन कर  रहा है। 1958 में मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज और 1961 में गोविन्द बल्ल्भ पंत मेडिकल संस्थान खड़ा किया गया।
पंडित नेहरू उस दौर के नामवर वैज्ञानिको से मिलते और भारत में ज्ञान विज्ञानं की प्रगति   में मदद मांगते। वे जेम्स जीन्स और आर्थर एडिंग्टन जैसे वैज्ञानिको के सम्पर्क में रहे। नेहरू ने  सर सी वी रमन ,विक्रम साराभाई ,होमी भाभा ,सतीश धवन और अस अस भटनागर सरीखे वैज्ञानिको को साथ लिया। इसरो तभी स्थापित  किया गया/  विक्रम साराभाई इसरो के पहले पहले प्रमुख बने। भारत आणविक शक्ति बने। इसकी बुनियाद नेहरू ने ही रखी। 1954 में भारत ने आणविक ऊर्जा का विभाग और रिसर्च सेंटर स्थापित कर लिया था। फिजिकल रीसर्च लैब ,कौंसिल ऑफ़ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रीसर्च ,नेशनल केमिकल लेबोरटरी ,राष्ट्रिय धातु संस्थान ,फ्यूल रिसर्च सेंटर और गिलास एंड सिरेमिक रिसर्च केंद्र जैसे संस्थान खड़े किये। आज दुनिया की महफ़िल में भारत इन्ही उपलब्धियों के सबब मुस्कराता है।                        अमेरिका की अम आई टी MIT का तब भी संसार में बड़ा नाम था। नेहरू 1949 में अमेरिका में MIT गए ,जानकारी ली और भारत लौटते ही IIT  आइ आइ टी स्थापित करने का काम शुरू कर दिया। प्रयास रंग लाये। 1950  में खड़गपुर में भारत को  पहला IIT मिल गया। आज इसमें दाखिला अच्छे भविष्य की जमानत देता है./ आइ आइ टी प्रवेश इतना अहम पहलु है कि एक शहर की अर्थव्यवस्था इसने नाम हो गई है। 1958 में मुंबई ,1959 में मद्रास और कानपुर और आखिर में 1961 में दिल्ली IIT वाले शहर हो गए।
उसने बांध बनवाये ,इस्पात के कारखाने खड़े किये और इन सबको आधुनिक भारत के तीर्थ स्थल कहा।
नेहरू ने जब  संसार को हमेशा के लिए अलविदा कहा ,बलरामपुर के नौजवान सांसद वाजपेयी  [29 मई 1964] संसद मुखातिब हुए /  नेहरू के अवसान को वाजपेयी ने इन शब्दों में बांधा '' एक  सपना था जो अधूरा रह गया ,एक गीत था जो गूंगा हो गया ,एक लौ अनंत में विलीन हो गई , एक ऐसी लो जो रात भर अँधेरे से लड़ती रही ,हमे रास्ता दिखा कर प्रभात में निर्वाण को प्राप्त हो गई। और भी  बहुत कुछ कहा।
आज़ादी की लड़ाई लड़ते हुए  वो 3259 दिन जेल में रहा। उसने सच में कुछ नहीं किया। लेकिन कोई  पीढ़ियों की सोचता है ,कोई रूढ़ियों की।

Shikshit kaun

आप बताइए शिक्षित कौन ???

टी एन शेषन मुख्य चुनाव आयुक्त थे तब एक बार वे उत्तर प्रदेश की यात्रा पर गए। उनके साथ उनकी पत्नी भी थीं। रास्ते में एक बाग के पास वे लोग रुके। बाग के पेड़ पर बया पक्षियों के घोसले थे। *उनकी पत्नी ने कहा दो घोसले मंगवा दीजिए मैं इन्हें घर की सज्जा के लिए ले चलूंगी। उन्होंने साथ चल रहे पुलिस वालों से घोसला लाने के लिए कहा।* 

पुलिस वाले वहीं पास में गाय चरा रहे एक बालक से पेड़ पर चढ़कर घोसला लाने के बदले दस रुपये देने की बात कहे, लेकिन वह लड़का घोसला तोड़ कर लाने के लिए तैयार नहीं हुआ। टी एन शेषन उसे दस की जगह पचास रुपए देने की बात कही फिर भी वह लड़का तैयार नहीं हुआ। *उसने शेषन से कहा साहब जी! घोसले में चिड़िया के बच्चे हैं शाम को जब वह भोजन लेकर आएगी तब अपने बच्चों को न देख कर बहुत दुखी होगी, इसलिए आप चाहे जितना पैसा दें मैं घोसला नहीं तोड़ सकता।*

इस घटना के बाद टी.एन. शेषन को आजीवन यह ग्लानि रही कि *जो एक चरवाहा बालक सोच सका और उसके अन्दर जैसी संवेदनशीलता थी, इतने पढ़े-लिखे और आईएएस होने के बाद भी वे वह बात क्यों नहीं सोच सके, उनके अन्दर वह संवेदना क्यों नहीं उत्पन्न हुई? शिक्षित कौन हुआ ? मैं या वो बालक ?*

*उन्होंने कहा उस छोटे बालक के सामने मेरा पद और मेरा आईएएस होना गायब हो गया। मैं उसके सामने एक सरसों के बीज के समान हो गया। शिक्षा, पद और सामाजिक स्थिति मानवता के मापदण्ड नहीं हैं।*

प्रकृति को जानना ही ज्ञान है। बहुत सी सूचनाओं के संग्रह को ज्ञान नहीं कहा जा सकता है। जीवन तभी आनंददायक होता है जब आपकी शिक्षा से ज्ञान, संवेदना और बुद्धिमत्ता प्रकट हो।

शुक्रवार, 12 जून 2020

Aarthik sudhar package kiki samajik samiksha

आर्थिक सुधार पैकेज की सामाजिक समीक्षा 

आर्थिक  सुधारो  के  लिये नीति  निर्धारकों  का  जानमानस  का  ईश्वरीय  रुप  की  अनुभूति  का  होना , उनका  प्रगाढ विश्वास  होना  कि  हर  मनुष्य  में  ईश्वर  का , खुदा  का वास  होता  हैं , उन्हें  प्रसन्न  करने  में  कोई  भी  त्रूटी  हो  , धिक्कार  हैं  हमें , मात्र  यही  भावना ही  भारत  को  आर्थिक  रुप  से  मजबूती  प्रदान  कर  सकती  हैं  जो  की  नितांत  असंभव  कार्य  है|
यदि  ऐसा  न  हो  पाये  तो कम  से कम  इंसान  समझ  कर  नरसिम्हा  राव  कार्यकाल  के प्राय: हर  मामलों  के  मुखिया  रहे  श्री ए  एन  वर्मा  व   श्री  नरेश  चन्द्रा  जी की  तरह  जनहित  में  स्पष्ट  मेमो  लिखना  सीख लें , ज़िसका  वर्तमान  सरकार  में  नितांत  अभाव  हैं | कोरोना काल   में  नित्य  नए  बदलते  मेमो  इसके  सशक्त उदाहरण  हैं चुकि यहां  1985-87 के अधिकतर सचिवों के हाथ में वास्त्विक आर्थिक  रुप रेखा को धरातल पर लाने इनमें जज्बात का नितांत अभाव हैं | ये पब्लिक को मात्र बेले डांस दिखा करे फिलहाल लौक डाउन काल में सत्ता का मजा लेना सीख रहे हैं |

शनिवार, 6 जून 2020

Hathini mar gayi

हथिनी मर गयी 

एक हथिनी हैवानियत का शिकार हो गयी , इसका मुझे दुख है  किंतु इससे भी  कई गुना ज्यादा दुख मुझे इस बात का है  कि आज इस संदर्भ में राहुल गांधी तक से सवाल पूछने वाले लोगों की संवेदनायें उस वक़्त कहाँ चली गयी थी जब रेल लाइन में , ट्रेन में , सड़क पर , ट्रक दुर्घटना से , भूख से , प्यास से एक http//multi135.blogspot.com  नही सैकडो मजदूर मात्र शासन की लापरवाही से वक़्त के हाथों कत्ल हो रहे थे | उस वक़्त को थामने में सक्षम , मजदूर पक्ष में बड़ी बड़ी बात करने वाले , उसके पैरों तले  बिछ जाने वाले उस वक़्त चुप क्यों थे | यह कैसी राजनीति हो रही है | हम किधर जा रहे है | 
                   डा. वासु  देव  यादव

China darta hai

चीन डरता है 
 
विदेश नीति के नाम पर लगभग वर्ष भर विदेशी उडान पर रहने वाले प्रधान सेवक , पब्लिक टेक्स का अरबों रू खर्च कर  देने में माहिर , यदि हम मात्र नेपाल दौरे की ही बात करें तो वहां के दौरे का खर्च जो निकल कर  आया है वह है  ' एक करोड इक्सठ लाख दो सौ अंठानवे रू ' और उसका परिणाम क्या निकला ? नेपाल जो हमारे पैर की धूल है  , आज हमें आँखें  दिखा रहा है  और अफवाह फैलती  है  कि चीन प्रधान सेवक से डरता है , इससे भी  कोई फूहड़ मजाक जनता के साथ हो सकता है  क्या ?
यह एक विचारणीय प्रश्न  है |
                    Dr. Vasu Dev Yadav

बुधवार, 3 जून 2020

Sonu Sood ki niswarth kary shaly

सोनू सूद की  निस्वार्थ कार्य शेली 
        सुप्रीम कोर्ट का धन्यवाद कि अन्त्तत: उन्होने भारत सरकार को , स्वयं के खरचे पर मजदूरों को घर पहुचाने का आदेश दिया , साथ ही हादसों  की पूनरावृती न हो एवं उनकी सुविधायें और बढाई जायें ,  इस पर  भी  अपनी ज़िम्मेदारी तय करने की सलाह दी |
        मन कुछ सुकुन का एहसास कर पाता कि झीरम कांड पर N .I .A . की जांच पर पब्लिक का सवालिया निशान लगाना कि जांच गंभीरता से नही हुई है  , मन को पुन: व्यथित  कर  जाता है |
        मैं सर को एक जोर का झटका देता हूँ कि सोनू सूद का चेहरा एक फरिश्ते की मानिन्द मेरी कल्पना में अवतरित हो जाता हैं कि किस तरह वे रात दिन प्रवासी मजदूरों के लिए समर्पण भाव  से लगे हुए है  | करोडो रू न्योछावर कर  दिये और हवाई  चप्पल को हवाई जहाज  में बैठा दिया | उनके इस जज्बे को मैं बारम्बार प्रणाम करता हूँ |
      सोनू सूद जी का प्रसंग आ गया तो मन कुछ हल्का हुआ | चाय आ चुकी  थी | बरामदे में रखी कुर्सी पर बैठ कर मैं चाय की चुस्की का आनन्द लेने लगा कि सामने रखी अखबार  की हैडिंग पर नजर पड़ी , लिखा था कि कोरोना संक्रमन के कठिन समय में उनके साहसिक नेतरत्व ने देश के करोडों लोगो में सुरक्षा का भाव पैदा किया | यहाँ यह कहने की आवश्यकता नही रह जाती है  कि  किस तरह वे देश में फैल रहे कोरोना संकरमन से अंजान बन शिवराज जी की ताजपोशी  कर रहे   थे जब  की  देश  असुरक्षित  था |
देश  के साथ इससे ज्यादा गंदा मजाक कुछ और  हो ही नही सकता था | सर दर्द से फटा  जा रहा था | मैं व्याकुल था | टेबल पर रखी चाय ठंडी  हो चुकी  थी |

                        डा . वासु देव  यादव

Supreme court ka lajabaw faisla

सुप्रीम कोर्ट का लाजवाब फैसला 
      सुप्रीम कोर्ट ने बाहुबली राज्य के खात्मे की दिशा में एक महत्तवपूर्ण फैसले पर अपनी मोहर लगायी  है  कि कोई भी  राजनीतिक पार्टी यदि किसी अपराधी  को टिकट देती है  तो पार्टी को उनका आपराधिक रिकोर्ड मीडिया की समस्त शाखाओ में सार्वजनिक करना होगा , साथ ही पार्टी को यह बताना भी  आवश्यक होगा कि उन्होने उस  अपराधी को टिकट क्यो दिया | ऐसा न करने पर उनका यह क्रत्य कोर्ट का अपमान माना जायेगा |
        कोर्ट का यह फैसला स्वागतेय होते हुए भी  इस फैसले में कुछ अधुरेपन का एहसास ने हमें बाध्य किया कि मैं भी  देश के पटल के सामने अपने विचार रखूँ कि  सुप्रीम कोर्ट इसमें एक कलोज और जोड़ दे कि एक पार्टी से जीत कर  आया विधायक य़ा सांसद  यदि जनता के वोट का अपमान कर  देश हित की आड़ लेकर निज हित में दूसरी पार्टी ज्वाइन करता है  तो  उसे य़ा तो अयोग्य करार  दिया जाये य़ा उसे पुन: जनता का आदेश लेने चुनाव मैदान  में जाने की सलाह दी जाये व विधायक , सांसद चुनाव लड़ने के लिए ग्रेजूऐशन की सीमा तय कर दी जाये तो भारत अकस्मात ही एक पूर्ण शिक्षित विधान सभा व संसद   के रुप में विश्व में अवतरित हो जायेगा | आप का क्या कहना है ?
                   डा .  वासु  देव यादव

Padam shree mukutdhar Pandey ji

 *पदम श्री मुकुटधर पाण्डेय जी पर शोध पत्र* -----पगडंडियों मे धूप की तपन गांव के जिंदा होने का बोध कवि हृदय में भारत के स्पंदन का प्रमाण देती...